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केंद्र सरकार नहीं दे सकती बिहार को ‘विशेष राज्य’ का दर्जा, मगर क्यों? RJD, JDU नेताओं की मांग के बीच ये नियम बने अड़ंगा

मनोज झा ने कहा, ‘हमारे कुछ साथी जो हमारे साथ काम कर चुके हैं, कहते हैं कि विशेष राज्य न दे सको तो विशेष पैकेज दो। विशेष राज्य और विशेष पैकेज के बीच में ‘या’ नहीं है।'

Last Updated- July 22, 2024 | 7:37 PM IST
Central government cannot give special state status to Bihar, but why? These rules become a hindrance amid the demands of RJD, JDU leaders केंद्र सरकार नहीं दे सकती बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, मगर क्यों? RJD, JDU नेताओं की मांग के बीच ये नियम बने अड़ंगा

Special Status To Bihar:  लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बनने के साथ ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा बनाने का मुद्दा लगातार उठता आ रहा है। खबर आई थी कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनियन) यानी JDU भाजपा का समर्थन तो कर रही है मगर उनकी यह भी मांग है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा (Special status to Bihar) दिया जाए। बिहार में सत्ता और विपक्ष, दोनों को उम्मीद थी कि इस बार के बजट (Budget 2024) में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा मगर, आज संसद के मॉनसूम सत्र में यह साफ हो गया कि ऐसा नहीं होने वाला है। सरकार ने आज 2012 में तैयार एक अंतर-मंत्रालयी समूह की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कोई मामला नहीं बनता है।

लालू यादव की पार्टी राजद (RJD) के नेता ने उठाई विशेष राज्य की मांग

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा में जहां एक प्रश्न के माध्यम से यह मुद्दा उठाया गया, वहीं राज्यसभा में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने शून्यकाल (zero hour) में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने इस मांग के साथ-साथ बिहार के लिए विशेष पैकेज की भी मांग की।

न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट ने बताया कि मनोज झा ने कहा, ‘बिहार की इस मांग (विशेष राज्य का दर्जा) को कई लोग अवास्तविक कहते हैं… यह मांग बिहार और झारखंड के विभाजन के बाद से ही है…। राजनीतिक दलों के अलावा, हम केंद्र सरकार की नीतियों में बदलाव चाहते हैं जो बिहार को श्रम आपूर्ति का केंद्र मानती है। हम विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज दोनों चाहते हैं।’

बता दें कि इससे पहले भी मार्च 2023 में एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्रालय ने कहा था, ‘बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग पर अंतर-मंत्रालीय समूह (IMG) ने विचार विमर्श किया था। इसने 30 मार्च 2012 को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) को कसौटी मानें तो बिहार की यह मांग पूरी नहीं की जा सकती।’

नीतीश कुमार की पार्टी के नेता ने की थी बिहार को विशेष राज्य बनाने की मांग, मंत्री ने बताया कब दिया जाता है ये दर्जा

लोकसभा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) यानी (JDU) के नेता रामप्रीत मंडल ने प्रश्न किया था कि क्या सरकार का आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बिहार राज्य और अन्य अत्यधिक पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करने का विचार है?

इस सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि NDC ने कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया है। उन राज्यों में कुछ ऐसी विशेषताएं थीं जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत थी।

उन्होंने कहा कि इनमें पर्वतीय और दुर्गम भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या आदिवासी जनसंख्या की बड़ी हिस्सेदारी, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक और बुनियादी संरचना के लिहाज से पिछड़ापन और राज्य के वित्त की अलाभकारी प्रकृति शामिल रहीं। चौधरी ने कहा कि फैसला इन सभी बातों को ध्यान में लेकर किया गया है।

कांग्रेस की सरकार में उठाई गई थी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग

साल 2012 में कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार (UPA Government) केंद्र में थी। 21 जुलाई को हुई सर्वदलीय बैठक में जद(यू) नेता संजय कुमार झा ने विशेष राज्य के दर्जे की अपनी पार्टी की मांग दोहराई थी। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी बैठक में यह मांग उठाई थी। राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग सोमवार को राज्यसभा में भी उठी।

न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट ने बताया कि राजद के नेता मनोज झा ने उच्च सदन (राज्य सभा) में बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे के साथ-साथ विशेष पैकेज देने की भी मांग उठाई और कहा कि इसके लिए उनकी पार्टी संसद से सड़क तक संघर्ष करेगी।

रिपोर्ट में कहा गया कि सत्र के दौरान सवाल करते हुए राजद के सांसद ने जद (यू) की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘हमारे कुछ साथी जो हमारे साथ काम कर चुके हैं, कहते हैं कि विशेष राज्य न दे सको तो विशेष पैकेज पैकेज दो। विशेष राज्य और विशेष पैकेज के बीच में ‘या’ नहीं है। बिहार को ‘या’ स्वीकार नहीं है। विशेष राज्य का दर्जा भी चाहिए और विशेष पैकेज भी चाहिए। हमें दोनों चाहिए। संसद में मांगेंगे, सड़क पर मांगेंगे।’

