facebookmetapixel
भारत में उत्पाद मानकों की जटिलता: बीआईएस मॉडल में बदलाव की जरूरतGST दरें कम होने से इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर्स में ग्राहकों की बढ़ी भीड़, बिक्री में तेज उछाल की उम्मीदनवरात्र की शुरुआत के साथ कार शोरूम में बढ़ी रौनक, फेस्टिव सीजन में बिक्री का नया रिकॉर्ड संभवआईटी कंपनियां H-1B वीजा पर कम करेंगी निर्भरता, भारत में काम शिफ्ट करने की तैयारीH-1B वीजा फीस का असर: IT शेयरों में 6 महीने की सबसे बड़ी गिरावट, निवेशकों के ₹85,000 करोड़ डूबेबैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स ने इक्विटी में बढ़ाया निवेश, 1 साल में 42% से बढ़कर 55% तक पहुंचा एक्सपोजरऐक्सिस फ्रंट-रनिंग मामला: SAT ने SEBI को और दस्तावेज साझा करने के दिए निर्देशकल्याणी इन्वेस्टमेंट ने IIAS की मतदान सलाह का विरोध किया, कहा- अमित कल्याणी पर विवाद लागू नहींब्रोकरों की तकनीकी गड़बड़ियों से निपटने के नियमों में होगा बदलाव, ‘टेक्नीकल ग्लिच’ का घटेगा दायराH-1B वीजा फीस से टूटा शेयर बाजार: आईटी शेयरों ने सेंसेक्स और निफ्टी को नीचे खींचा

विकास के दीयों से रोशन धारावी का कुंभारवाडा, वैश्विक बाजार में भी धूम

कुंभारवाडा को मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और अदाणी फाउंडेशन के लिए लाखों दीये बनाने का बड़ा ठेका मिला है।

Last Updated- October 27, 2024 | 10:45 PM IST
Kumbharwada of Dharavi illuminated with lamps of development, also booming in the global market विकास के दीयों से रोशन धारावी का कुंभारवाडा, वैश्विक बाजार में भी धूम

प्रकाश पर्व दीपावली की आहट ने देश भर के बाजारों को गुलजार कर दिया है तो एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी का कुंभारवाडा भी अंधेरे में क्यों रहता। इस बार वहां ग्राहकों का जमावड़ा तो है ही, मुंबई हवाई अड्डे को अपने हाथ से बनाए दीयों से जगमगाते देखने का उत्साह भी है। दीयों के निर्यात में पहले से ही अव्वल कुंभारवाडा को इस बार मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और अदाणी फाउंडेशन के लिए लाखों दीये बनाने का बड़ा ठेका मिला है और दीवाली पर हवाई अड्डा यहीं के दीयों से रोशन होगा।

कुंभारवाडा का नाम दीयों और मिट्टी के खूबसूरत सामान के लिए पहले ही देश-दुनिया में फैला हुआ है। इसी वजह से इसे पॉटरी विलेज का नाम भी मिला है। 1932 में गुजरात से विस्थापित होकर आए कुम्हार परिवारों ने धारावी में कुंभारवाडा बसाकर उसे दीयों का सबसे बड़ा बाजार बना दिया। 12.5 एकड़ में फैले इस इलाके में 1,000 से ज्यादा परिवार दीये, बर्तन और सजावटी सामान बनाते हैं। साल भर में यहां करीब 12 करोड़ दीये बनाए जाते हैं। साथ ही यहां मिट्टी से बर्तन बनाने के हुनर (पॉटरी) को तराशने की कार्यशाला भी है, जहां हजारों लोग यह कला सीखने आते हैं।

कुंभारवाडा में लगभग सभी लोग गुजराती मूल के हैं और मूल रूप से सौराष्ट्र से हैं। लेकिन अब ज्यादातर लोग मराठी ही बोलते हैं। बस्ती के चारों ओर झुग्गियां उगीं और खुले मैदान कंक्रीट के जंगल बन गए, जिससे मिट्टी के बर्तनों का व्यवसाय भी शक्ल बदलने लगा।

मगर मांग और बिक्री कम नहीं हुई। कुंभारवाडा में चाक घुमाते नंदी परमार बताते हैं कि उनके पुरखे मिट्टी खेतों से लाते थे मगर उन्हें राजकोट और भावनगर से मिट्टी मंगानी पड़ती है। ढुलाई की लागत ज्यादा है मगर यह सब मेक इन इंडिया को साकार कर रहा है। कला के कद्रदानों की कमी नहीं है, इसलिए उनका कारोबार भी चमक रहा है।

