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चीन चुपचाप बना रहा दुनिया की सबसे ताकतवर चिप मशीन, जानिए अंदर की कहानी

शेनझेन की हाई-सिक्योरिटी लैब में चीन ने EUV लिथोग्राफी मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया है, जो भविष्य में AI, स्मार्टफोन और सैन्य चिप्स बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है

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रिमझिम सिंह   
Last Updated- December 18, 2025 | 3:42 PM IST

चीन ने एडवांस सेमीकंडक्टर तकनीक में पश्चिमी देशों पर निर्भरता खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, चीन के शेनझेन शहर की एक बेहद सुरक्षित लैब में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन का प्रोटोटाइप बनाया है, जो दुनिया के सबसे एडवांस चिप्स बनाने में काम आती है। यह प्रोजेक्ट साल 2025 की शुरुआत में पूरा हुआ और अब इसकी टेस्टिंग चल रही है।

चीन ने EUV लिथोग्राफी मशीन का प्रोटोटाइप बनाया है। यह मशीन सेमीकंडक्टर चिप बनाने की सबसे आधुनिक तकनीक मानी जाती है। इसी मशीन से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), स्मार्टफोन और आधुनिक हथियारों में इस्तेमाल होने वाले चिप्स बनते हैं। अब तक पूरी दुनिया में यह तकनीक सिर्फ एक ही कंपनी के पास थी- नीदरलैंड की कंपनी ASML।

EUV मशीन बेहद पतली रोशनी (एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट लाइट) का इस्तेमाल करके सिलिकॉन पर बहुत छोटे-छोटे सर्किट बनाती है। सर्किट जितने छोटे होते हैं, चिप उतनी ज्यादा ताकतवर होती है। AI प्रोसेसर, हाई-एंड मोबाइल फोन और आधुनिक रक्षा सिस्टम के लिए यह तकनीक बहुत जरूरी है।

चीन कितना आगे पहुंच चुका है?

रॉयटर्स के मुताबिक, चीन की बनाई मशीन काम कर रही है और EUV लाइट पैदा करने में सफल हो चुकी है। लेकिन अभी तक इससे पूरी तरह काम करने वाली चिप नहीं बनी है। चीन सरकार का लक्ष्य है कि 2028 तक इस मशीन से चिप बनाई जाए। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 2030 तक यह लक्ष्य पूरा हो सकता है।

इस प्रोजेक्ट को इतना गुप्त क्यों रखा गया?

यह प्रोजेक्ट चीन की सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता योजना का हिस्सा है, जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक है। इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा बताया गया है। लैब के बाहर किसी को भी यह नहीं पता कि अंदर क्या बन रहा है।

इसे ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ क्यों कहा जा रहा है?

रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इस योजना की तुलना अमेरिका के मैनहैटन प्रोजेक्ट से की जा रही है, जिसके तहत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम बनाया गया था। चीन का मकसद है कि भविष्य में वह पूरी तरह चीन में बनी मशीनों से एडवांस चिप्स बना सके और अमेरिकी सप्लाई चेन पर निर्भर न रहे।

चीन को इतनी विशेषज्ञता कैसे मिली?

इस प्रोजेक्ट में ASML के कई पूर्व इंजीनियर शामिल हैं। कुछ इंजीनियरों को तो नकली नामों से पहचान पत्र दिए गए। लैब के अंदर करीब 100 नए ग्रेजुएट इंजीनियर मशीन के अलग-अलग हिस्सों को खोलकर दोबारा जोड़ने का काम कर रहे हैं। हर डेस्क पर कैमरे लगे हैं और सफल काम के लिए बोनस भी दिया जाता है।

मशीन कैसी दिखती है?

ASML की EUV मशीन स्कूल बस जितनी बड़ी होती है और करीब 180 टन वजनी होती है। चीन की बनाई मशीन इससे भी बड़ी है और दिखने में थोड़ी कच्ची (क्रूड) है, लेकिन टेस्टिंग के लिए काम कर रही है। इसकी सबसे बड़ी कमजोरी अभी ऑप्टिक्स (आईने) हैं। पश्चिमी देशों की मशीनों में जर्मनी की कंपनी Carl Zeiss के बेहद सटीक आईने लगते हैं, जिन्हें बनाना बहुत मुश्किल होता है।

हालांकि चीन अभी पश्चिमी देशों की बराबरी पर नहीं पहुंचा है, लेकिन EUV मशीन का काम करता हुआ प्रोटोटाइप बनाना बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। इससे साफ है कि चीन सेमीकंडक्टर तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

First Published : December 18, 2025 | 3:38 PM IST