इस साल फरवरी की शुरुआत में अनिता श्याम (बदला हुआ नाम ) को गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसके चेहरे पर चोट लगी थी और पूरे शरीर पर कटने और जलने के निशान थे। झारखंड की रहने वाली यह नाबालिग एक घर में काम करती थी और वहां उसके मालिक जो एक युवा जोड़ा था जिसने उसे प्रताड़ित किया था। महिला एक बड़ी जनसंपर्क कंपनी में काम करती थी और उसका पति एक बीमा कंपनी में कार्यरत था।
पुलिस की जांच में पता चला कि 17 वर्षीय श्याम को दिल्ली की किसी अपंजीकृत निजी एजेंसी से 30,000 रुपये जमा कर काम पर रखा गया था। उसे हर महीने 10,000 रुपये दिए जाने थे, लेकिन पिछले पांच महीने में दंपती ने उसे एक भी रुपया नहीं दिया।
इस घटना के तीन महीने बाद यानी 31 मई को फिर से एक घरेलू नौकर से जुड़ी एक दिल दहलाने वाली खबर सामने आई। झारखंड के सिमडेगा से एक 15 वर्षीय किशोरी पिछले तीन महीने से लापता थी। उसका शव दिल्ली के राजौरी गार्ड के एक घर में लटका हुआ मिला था। शक था कि किसी अपंजीकृत प्लेसमेंट एजेंसी ने उसकी तस्करी की थी।
बंधुआ मजदूरी के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान समिति के राज्य संयोजक निर्मल गोराना इस मामले पर गंभीरता से काम कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि एजेंसी के पास कोई निबंधन संख्या नहीं थी और न संपर्क करने के लिए कोई व्यक्ति। उन्होंने कहा, ‘कुछ दिनों तक तो एजेंसी ने नाबालिग की घर लौटने की गुहार तक नहीं मानी। उसकी आत्महत्या के बाद पुलिस ने हमसे कहा कि झारखंड में जाकर प्राथमिकी कराएं। पुलिस का अजीब तर्क था कि अपराध वहीं से शुरू हुआ था।’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2021 में मानव तस्करी के 2,189 मामले दर्ज किए गए थे। यह साल 2020 से 27.7 फीसदी अधिक थे। तस्करी किए गए 6,533 पीड़ितों में से 2,877 नाबालिग थे।
घरेलू सहायकों के बाजार पर कोई नियम नहीं चलता है। इनके आधिकारिक आंकड़े विभिन्न पोर्टलों पर भिन्न रहते हैं। साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 47 लाख घरेलू कामगार थे। इस बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2011-12 ने इसे 39 लाख बताई थी। ई-श्रम पोर्टल पर जानकारी दी गई कि 30 जनवरी, 2023 भारत में 2.79 करोड़ घरेलू और सहायक कामगार हैं। इनमें से 2.67 करोड़ महिलाएं हैं।
अनौपचारिक अनुमानों से पता चलता है कि यह गणना सकल अनुमान से कम हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) दर्शाता है कि असल में यह संख्या 2 से 8 करोड़ के बीच हो सकती है।
गोराना कहते हैं, ‘स्थानीय एजेंट विशेष रूप से 12 से लेकर 32 वर्ष तक की महिलाओं को अपंजीकृत प्लेसमेंट एजेंसियों से जोड़ते हैं।’ अधिकतर महिलाएं झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान की होती हैं, जो नौकरी पाने से पहले दयनीय स्थिति में होती हैं। कार्यबल के प्रबंधन के लिए कोई उचित प्रणाली नहीं है।
इकनॉमिक और पॉलिटिकल वीकली की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके इन एजेंसियों के लिए भर्ती केंद्र होते हैं।
गोराना ट्रैकिंग सिस्टम की खामियों को दर्शाते हैं क्योंकि घरेलू कामगारों को अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 के तहत पंजीकृत नहीं किया जाता है। वह कहते हैं, ‘चूंकि तस्करी किए गए लोगों को कहां से लाया गया है और कहां भेजा जा रहा है इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रहता है, इसलिए ऐसे लोगों का पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है।’
भारत में चल रही ऐसे प्लेसमेंट एजेंसियों की संख्या का भी कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। इसके अलावा राष्ट्रीय महिला आयोग के कई प्रयासों के बाद भी किसी घर को कार्यस्थल के रूप में शामिल नहीं किया गया है।
केवल 10 राज्यों ने ही न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत घर में काम करने वालों के लिए न्यूनतम मजदूरी देना अनिवार्य किया है। इनमें महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब शामिल है। हालांकि, यहां धरातल पर न्यूनतम मजदूरी कानून कितना प्रभावी है इसकी अलग कहानी है।
यहां तक की राष्ट्रीय राजधानी में जहां बड़ी संख्या में प्रवासी लोग घरेलू कामगार के रूप में काम करते हैं वहां भी प्लेसमेंट एजेंसियों की कोई सटीक संख्या ज्ञात नहीं है।
दिल्ली प्राइवेट प्लेसमेंट एजेंसी (विनियमन) आदेश, 2014 के तहत प्रदेश के श्रम विभाग को शहर में काम करने वाली प्लेसमेंट एजेंसियों को लाइसेंस देना जरूरी होता है। आदेश में यह भी कहा गया है कि घरेलू सहायक मजदूरी नहीं मिलने पर, प्रताड़ित होने पर दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) में शिकायत कर सकते हैं।
न्यूनतम मजदूरी नियम का पालन कराने वाली दिल्ली की संस्था निर्मला निकेतन के संस्थापक सुभाष भटनागर ने कहा, ‘श्रम विभाग प्लेसमेंट एजेंसियों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखता है।’
भटनागर 2017 में निर्मला निकेतन के लिए लाइसेंस लेने की कोशिश के बारे में बताते हैं। वह याद करते हैं कि विभाग के अधिकारी इससे अनजान थे। उनके पास लाइसेंस जारी करने के लिए कोई प्रक्रिया ही नहीं थी।
बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब से पता चलता है कि दिल्ली श्रम विभाग के पास इन एजेंसियों को जारी किए गए लाइसेंस का कोई आंकड़ा ही नहीं है। साल 2014 से विभाग ने 49 एजेंसियों पर जुर्माना लगाया है, जिनमें 41 एजेंसियों पर केवल साल 2021 में जुर्माना लगाया गया। डीसीडब्ल्यू को भेजे गए आरटीआई का अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
घरों में काम करने वालों की स्थिति काफी भयावह है। राष्ट्रीय घरेलू कामगार आंदोलन की जिला संयोजक रेखा जाधव का कहना है कि प्लेसमेंट एजेंसियां न तो घर में काम करने वालों को उनके काम बताती हैं, न उन्हें रखने वालों के साथ कोई नियम तय करती है। वह कहती हैं, ‘कई बार तो घर में काम करने वालों को बिना बताए गंभीर मरीजों के साथ छोड़ दिया जाता है।’ एक बार काम पर रखाने के बाद उनके लिए काम छोड़ना बगैर किसी हेल्पलाइन नंबर के बहुत मुश्किल हो जाता है।
जाधव कहती हैं, ‘एजेंसी और काम पर रखने वाले लोगों के बीच पैसे का लेनदेन किया जाता है, जिसके बारे में कामगारों को जानकारी नहीं होती है।’