कुंभारवाडा के दीयों को अब वैश्विक बाजार मिल गया है। पीढ़ियों से यहां काम कर रहे हसमुख भाई परमार बताते हैं कि कुंभारवाडा में बने दीये अमेरिका, दुबई और लंदन तक जाते हैं। थोड़ माल पानी के जहाज से और थोड़ा हवाई जहाज से जाता है। कारोबारियों के मुताबिक सालाना 60-70 लाख दीये विदेश जाते हैं।

साथ ही मिट्टी के बर्तन और सजावटी सामान भी निर्यात किया जाता है। स्कूल-कॉलेज के छात्रों कारीगरी का हुनर सिखाने वाले नरोत्तम टांक बताते हैं कि उनके पास बने डिजाइनर दीये अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और खाड़ी देशों तक जाते हैं। अब तो इनकी ऑनलाइन बिक्री भी होने लगी है।

इस साल दीवाली पर मुंबई हवाई अड्डा भी कुंभारवाडा के दीयों से ही जगमगाएगा। धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (डीआरपीपीएल) की पहल धारावी सोशल मिशन ने धारावी के कुंभारवाडा से करीब 10 लाख दीयों का ऑर्डर दिया है। इनका इस्तेमाल मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड अपने यात्री जुड़ाव कार्यक्रम के लिए करेगा और अदाणई फाउंडेशन त्योहारों पर जागरूकता अभियान में इनका प्रयोग करेगा। इससे करीब 500 कारीगरों और उनके साथियों को फायदा हुआ है। कुंभारवाडा पॉटर्स एसोसिएशन के सदस्य हनीफ गलवानी बताते हैं कि उनकी बस्ती को आज तक इससे बड़ा ऑर्डर नहीं मिला। इससे बिक्री के साथ विरासत आगे बढ़ाने में भी मदद मिलती है।

कुंभारवाडा पांच गलियों में बसा है, जहां 120 से ज्यादा भट्ठियां हैं। घरों के बाहर और इर्दगिर्द दीये और मिट्टी के दूसरे उत्पाद फैले रहते हैं, भीतर कार्यशाला होती हैं और ऊपर की मंजिलों पर लोग रहते हैं। धारावी प्रजापति सहकारी उत्पादक संघ के अध्यक्ष कमलेश चित्रोदा बताते हैं कि यहां हर कुम्हार परिवार साल भर में औसतन 1 लाख दीये बनाता है। इससे महीने में 15,000 से 20,000 रुपये उसे मिल जाते हैं।

साल में यहां से 10-12 करोड़ दिये बिक जाते हैं, जिनमें से करीब 60 लाख दीये विदेश जाते हैं। यहां मिट्टी के सामान का सालाना कारोबार 1,000 करोड़ रुपये से पार जा चुका है। इन दिनों दीवाली की खरीदारी के लिए गोवा, सोलापुर, नागपुर, नाशिक, सूरत और वडोदरा से बड़ी तादाद में व्यापारी यहां आ रहे हैं।

पॉटरी का प्रशिक्षण देने वाले यूसुफ गलवानी बताते हैं कि आर्किटेक्ट, इंटीरियर डेकोरेटर और पॉटरी कलाकार काम सीखने आ रहे हैं, जिनके लिए औसतन 7,000 रुपये महीने के शुल्क पर छह महीने की कक्षाएं चलाई जाती हैं। यहां पर्यावरण का ध्यान रखने के लिए जैव ईंधन से चलने वाली भट्ठियां लगाई गई हैं।

कुम्हार परिवारों में ज्यादातर पुरुष चाक चलाते हैं और महिलाएं मिट्टी का गोला बनाने से लेकर दीयों की सजावट तक कई तरह के काम करती हैं। एक औसत परिवार रोजाना 2 से 5 हजार तक दीये बना लेता है, जिसमें स्कूल-कॉलेज से लौटे बच्चे भी मदद करते हैं। भट्ठी संभालना, दीये और बर्तन को गेरू से रंगना और चित्रकारी करना नई पीढ़ी का ही काम है।

First Published - October 27, 2024 | 10:45 PM IST

संबंधित पोस्ट