बिहार को पहले विशेष पैकेज दे चुकी है मोदी सरकार

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए, केंद्रीय निधि में 1.25 लाख करोड़ रुपये के मेगा पैकेज की घोषणा की थी। यह रकम ज्यादातर शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा और सड़क क्षेत्र में निवेश के लिए की गई थी। हालांकि, उसी के साथ केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकार के लिए 80,000 करोड़ रुपये की घोषणा की थी।

हाल ही में कुछ अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना एक मुश्किल निर्णय है क्योंकि साल 2015 के बाद से सभी योजनाओं की वित्तीय संरचना में बदलाव किए गए हैं। उस वक्त के फॉर्मूले के तहत विशेष दर्जे का अर्थ यह था कि योजना के तहत आवंटन का 90 फीसदी केंद्र सरकार ने दिया। इसकी पेशकश केवल पूर्वोत्तर राज्यों और तीन नए राज्यों जैसे कि झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड को की गई थी। बाद में मोदी सरकार ने कई बदलाव किए और वित्त आयोग कर दिया।

अब आइये Gadgil formula के माध्यम से जानते हैं क्या हुआ बदलाव और पहले क्या था नियम, जो बन रहे अड़ंगा

क्या है गाडगिल फॉर्मूला? विशेष श्रेणी के दर्जे के मुद्दे पर शुरुआत में 1969 में आयोजित राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) की बैठक में चर्चा की गई थी। इस सेशल के दौरान, डीआर गाडगिल समिति (DR Gadgil Committee) ने भारत में राज्य योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता प्रदान करने के लिए एक फार्मूला प्रस्तावित किया था। इससे पहले, निधि आवंटन के लिए कोई विशेष फॉर्मूला नहीं था और व्यक्तिगत योजनाओं के आधार पर अनुदान आवंटित किया जाता था। NDC की मंजूरी मिलने के बाद गाडगिल फॉर्मूला ने असम, जम्मू और कश्मीर और नागालैंड जैसे विशेष श्रेणी के राज्यों को प्राथमिकता दी और यह सुनिश्चित किया कि केंद्रीय सहायता के आवंटन में उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी गई।

1969 में, 5वें वित्त आयोग (5th Finance Commission) ने कुछ क्षेत्रों के सामने आने वाली ऐतिहासिक चुनौतियों को पहचाना और विशेष श्रेणी (Special status) का दर्जा पेश किया। इस दर्जे ने विशेष रूप से वंचित राज्यों को केंद्रीय सहायता और टैक्स में राहत जैसी सुविधाएं देने की बात की। NDC ने इस स्थिति के आधार पर इन राज्यों को केंद्रीय योजना सहायता आवंटित की।

वित्तीय वर्ष 2014-2015 तक, विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त 11 राज्यों को विभिन्न लाभ और प्रोत्साहन मिले। 2014 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग आ गया और 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के कारण गाडगिल फॉर्मूला-के तहत दिया जाने वाला फंड बंद हो गया। इसके बाद, सभी राज्यों को आवंटित धनराशि देने का हिस्सा 32 फीसदी से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया गया।

अब मुख्य योजनाओं का पैसा विभिन्न राज्यों में खर्च किया जाता है और अक्सर मनरेगा और सर्व शिक्षा अभियान के लिए राज्य की निधि का कोई जिक्र नहीं होता है। अन्य योजनाएं भी विशेष राज्य के लिए नहीं होती हैं।

टैक्स और केंद्र से फंड के आवंटन में क्या हुआ बदलाव

2015 में शुरू होने वाले 14वें वित्त आयोग ने साझा करने योग्य टैक्स के वितरण में जनरल कैटेगरी और स्पेशल कैटेगरी के राज्यों के बीच भेदभाव को हटा दिया। इसने 2015-2020 की अवधि के लिए राज्यों को आवंटित नेट शेयर करने योग्य टैक्स का हिस्सा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया।

15वें वित्त आयोग ने इस आवंटन को 2020-2021 और 2021-2026 की अवधि के लिए 41 फीसदी पर जारी रखा। इसमें जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की स्थापना के कारण 1 फीसदी का एडजस्टमेंट किया गया। इस एडजस्टमेंट को टैक्स ट्रांसफर के माध्यम से राज्यों के बीच मूलभूल जरूरतों की आपूर्ति में असमानता को जानने के के लिए डिजाइन किया गया था।

कई पार्टियों ने की थी विशेष पैकेज की मांग

गौरतलब है कि NDA का घटक दल जद(यू) केंद्र सरकार को यह संकेत दे चुका है कि यदि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता तो वह विशेष आर्थिक पैकेज पर सहमत हो सकता है। बीजू जनता दल (BJD) और आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस पार्टी ने भी 21 जुलाई 2024 को हुई सर्वदलीय बैठक में अपने-अपने राज्य के लिए इसी तरह की मांग उठाई थी। सरकार पहले भी कह चुकी है कि 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में किसी और राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने की संभावना खारिज कर दी गई है।

First Published - July 22, 2024 | 6:45 PM IST

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