निपाह वायरस ने विदेश के साथ ही देश में भी हड़बड़ी मचाई है मगर केंद्र सरकार से इससे निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया से एंटीबॉडी आयात की जल्दबाजी नहीं करेगी। केरल में निपाह का संक्रमण कुछ लोगों में दिखा मगर सभी व्यक्तियों की हालत में सुधार देखा जा रहा है, जिस कारण सरकार ने यह फैसला किया है।
मगर मरीजों को खतरे से बाहर देखकर सरकार बेपरवाह नहीं हो गई है बल्कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर देश में ही एंटीबॉडी बनाने के लिए वह सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) से बात कर रही है। निपाह का प्रकोप पिछले पांच साल से लगातार बढ़ता रहा है, जिसे देखते हुए ही सरकार इलाज के लिए भारत में ही मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (मैब) बनाने पर विचार कर रही है।
सीरम इंस्टीट्यूट टीका बनाने के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। उसने सरकार के साथ बातचीत की खबर पर कोई भी टिप्पणी नहीं की। इस बीच केरल में निपाह की दूसरी लहर नहीं आने और स्थिति नियंत्रण में होने पर वहां की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने राहत जताई है। फिर भी राज्य में 1,200 से अधिक लोगों को संक्रमण की आशंका के कारण कड़ी निगरानी में रखा गया है।
केरल में अब तक निपाह संक्रमण के कई मामले मिले हैं, जिनमें से दो लोगों की कोझिकोड जिले में मौत भी हो चुकी है। मगर सभी संक्रमित सुरक्षित बताए जा रहे हैं, जिनमें एक बच्चा भी शामिल है, जिसकी हालत पिछले शनिवार तक गंभीर थी। 13 सितंबर को राज्य सरकार ने एंटीबॉडी की 50 खुराक आयात करने की मांग की थी। इसके बाद आईसीएमआर शुरू में कम से कम 20 खुराक आयात करने की योजना बना रहा था।
एम 102.4 नामक दवा पहले ऑस्ट्रेलिया में हेंड्रा वायरस के इलाज के लिए तैयार की गई थी। यह भी पशु से मनुष्य में आने वाली यानी जूनोटिक बीमारी है, जो बेहद दुर्लभ है। निपाह की तरह ही चमगादड़ को हेंड्रा वायरस का कारण माना जाता है। एंटीबॉडी का नैदानिक परीक्षण पूरा नहीं होने के कारण इसे अभी भी नाम नहीं दिया गया है बल्कि अलग-अलग किस्मों को अलग-अलग संख्या दे दी गई है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, ‘सरकार तत्काल आयात का विकल्प शायद नहीं चुनेगी क्योंकि क्योंकि आपात स्थिति में वह 24 घंटे के भीतर इसका आयात कर सकती है।’ यहां ध्यान रखना होगा कि एंटीबॉडी विनिर्माण के 63 सप्ताह बाद तक ही कारगर रहती है। इसीलिए 2018 के प्रकोप के दौरान आयात की गई सभी 20 खुराकें बरबाद हो गई थीं।
सूत्रों के अनुसार भारत और ऑस्ट्रेलिया सरकार के बीच बातचीत चल रही है। केरल में मई 2018, जून 2019, सितंबर 2021 और सितंबर 2023 में लगातार निपाह संक्रमण का प्रकोप फैलना देश के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। नतीजतन सरकार आपात स्थितियों से निपटने के लिए देश के भीतर ही एम 102.4 दवा का उत्पादन करने के लिए एसआईआई के साथ बातचीत कर रही है।
विशेषज्ञों की मानें तो एंटीबॉडी का आयात नहीं करने पर केंद्र सरकार पहले चरण का परीक्षण करने का मौका गंवा सकती है। आईसीएमआर के महामारी और संक्रामक बीमारियों के पूर्व प्रमुख रमन गंगाखेडकर ने कहा, ‘साल 2018 में भी हम पहले चरण का परीक्षण करने की कोशिश कर रहे थे।
मगर मई तक इसका प्रकोप खत्म हो गया था और हमें 4 जून को मैब मिला। इसलिए परीक्षण पूरा नहीं हुआ। हमारे पास पहले चरण के परीक्षण के लिए प्रोटोकॉल भी मौजूद था।’ चिंता की बड़ी बात यह है कि निपाह संक्रमण का कोई कारगर इलाज ही नहीं है।