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GST 3.0 में रिफंड होंगे ऑटोमेट! इनकम टैक्स की तरह सरकार लाएगी सिस्टम

CBIC के सदस्य ने कहा कि ध्यान यूनिवर्सल ई-इनवॉइसिंग, निर्बाध डेटा फ्लो और अनुपालन को सरल बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग पर रहेगा

Last Updated- October 07, 2025 | 7:18 PM IST
GST

सरकार वस्तु एवं सेवा कर (GST) रिफंड को इनकम टैक्स सिस्टम की तरह ऑटोमेट करने पर विचार कर रही है। यह पहल GST 3.0 के तहत योजनाबद्ध सुधारों के अगले चरण का हिस्सा होगी। एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी ने यह जानकारी दी।

सिस्टम और सरल बनाने पर जोर

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) के सदस्य (GST) शशांक प्रिया ने TIOL नॉलेज फाउंडेशन (TKF) के एक कार्यक्रम में कहा, “हम उम्मीद कर रहे हैं कि इनकम टैक्स की तरह GST रिफंड भी ऑटोमेट किया जा सके। यह विचार हमारी योजना में शामिल है।”

हालांकि, प्रिया ने कोई समयसीमा नहीं दी। उन्होंने कहा, “हम परामर्श करेंगे और पर्याप्त सुरक्षा उपायों को लागू करना होगा। सरकार में हमारे सुधार एजेंडे को आगे बढ़ाने और सिस्टम को सरल बनाने के लिए बहुत सकारात्मक ऊर्जा है।”

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इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के तहत दायर किए गए रिफंड

सरकार ने GST 2.0 के तहत इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (जहां इनपुट पर टैक्स आउटपुट से ज्यादा हो) के तहत दायर किए गए रिफंड दावों के लिए 1 अक्टूबर, 2025 या उसके बाद प्रस्तुत आवेदनों पर 90 फीसदी रिफंड का अस्थायी स्वीकृति (provisional sanction) की अनुमति दी थी।

अंतरिम उपाय के तौर पर, अस्थायी रिफंड प्रक्रिया मौजूदा शून्य-रेटेड (zero-rated) सप्लाइज के लिए अपनाए जाने वाले मैकेनिज्म के समान होगी। इस प्रणाली में जोखिम की पहचान और मूल्यांकन उपकरणों (risk identification and evaluation tools) का उपयोग करके कम जोखिम वाले दावों को तेजी से मंजूरी दी जाएगी और मैनुअल हस्तक्षेप को कम किया जाएगा।

एक्सपर्ट्स के अनुसार, निर्यात और इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के अलावा, रिफंड दावे उन मामलों में भी उत्पन्न होते हैं जहां कर गलती से भुगतान किया गया हो। उदाहरण के लिए, जब अंतर-राज्य आपूर्ति (inter-state supply) को गलत तरीके से अंत:राज्य आपूर्ति (intra-state supply) माना जाता है या इसके विपरीत, या जब टाइपिंग एरर के कारण ज्यादा टैक्स जमा किया गया हो।

इसके अलावा, रिफंड उन राशि के लिए भी मांगे जाते हैं जो जांच, ऑडिट या अपील के समय पूर्व-भुगतान (pre-deposit) के रूप में जमा की गई हों, जबकि बाद में कोई देयता स्थापित नहीं होती। हालांकि, ऐसे दावों को अक्सर मंजूरी से पहले लंबे वेरिफिकेशन और प्रक्रियात्मक देरी का सामना करना पड़ता है।

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मानवीय संपर्क कम होना चाहिए

रस्तोगी चेंबर्स के फाउंडर अभिषेक ए. रस्तोगी ने कहा, “रिफंड दावों के प्रोसेसिंग के मामले में टैक्सपेयर्स और अधिकारियों के बीच मानवीय संपर्क (human interface) निश्चित रूप से कम होना चाहिए। सभी कमियों और जानकारी की आवश्यकताओं को इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल माध्यम से ही मांगा जाना चाहिए, ताकि पारदर्शिता और एकरूपता बनी रहे। कई बार ऐसा देखा गया है कि टैक्स अधिकारी वही दस्तावेज फिर से मांगते हैं, जो पहले भौतिक रूप से जमा किए जा चुके होते हैं, जिससे अनावश्यक देरी होती है।”

भविष्य में प्रक्रियाओं को और सरल बनाएंगे

प्रिया ने कहा कि सरकार उन मुद्दों का भी परीक्षण कर रही है, जो विवाद के लिए संवेदनशील हैं, जिनमें अनुसूची 1 लेन-देन से जुड़े मामले शामिल हैं, जैसे संबंधित संस्थाओं के बीच आपूर्ति और मान्यता प्राप्त आपूर्ति (deemed supplies) का मूल्यांकन।

इसके अलावा, जीएसटी कानून की धारा 75 के तहत ब्लॉक्ड इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) और प्रक्रियात्मक बाधाओं पर भी विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “GST 3.0 होना ही होगा। हम सभी मुद्दों पर काम कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि भविष्य में हम प्रक्रियाओं को और सरल बनाएंगे।”

CBIC के सदस्य ने कहा कि ध्यान यूनिवर्सल ई-इनवॉइसिंग, निर्बाध डेटा फ्लो और अनुपालन को सरल बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग पर रहेगा। उन्होंने कहा, “एक प्रयास यह है कि ई-इनवॉइस को और ज्यादा यूनिवर्सल बनाया जाए। इन्हें सरल बनाया जाए ताकि हम थ्रेशोल्ड को कम कर सकें और इसे एक ही डेटा एंट्री प्वाइंट बनाया जाए — जिससे GSTR-1 और रिटर्न अपने आप तैयार हो सकें।”

First Published - October 7, 2025 | 7:04 PM IST

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