भारत भी दुनिया की चार दिग्गज परामर्श एवं ऑडिट कंपनियों को टक्कर देने वाली कंपनी बनाने की तैयारी कर रहा है। कंपनी मामलों के मंत्रालय की सचिव दीप्ति गौर मुखर्जी की अध्यक्षता में एक समिति ऐसी देसी कंपनी बनाने के लिए जरूरी कदमों पर विचार करेगी। यह समिति जरूरत पड़ने पर नीतिगत उपाय भी सुझाएगी।
इस सिलसिले में पहली बैठक शुक्रवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में शुक्रवार को हुई थी। प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव अजय सेठ, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव एम नागराज, राजस्व सचिव अरविंद श्रीवास्तव और गौर मुखर्जी समेत शीर्ष सरकारी अधिकारी शामिल हुए थे।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने इन शीर्ष अधिकारियों के समक्ष वैश्विक स्तर की एक ऐसी भारतीय कंपनी तैयार करने का खाका पेश किया। सूत्रों ने कहा कि इस बैठक से पहले भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) ने भी इस विषय पर अपनी सलाह कंपनी मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों को दी थी।
चार बड़ी कंपनियों डेलॉयट, पीडब्ल्यूसी, ईवाई और केपीएमजी को विभिन्न सरकारी मंत्रालयों एवं विभागों से काफी काम मिलता है। अब सरकार चाहती है कि ऐसी कंपनियों पर निर्भरता कम कर देश में ही एक कंपनी तैयार की जाए, जो ये काम कर सके। ग्रांट थॉर्नटन भारत, बीडीओ इंडिया दो बड़े नाम हैं, जो परामर्श सेवा देने वाली छह बड़ी कंपनियों में शामिल हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल जून में कहा था कि आईसीएआई को एक भारतीय कंपनी स्थापित करने का जिम्मा चुनौती समझकर लेना चाहिए और वैश्विक कंपनियों एवं सरकारों से ठेका हासिल करना चाहिए।
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वित्त मंत्री ने कहा था, ‘आखिर ऐसा क्यों है कि भारत में बड़ी संख्या में बेहतरीन चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) हैं, जिनकी पूरी दुनिया में साख है मगर वे इन चार बड़ी कंपनियों में लीडर, पार्टनर ही बनकर रह जाते हैं। पार्टनर बनना ही है तो इन कंपनियों के बजाय भारती की कंपनी में क्यों नहीं बनते।’
उद्योग जगत पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि नियामकीय बाधाओं के कारण भारत में ऐसी दिग्गज कंपनियां कंपनियां स्थापित नहीं हो पा रही है। चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम के मौजूदा प्रावधान भी सीए के अलावा किसी और के साथ राजस्व या मुनाफा साझा करने की इजाजत नहीं देते हैं।