प्रमुख भारतीय आईटी कंपनियों ने अब एच-1बी वीजा पर निर्भरता को बेहद कम करने का निर्णय लिया है। इस मामले से अवगत सूत्रों ने बताया कि आईटी कंपनियों ने सरकार को यह जानकारी दी है। सरकार को बताया गया है कि आईटी कंपनियां अपने अमेरिकी ग्राहकों को दी जाने वाली सेवाओं से संबंधित कार्यों को भी भारत लाने की योजना बना रही हैं।
अमेरिका ने शनिवार को एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर करने की घोषणा की। उसके बाद भारत सरकार इस मुद्दे पर भारतीय आईटी कंपनियों की राय जानना चाहती थी। भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा का काफी इस्तेमाल करती हैं। करीब 73 फीसदी एच-1बी वीजा भारत को जारी किया जाता है।
भारतीय आईटी कंपनियों के साथ होने वाली चर्चा से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘भारतीय आईटी कंपनियों ने सरकार को स्पष्ट तौर पर बताया कि वे अब एच-1बी वीजा पर अपनी निर्भरता को काफी कम कर देंगी और अमेरिका से काफी हद तक काम को भारत लाएंगी। आईटी कंपनियों ने यह भी कहा कि वे अमेरिका में अनिश्चितताओं और उन नीतिगत बदलावों में नहीं फंसना चाहती हैं जो उनकी दीर्घकालिक कारोबारी योजना को प्रभावित कर सकते हैं।’
बड़ी तादाद में एच-1बी वीजा वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों, विशेष रूप से एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, ऐपल, गूगल, वॉलमार्ट और जेपी मॉर्गन को जारी किए जाते हैं। शीर्ष दस कंपनियों को जारी 95,109 एच-1बी वीजा में 94.3 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी इन कंपनियों की है। इस लिहाज से शीर्ष 10 कंपनियों की सूची में केवल एक भारतीय कंपनी है।
मगर एच-1बी वीजा शुल्क में की गई भारी बढ़ोतरी से भारतीय आईटी कंपनियां भी प्रभावित होंगी। अगर अमेरिकी सरकार के 30 जून, 2025 तक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो टीसीएस 5,505 एच-1बी वीजा के साथ शीर्ष 100 की सूची में दूसरे पायदान पर है और वह केवल एमेजॉन से पीछे है। इसी प्रकार इन्फोसिस 2,004 एच-1बी वीजा के साथ 13वें पायदान पर और एलटीआई माइंडट्री 1,844 वीजा के साथ 15वें स्थान पर है। शीर्ष 100 की सूची में शामिल अन्य कंपनियों में एचसीएल अमेरिका, विप्रो, टेक महिंद्रा और एलऐंडटी टेक्नॉलजी सर्विसेज शामिल हैं। उपलब्ध ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत की शीर्ष 7 कंपनियों ने कुल मिलाकर 13,870 एच-1बी वीजा प्राप्त किए हैं।
अधिकारी ने बताया कि वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों, विशेष रूप से अमेरिकी कंपनियों को ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, ऐपल इंक, मेटा और वॉलमार्ट जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए इस समस्या से निपटना एक कठिन चुनौती होगी क्योंकि उनके पास ऐसे वीजाधारकों की तादाद काफी अधिक होती है।’
अधिकारी ने यह भी बताया कि अपनी टीम के एक हिस्से को अमेरिका स्थानांतरित करने पर विचार करने वाली स्टार्टअप एआई कंपनियों को अब अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। एच-1बी वीजा शुल्क में भारी वृद्धि किए जाने के बाद वे अब अपनी टीम को भारत में ही रखना पसंद करेंगी।