तालाब या नदी से पकड़ी गई मछली तो आपने खूब खाई होगी, अब मछली पकड़े और मारे बगैर ही उसका जायका लेने को तैयार रहिए। कोच्चि में केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) प्रयोगशाला में मछली का गोश्त तैयार करने के लिए कमर कस रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अधीन इस संस्थान ने इसके लिए नीट मीट बायोटेक के साथ करार किया है। मीट नीट बायोटेक प्रयोगशाला में मछली का मांस तैयार करने के लिए काम वाला स्टार्टअप है।
वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बताया कि शुरुआत में किंग फिश, पोम्फ्रेट और सीर फिश जैसी महंगी समुद्री मछलियों की कोशिकाओं से मांस बनाने पर काम चल रहा है। प्रयोगशाला में मांस बनाने के लिए पूरी दुनिया में शोध हो रहा है। इजरायल, अमेरिका, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में यह काम पहले ही चल रहा है मगर अभी तक किसी ने इसे बड़े और व्यावसायिक स्तर पर शुरू नहीं किया है।
प्रयोगशाला में बने मांस या वैकल्पिक प्रोटीन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी निवेश किया जा रहा है। कुछ अध्ययनों के मुताबिक 2035 तक दुनिया भर में वैकल्पिक प्रोटीन का बाजार 290 अरब डॉलर का हो जाएगा। बड़ी वैश्विक एजेंसियां मान रही हैं कि 2040 तक दुनिया में गोश्त के 4 फीसदी से 60 फीसदी बाजार पर इसी का कब्जा हो जाएगा।
सीएमएफआरआई की आज जारी आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक परियोजना का मकसद भारत को कृत्रिम तौर पर तैयार किए गए मछली के मांस में आगे लाना और वन्य संसाधनों पर ज्यादा बोझ डाले बगैर समुद्री खाद्य की बढ़ती जरूरत पूरी करना है।
विज्ञप्ति में कहा गया, ‘कल्टीवेटेड या प्रयोगशाला में तैयार किया गया मछली का मांस तैयार करने के लिए मछली की कुछ खास कोशिकाएं अलग की जाती हैं और प्रयोगशाला में पशु घटकों से एकदम रहित माध्यम में उन्हें बढ़ाया जाता है। अंत में जो सामग्री बनकर तैयार होगी, वह मछली के असली मांस जैसा स्वाद देगी, उसकी बनावट मांस की तरह होगी और मछली में मौजूद समूचा पोषण उसमें भी होगा।’
सीएमएफआरआई के समुद्री जैवप्रौद्योगिकी, मत्स्य पोषण एवं स्वास्थ्य विभाग में प्रधान वैज्ञानिक डॉ काजल चक्रवर्ती ने बताया, ‘हम इसे ‘अहिंसा मछली का मांस’ भी कहते हैं क्योंकि इसके लिए किसी भी मछली को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है। लेकिन हम मछली की कोशिकाएं अलग कर खास माध्यम में उन्हें उगा रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि शुरुआत में यही लग रहा है कि प्रयोगशाला में बना मछली का गोश्त असली मछली की तरह ही स्वाद देगा। उसकी बनावट और रंग भी वैसी ही होगी मगर आकृति शायद उस तरह की नहीं होगी। डॉ चक्रवर्ती ने कहा कि मांस कब तक बनकर तैयार होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता।
सीएमएफआरआई इन मछलियों की कोशिकाएं अलग कर उन्हें अनुसंधान तथा विकास के लिए उगाएगा। सेल कल्चर प्रौद्योगिकी में माहिर नीट मीट कोशिकाएं उगाने वाले माध्यम को अधिक से अधिक सक्रिय बनाएगा और बायोरिएक्टर के जरिये उत्पादन भी बढ़ाएगा। परियोजना के लिए जरूरी सामग्री, कर्मचारी और अन्य उपकरण भी वही मुहैया कराएगा।