केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कल देर रात कहा कि सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत में गतिरोध दूर करने के लिए अगले पांच साल तक पांच फसलों – मसूर, उड़द, अरहर, मक्का और कपास – की पूरी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि नेफेड, एनसीसीएफ और भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के जरिये की जाने वाली खरीद समझौदते के तहत होगी। इससे एमएसपी का दायरा धान एवं गेहूं से आगे ले जाने में मदद मिलेगी।
फिलहाल यह साफ नहीं है कि एमएसपी पर ये फसलें उन्हीं किसानों से खरीदी जाएंगी, जिन्होंने अपनी खेती में गेहूं और धान के अलावा विविधता लाने पर जोर दिया है या सभी से खरीदी जाएंगी।
मंत्री ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘एनसीसीएफ (राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ) और नेफेड (भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ) जैसी सहकारी समितियां उपज खरीदने के लिए अरहर, उड़द, मसूर या मक्का उगाने वाले किसानों के साथ समझौते करेंगी। अगले पांच साल तक उनकी फसल एमएसपी पर खरीदी जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘एमएसपी पर खरीद के लिए कोई मात्रा तय नहीं की जाएगी और इसके लिए एक पोर्टल तैयार किया जाएगा।’
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह प्रस्ताव भी दिया कि भारतीय कपास निगम किसानों के साथ कानूनी समझौता करने के बाद अगले 5 साल तक कपास की खरीद एमएसपी पर करेगा।
जवाब में किसान नेताओं ने कहा कि वे इस प्रस्ताव पर अपने साथी सदस्यों के साथ चर्चा करेंगे और एक-दो दिन में अपना निर्णय बताएंगे। मगर किसान एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की अपनी मुख्य मांग से पीछे हटते नहीं दिख रहे हैं।
कुछ महीने पहले गृह मंत्री अमित शाह ने एक राष्ट्रीय पोर्टल शुरू किया था, जिसके जरिये किसान एमएसपी या बाजार मूल्य पर उड़द की फसल बेच सकते हैं। उन्होंने कहा था कि कुछ अन्य फसलों के लिए भी ऐसी सुविधा दी जाएगी।
नीति आयोग के सदस्य और जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री डॉ रमेशचंद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एमएसपी पर 5 फसलों की खरीद का नया प्रस्ताव कपास और मक्का के लिए संभव लगता है, लेकिन दलहन (यानी अरहर, उड़द और मसूर) के मामले में किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा क्योंकि उनकी प्रति हेक्टेयर उपज काफी कम है।’
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष डॉ एस महेंद्र देव ने कहा कि अगर 5 फसलों के लिए मूल्य में अंतर का भुगतान किया जाए तो अच्छा रहेगा और इससे सरकारी खजाने पर भी मामूली असर होगा।
उन्होंने कहा, ‘यह प्रस्ताव किसानों को कुछ हद तक सुरक्षा उपलब्ध कराएगा और सरकार पर उसका वित्तीय बोझ भी अधिक नहीं होगा। हमेशा के लिए कानूनी गारंटी अच्छी बात नहीं होगी मगर पांच साल का करार बेहतर विकल्प है।’ फिलहाल केवल पंजाब और हरियाणा के किसान ही विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।