रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) अब हथियारों और रक्षा प्रणालियों की खरीद में प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया (competitive bidding process) का विस्तार करने जा रहा है। इससे प्राइवेट डिफेंस कंपनियों को ज्यादा अवसर मिलने की संभावना है। डिफेंस सेक्रेटरी राजेश कुमार सिंह (Rajesh Kumar Singh) ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि यह निर्णय उन उपकरणों के लिए लिया गया है, जिनके निर्माण की क्षमता भारतीय निजी उद्योग (Indian private industry) ने स्थापित कर ली है। सरकार के इस कदम से प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ेगी और रक्षा उत्पादन में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।
यह कदम सरकार की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत नॉमिनेशन प्रक्रिया से हटकर प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है। नॉमिनेशन प्रक्रिया में रक्षा खरीद अनुबंधों (defence procurement contracts) को बिना टेंडरिंग प्रक्रिया के सीधे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (DPSUs) को दिया जाता था।
उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि DPSUs के रक्षा उत्पादन का बड़ा हिस्सा अब भी नॉमिनेशन के जरिए सुरक्षित होता है। हालांकि, प्राइवेट डिफेंस कंपनियां लंबे समय से इस सिस्टम में बदलाव की मांग कर रही थीं, ताकि सभी कंपनियों के लिए समान अवसर (Level Playing Field) सुनिश्चित किया जा सके।
डिफेंस सेक्रेटरी ने जोर देकर कहा कि जनता के पैसों (public funds) के उपयोग को ध्यान में रखते हुए रक्षा खरीद प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक जारी रखना आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने कहा कि डिफेंस इंडस्ट्री में कारोबार को सुगम बनाना (Ease of Doing Business) इस वर्ष रक्षा मंत्रालय (MoD) की प्राथमिकता होगी। यह कदम मंत्रालय के 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ (Year of Reforms) के रूप में मनाने के फैसले के अनुरूप है।
रक्षा मंत्रालय डिफेंस सेक्टर में औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रक्रिया को तेज करने पर जोर दे रहा है और कारोबार को आसान बनाने के लिए अतिरिक्त कदम उठा रहा है। डिफेंस सेक्रेटरी राजेश कुमार सिंह ने कहा, “यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें मंत्रालय की कई शाखाएं शामिल हैं, विशेष रूप से रक्षा उत्पादन विभाग (Department of Defence Production), उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) और पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) के साथ मिलकर काम किया जा रहा है।”
Also read: Tesla का भारत में पहला शोरूम मुंबई के BKC में खुलेगा, ₹35.26 लाख होगा मंथली किराया
डिफेंस सेक्रेटरी सिंह ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत, प्राइवेट सेक्टर की चिंताओं पर चर्चा की जाएगी, जिनमें सैन्य खरीद में नॉमिनेशन प्रणाली और “नो-कॉस्ट, नो-कमिटमेंट” नीति शामिल हैं। इस नीति के तहत पूंजीगत खरीद (capital procurements) के लिए उत्पाद परीक्षणों का खर्च सरकार नहीं उठाती और न ही परीक्षण के बाद खरीद की कोई गारंटी देती है। इन मुद्दों पर सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। इसके साथ ही, भारत को डिफेंस एक्सपोर्ट में वैश्विक नेता बनाने की दिशा में भी कदम उठाए जाएंगे, जो ‘सुधारों के वर्ष’ (Year of Reforms) की प्रमुख रणनीति का हिस्सा है।
सिहं ने कहा, “रक्षा मंत्रालय अपने मौजूदा प्रयासों के तहत रक्षा निर्यात-अनुमोदन प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने के तरीकों पर काम कर रहा है। इसके लिए वह विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) के साथ परामर्श और समन्वय कर रहा है।” एक संभावित कदम सकारात्मक और नकारात्मक रक्षा निर्यात सूची (Positive and Negative Defence Export Lists) तैयार करना हो सकता है, जिससे निर्यात प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाया जा सके।
