भारतीय नौसेना के पास आने वाले वर्षों में 9 उन्नत पनडुब्बियां होंगी, जो गुप्त रूप से काम करते हुए अपने मिशन को अंजाम दे सकती हैं। प्रोजेक्ट 75 इंडिया (पी75आई) के तहत एक प्रस्ताव सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के पास है। यदि यह मंजूर हो जाता है तो बेहद उन्नत टोही क्षमताओं वाली ये पनडुब्बियां नौसेना बेड़े की ताकत को बढ़ाएंगी। मामले की जानकारी रखने वाले एक सरकारी सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अंतिम फैसला कैबिनेट समिति को ही लेना है लेकिन नौसेना इन पनडुब्बियों को खरीदने में काफी रुचि दिखा रही है।
सूत्रों के अनुसार कुल 9 पनडुब्बियां खरीदने का प्रस्ताव है। अनुमान के मुताबिक पहले चरण में 6 पनडुब्बियां लाई जाएंगी जिनकी लागत 90,000 करोड़ रुपये से 1 लाख करोड़ रुपये के बीच होगी। वर्ष 2020 रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया दिशानिर्देशों के अनुसार, मुख्य अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद 3 अतिरिक्त पनडुब्बियों का ऑर्डर दिया जाएगा।
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी और अरब सागर में पाकिस्तान की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों के बीच भारतीय नौसेना समुद्री सुरक्षा के प्रति बेहद सतर्क और गंभीर है। भारत क्वाड के सदस्य के रूप में भी अपनी नौसेनिक क्षमताओं को बढ़ाना चाहता है। क्वाड में भारत के अलावा अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। सूत्र ने कहा, ‘विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी के लिए अत्याधुनिक पनडुब्बियों की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि चीन की नौसेना लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है और पाकिस्तान भी अधिक पनडुब्बियां खरीदने के लिए काम कर रहा है।’
सूत्र ने कहा कि यदि वाणिज्यिक वार्ता इस वर्ष के अंत तक पूरी हो जाती है तो सौदा अगले साल वसंत ऋतु आने तक पूरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि उत्पादन शुरू होने में तीन साल लगेंगे और सौदा होने से लेकर सभी पनडुब्बियां आने में दशक का समय लग सकता है। पी75आई एक नई परियोजना है और करार में एक साल का समय लग सकता है। इसके बाद एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए कैबिनेट समिति को सौंपा जाएगा। यहां से हरी झंडी मिलने के बाद ही समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
इस परियोजना में नवीनतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह सौदा महंगा इसलिए भी होगा क्योंकि करार में डिजाइन और निर्माण की जानकारी का हस्तांतरण, मिशन-क्रिटिकल सिस्टम को देश में बनाने में आने वाली लागत, कोविड संबंधी महंगाई और यूरोप एवं भारत में लागत वृद्धि शामिल है। भारतीय और विदेशी शिपयार्ड के बीच रणनीतिक साझेदारी के रूप में वर्गीकृत परियोजना में टोही क्षमता बढ़ाने के लिए एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली वाली पनडुब्बियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
इसी साल जनवरी में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड और जर्मन कंपनी थीसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स की संयुक्त बोली इस परियोजना पर काम करने के लिए एकमात्र दावेदार के रूप में उभरी, क्योंकि भारतीय निजी कंपनी लार्सन ऐंड टुब्रो लिमिटेड ने स्पेनिश राज्य के स्वामित्व वाले जहाज निर्माता नवान्टिया के साथ मिलकर तकनीकी मूल्यांकन में कथित तौर पर विफल रही। यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो भारत के पनडुब्बी कार्यक्रम में विदेशी साझेदारी में बदलाव देखने को मिलेगा और रक्षा सौदों का झुकाव फ्रांस से जर्मनी की ओर होता जाएगा।