प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
कई टैक्सपेयर्स के पास इन दिनों इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से ईमेल आ रही हैं। इनमें उनकी एनुअल इन्फॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) में दर्ज बड़े-बड़े ट्रांजेक्शन का जिक्र होता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये ईमेल कोई टैक्स की डिमांड नहीं हैं, बल्कि सिर्फ लोगों को याद दिलाने और कंप्लायंस पूरा करने के लिए भेजी जा रही हैं।
AIS में वो सारी जानकारी होती है जो बैंक, रजिस्ट्रार और दूसरे रिपोर्टिंग संस्थान पैन नंबर से लिंक करके डिपार्टमेंट को भेजते हैं। इसमें बड़े बैंक डिपॉजिट, म्यूचुअल फंड की खरीद-बिक्री, प्रॉपर्टी डील जैसी हाई वैल्यू डील्स दिखाई जाती हैं। लेकिन हर बड़ा ट्रांजेक्शन टैक्स देने लायक आय नहीं होता। ज्यादातर मामलों में ये तो सिर्फ पैसों का एक जगह से दूसरी जगह जाना भर होता है।
1 Finance में पर्सनल टैक्स की हेड नियति शाह कहती हैं, “बड़े बैंक डिपॉजिट, म्यूचुअल फंड में निवेश या रिडेम्प्शन, या प्रॉपर्टी का लेन-देन अक्सर कैपिटल मूवमेंट होते हैं, आय नहीं। असल में मायने ये रखता है कि उस साल ट्रांजेक्शन से कोई टैक्स देने वाली इनकम बनी या नहीं और अगर बनी तो उसे रिटर्न में सही-सही दिखाया गया या नहीं।”
डी.एम. हरिश एंड कंपनी के एडवोकेट हरी रायजा बताते हैं कि कई आम बड़े ट्रांजेक्शन कानून के मुताबिक टैक्स के दायरे में ही नहीं आते। मिसाल के तौर पर करीबी रिश्तेदारों से मिला गिफ्ट, विरासत में मिली संपत्ति, शादी के मौके पर आए तोहफे, पहले निकाले गए कैश को दोबारा जमा करना, खेती से होने वाली कमाई और संपत्ति बेचने से मिली रकम टैक्स के दायरे में ही नहीं आते। हालांकि इन सबके लिए टैक्सपेयर्स को ये साबित करना पड़ सकता है कि पैसा कहां से आया, ट्रांजेक्शन असली है और देने वाले की हैसियत क्या थी।
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एक्सपर्ट्स की सलाह है कि AIS में कोई एंट्री दिखते ही घबराकर रिवाइज्ड रिटर्न दाखिल करने की जल्दबाजी न करें। नियति शाह कहती हैं, “अगर डेटा ही गलत है, डुप्लीकेट है या गलत पैन से जुड़ा हुआ है तो सबसे पहले AIS पर फीडबैक दें।” जैसे म्यूचुअल फंड की एक ही खरीद दो-दो बार दिख रही हो या किसी और का ट्रांजेक्शन आपके नाम पर आ गया हो।
सिंघानिया एंड कंपनी की पार्टनर रितिका नैयर बताती हैं कि रिवाइज्ड या बिलेटेड रिटर्न तभी दाखिल करना चाहिए जब AIS का डेटा सही हो लेकिन आपने कोई इनकम छुपाई हो, जैसे ब्याज, डिविडेंड या कैपिटल गेन। एक आम गलती ये होती है कि लोग AIS पर ‘इन्फॉर्मेशन सही है’ मार्क कर देते हैं लेकिन रिटर्न अपडेट नहीं करते, जिससे दिक्कत बनी रहती है।
इन ईमेल को लगातार इग्नोर करने के गंभीर नतीजे हो सकते हैं। हरी रायजा कहते हैं, “अगर अंतर नहीं सुलझाया गया तो डिपार्टमेंट री-असेसमेंट या स्क्रूटनी शुरू कर सकता है। बार-बार नजरअंदाज करने पर टैक्स डिमांड, ब्याज, पेनल्टी और गंभीर मामलों में मुकदमा तक हो सकता है।”
रितिका नैयर के मुताबिक शुरुआती संकेत होते हैं – बार-बार ‘बड़ी गड़बड़ी’ का अलर्ट आना, रिफंड अटक जाना या टैक्स पोर्टल के ई-प्रोसीडिंग टैब में नई एंट्री दिखना। ये दिखाता है कि मामला अब ऑटोमेटिक याद दिलाने से आगे बढ़कर मैनुअल जांच के स्तर पर पहुंच गया है।
एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि AIS की एंट्रीज को जल्दी चेक करें, अपने रिकॉर्ड से मिलाएं, जहां जरूरी हो पोर्टल पर फीडबैक दें और 31 दिसंबर की डेडलाइन से पहले जरूरत पड़े तो रिटर्न रिवाइज कर लें, ताकि बात आगे न बढ़े।