व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) को बढ़ाने के व्यापक एजेंडे के अलावा, रक्षा खरीद प्रक्रिया को “महत्वपूर्ण रूप से” छोटा करने की योजना भी जारी है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने पिछले सप्ताह की अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि यह प्रक्रिया अगले तीन महीनों में, जून की शुरुआत तक पूरी होने की उम्मीद है। वहीं, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में प्रक्रियागत सुधार, जिसका उद्देश्य भारत की रक्षा खरीद नीति को अधिक प्रभावी बनाना है, सितंबर की शुरुआत तक पूरा होने की संभावना है।
हाल ही में अतिरिक्त सचिव (additional secretary) और महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है, जो इन प्रक्रियागत सुधारों को आगे बढ़ाने का काम करेगी। रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाना भी ‘सुधारों के वर्ष’ (Year of Reforms) के प्रमुख एजेंडा में शामिल है।
Also read: Trump ने मेक्सिको-कनाडा के ऑटोमोबाइल टैरिफ पर ब्रेक लगाया, नए टैरिफ एक महीने के लिए टाले
2023-24 में भारत का कुल रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड ₹1.27 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जिसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी ₹26,675 करोड़ (20.93%) रही। इस साल रक्षा उत्पादन में 17.25% की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले सात वर्षों में सबसे अधिक रही। भारत का घरेलू रक्षा उद्योग तेजी से विस्तार कर रहा है, जिसमें 16 रक्षा सार्वजनिक उपक्रम (DPSUs), 430 लाइसेंस प्राप्त कंपनियां और लगभग 16,000 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) शामिल हैं।
उसी वर्ष, भारत के रक्षा निर्यात ने रिकॉर्ड ₹21,083.35 करोड़ का स्तर छू लिया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.45% अधिक था। इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी ₹13,119 करोड़ (62.22%) रही।
2020-21 से सशस्त्र बलों के पूंजीगत अधिग्रहण बजट का एक बड़ा हिस्सा घरेलू खरीद के लिए आवंटित किया जा रहा है। 2025-26 के लिए, ₹1.49 लाख करोड़ के कुल पूंजीगत अधिग्रहण बजट में से ₹1.115 लाख करोड़ (75%) घरेलू खरीद के लिए निर्धारित किया गया है। इसमें से ₹27,886.21 करोड़ (घरेलू बजट का 25%) निजी कंपनियों के लिए आवंटित किया गया है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के स्पेशल सेंटर फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर लक्ष्मण कुमार बेहरा ने कहा, “डिफेंस सेक्टर 2001 तक एक बंद क्षेत्र था, और प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को वास्तव में 2014 में गति मिली। नॉमिनेशन प्रोसेस से हटने की प्रक्रिया 2016 की रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure – DPP 2016) से शुरू हुई, जिसे बाद में 2020 में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP 2020) से बदल दिया गया। अब रक्षा खरीद नियमों को इस बदलाव के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “अब भी प्रमुख रक्षा प्लेटफॉर्म नॉमिनेशन प्रक्रिया के तहत खरीदे जाते हैं, लेकिन नए रक्षा प्लेटफॉर्म के लिए प्रतिस्पर्धी बोली प्रणाली (Competitive Bidding) से प्राइवेट सेक्टर को लाभ मिलने की संभावना है।” हालांकि, नौसेना के पूंजीगत युद्धपोत (Capital Naval Ships) अब भी सार्वजनिक शिपयार्ड्स से नॉमिनेशन के जरिए ही खरीदे जाते रहेंगे।”
Also read: Trump ने हमास को दी अंतिम चेतावनी- बंधकों को रिहा करो नहीं तो अपना खेल खत्म समझो
लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के कार्यकारी प्रबंधन समिति के सदस्य और चेयरमैन व प्रबंध निदेशक (CMD) के रक्षा एवं स्मार्ट टेक्नोलॉजी सलाहकार, जयंत पाटिल ने कहा, “सरकार ने निजी कंपनियों और DPSUs के बीच समान अवसर (Level Playing Field) बनाने के लिए कदम उठाए हैं। हालांकि, अधिकतर रक्षा खरीद अब भी नॉमिनेशन प्रक्रिया के तहत की जा रही है, जिससे प्रतिस्पर्धी बोली (Competitive Bidding) और समान अवसर की अनदेखी हो रही है।”
उन्होंने कहा कि इससे निजी कंपनियों के लिए रक्षा अनुबंध प्राप्त करना कठिन हो जाता है। उन्होंने आगे कहा, “नॉमिनेशन प्रक्रिया को सीमित करना एक बड़ा सुधार होगा। अगर निजी कंपनियों को अधिक रक्षा अनुबंध मिलते हैं, जिनकी स्वदेशी रक्षा खरीद में हिस्सेदारी फिलहाल 20% पर स्थिर है, तो इससे उनके पास अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश के लिए अधिक पूंजी उपलब्ध होगी।”
निवेशकों की खुल गई लॉटरी, Nayara Energy (Essar Oil) ला रही है 1894 करोड़ का buyback offer