साल्ट लेक में पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग का मुख्यालय स्वास्थ्य भवन से करीब 100 मीटर दूर जूनियर डॉक्टरों का विरोध-प्रदर्शन जारी है और अब यह प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन गया है। भित्तिचित्रों से ढकी इलाके की दीवारें भी न्याय के लिए मुखर हैं और ‘स्वास्थ्य भवन साफ करो’ जैसे नारे लगातार गूंज रहे हैं। शिक्षक, आईटी क्षेत्र के कर्मचारी, चिकित्सक, गृहिणी आदि सभी तबके के लोग अपनी एकजुटता दिखाने के लिए इसमें शामिल हो रहे हैं। अनादर की भावना भी मंडरा रही है।
शनिवार को अप्रत्याशित तरीके के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धरना स्थल पर पहुंचने से माहौल नाटकीय तौर पर बदल गया। उन्होंने हड़ताली डॉक्टरों से काम पर लौटने का अनुरोध किया और उनकी मांगों को पूरा करने के लिए मोहलत भी मांगी।
देर शाम डॉक्टरों के साथ बैठक का एक बार फिर प्रयास किया गया मगर कार्यवाही का लाइव प्रसारण और वीडियोग्राफी कराने की मांग पर फिर विफल रह गया। फिर जब चिकित्सक बैठक की मिनटों का एक प्रति लेने के लिए तैयार हो गए तो इसे रद्द कर दिया गया।
आरजी कर चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में 31 वर्षीय स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या से गुस्साए पश्चिम बंगाल के जूनियर डॉक्टर पिछले 36 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को भी दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हड़ताली जूनियर डॉक्टरों को 10 सितंबर की शाम पांच बजे तक काम पर लौटने का आदेश दिया था कि मगर वह मियाद भी पूरी हो गई, लेकिन चिकित्सक काम पर नहीं लौटे।
प्रदेश के करीब साढ़े सात हजार चिकित्सक हड़ताल पर हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। सरकारी और निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने भी माना है कि जूनियर डॉक्टर स्वास्थ्य सेवाओं में काफी मायने रखते हैं। राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस भी सेवाओं के बाधित होने के बारे में बता रही है। शीर्ष अदालत में 9 सितंबर को हुई सुनवाई में पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रदेश के सभी सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर चले जाने से होने वाली परेशानियों को बताया।
गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में ममता बनर्जी ने कहा था कि 7 लाख से अधिक मरीजों का इलाज नहीं हो पा रहा है। शुक्रवार को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘जूनियर डॉक्टरों के लंबे समय से हड़ताल पर रहने के कारण यह काफी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान के कारण हमने अब तक 29 जिंदगियां गंवा दीं। शोक संतप्त परिवारों की मदद के लिए राज्य सरकार प्रत्येक मृतक के परिजन को 2-2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता करेगी।’
सत्तारूढ़ दल भी लंबे समय तक चले आ रहे इस विरोध प्रदर्शन से आमलोगों की दुर्दशा बयां कर रहा है। तो जूनियर डॉक्टरों की क्या मांगें हैं? आरजी कर मामले में पीड़िता को न्याय दिलाने के अलावा जूनियर डॉक्टरों की मांगों में कोलकाता पुलिस आयुक्त, स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक और चिकित्सा शिक्षा के निदेशक को हटाना शामिल है। नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर एक जूनियर डॉक्टर ने कहा कि चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पतालों में खतरे की संस्कृति भी खत्म होनी चाहिए।
शनिवार की शाम जूनियर डॉक्टरों की इन मांगों को तब बल मिला जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आरजी कर चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के पूर्व प्राचार्य संदीप घोष को सबूतों से छेड़छाड़ करने और संस्थान की जूनियर डॉक्टर से हुए इस जघन्य दुष्कर्म के बाद हत्या मामले में देरी से एफआईआर दर्ज कराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। ताला पुलिस थाना के प्रभारी को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया है। आरजी कर चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल उसी थाना क्षेत्र में स्थित है।
इस मामले में अब तक एक मात्र गिरफ्तारी एक सामाजिक कार्यकर्ता की हुई थी। घोष को इससे पहले कथित वित्तीय अनियमितताओं को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।
देर रात मीडिया से मुखातिब होते हुए जूनियर डॉक्टरों ने संकेत दिया कि घोष और पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी मुख्यमंत्री आवास पहुंचने के बाद ममता बनर्जी से मुलाकात रद्द हो सकती है।
प्रदेश के विपक्षी नेता और भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी ने भी एक्स पर पोस्ट किया कि मुख्यमंत्री और जूनियर डॉक्टरों के बीच होने वाली बैठक का एकमात्र कारण है कि बनर्जी इन गिरफ्तारियों से हतोत्साहित हो गई हैं। जारी गतिरोध के बीच रविवार को भी विरोध प्रदर्शन चलता रहा। जूनियर डॉक्टरों को अब सीनियर डॉक्टरों के साथ सभी तबके के नागरिकों का भी साथ मिलने लगा है क्योंकि आरजी कर में हुए दुष्कर्म और हत्या मामले ने उत्तरी बंगाल लॉबी वाले सिंडिकेट पर भी प्रकाश डाला है।
सीपीआई (एम) के पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘यह एक जन आंदोलन है। गानों, नारों और बैनर-पोस्टरों के जरिये वामपंथी विचारधाराओं को उतारने की कोशिश की जा रही है।’ उन्होंने कहा, ‘इस विरोध प्रदर्शन का स्वरूप और सामग्री मौजूदा सरकार के रवैये से अलग है, जो डॉक्टरों और मरीजों के बीच विभाजन पैदा करना चाहती है।’
अब सवाल उठता है कि क्या स्वास्थ्य सेवाओं के लगातार प्रभावित होने से बंगाल में एक नई समस्या पैदा होगी?
कोलकाता के सरकारी अस्पतालों को जिले में रेफरल अस्पताल माना जाता है। जूनियर डॉक्टरों के हड़ताल पर चले जाने से सबसे ज्यादा प्रभावित निचले तबके के लोग हो रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गतिरोध जारी रहने पर समस्या पैदा होगी।
राजनीतिक विश्लेषक सब्यसाची बसु रे चौधरी कहते हैं कि चूंकि गतिरोध बरकरार है, इसलिए समस्या पैदा हो रही है। उन्होंने कहा, ‘विरोध प्रदर्शन मुख्य तौर पर शहरी और कस्बाई इलाकों में मध्यवर्गीय आबादी के बीच केंद्रित हैं। जबकि, सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने वाले अधिकतर गरीब और कमजोर तबके के लोग होते हैं। इसलिए, इससे परेशानी खड़ी हो सकती है।’
भारतीय सांख्यिकीय संस्थान में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक रहे अभिरूप सरकार इसे समझाते हैं कि ममता बनर्जी की नीतियां खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए है और जूनियर डॉक्टरों की इस हड़ताल से इसी तबके को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘बंगाल के मध्यवर्गीय लोग, जिन्होंने कभी ममता बनर्जी को स्वीकार नहीं किया अब खुद को उनकी नीतियों से अलग महसूस कर रहे हैं और उनकी यही दबी हुई हताशा अब सड़कों पर देखने के लिए मिल रही है।’ राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती का मानना है कि बंगाल में मध्यवर्गीय और ममता बनर्जी की खैरात वाली राजनीति के बीच चल रहा यह संघर्ष लंबे अरसे तक जारी रह सकता है।