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BS Infra Summit 2025: भारतीय हवाई अड्डों को वैश्विक केंद्र बनने के लिए सीधी उड़ानें, नीतिगत पहल जरूरी

भारत के हवाई अड्डों का वैश्विक केंद्र बनने का प्रयास विदेश में प्रतिद्वंद्वी हवाई अड्डों पर यात्रियों की आवाजाही कम करने पर निर्भर करेगा।

Last Updated- August 21, 2025 | 10:56 PM IST
BS Infra Summit
नोएडा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के सीईओ क्रिस्टोफ श्नेलमैन (बाएं) और दिल्ली इंटरनैशनल एयरपोर्ट के सीईओ विदेह कुमार जयपुरियार ने कहा कि अन्य हवाई अड्डों के मुकाबले तेज और आसान अनुभव भी देना होगा

भारत के हवाई अड्डों का वैश्विक केंद्र बनने का प्रयास विदेश में प्रतिद्वंद्वी हवाई अड्डों पर यात्रियों की आवाजाही कम करने पर निर्भर करेगा। यह बात गुरुवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड इन्फास्ट्रक्चर समिट में नोएडा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के मुख्य कार्य अधिकारी क्रिस्टोफ श्नेलमैन और दिल्ली इंटरनैशनल एयरपोर्ट के मुख्य कार्य अधिकारी विदेह कुमार जयपुरियार ने कही। दोनों कंपनियों ने शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि इसके अलावा भारत को लंबी दूरी की सीधी उड़ानों की संख्या बढ़ानी होगी और अन्य घरेलू हवाई अड्डों के मुकाबले तेज, आसान और अधिक आकर्षक स्थानांतरण अनुभव भी प्रदान करना होगा।

भारत के लिए दुबई अथवा सिंगापुर की तरह अपने हवाई अड्डों को वैश्विक केंद्र के तौर पर स्थापित करने की महत्त्वाकांक्षा अब कोई दूर की बात नहीं बल्कि तुरंत जरूरी हो गया है। जयपुरियार ने कहा कि कैसे भारत की बुनियादी ताकतों का नतीजा अब दिखने लगा है।

जयपुरियार ने कहा, ‘जैसा कि क्रिस्टोफ ने बताया भारत में घरेलू फीड के लिहाज से बुनियादी ताकतें हैं। 2019 में यूरोप या उत्तरी अमेरिका जाने वाले लोगों में से संभवतः केवल 17 से 18 फीसदी लोग ही भारत से सीधी उड़ानें ले रहे थे। इसके मुकाबले इन आंकड़ों में अब काफी सुधार हुआ है। अब, लगभग 40 से 45 फीसदी यात्री दिल्ली हवाई अड्डे से सीधे यूरोप जा रहे हैं।’

जयपुरियार ने बताया कि दिल्ली हवाई अड्डे के लिए शीर्ष प्राथमिकता उन भारतीय यात्रियों को आकर्षित करना है जिन्हें बेवजह खाड़ी या दक्षिण पूर्वी एशिया के हवाई अड्डों जरिये यात्रा करनी पड़ती हैं। उन्होंने बताया, ‘हमारा लक्ष्य भारतीय यात्रियों के लिए पसंदीदा हवाई अड्डा बनना है, क्योंकि हम अपने आसपास के हवाई अड्डों में यात्रियों की आवाजाही में कमी देख रहे हैं, जहां हमारे आसपास के किसी भी अन्य देश के मुकाबले भारतीय यात्री अधिक आते हैं।’

खासकर द्विपक्षीय हवाई सेवा समझौतों के क्षेत्र में इस प्रवृत्ति को बदलने की क्षमता काफी हद तक सरकार की कार्रवाई पर निर्भर करती है। ये समझौते तय करते हैं कि प्रत्येक देश की विमानन कंपनियां दूसरे देश के लिए कितनी उड़ानें संचालित कर सकती हैं और उनकी संरचना भारतीय विमानन कंपनियों के फायदेमंद या नुकसानदेह साबित हो सकता है।

जयपुरियार ने कहा, ‘हम नीतिगत बदलावों पर सरकार के साथ काम कर रहे हैं। हवाई सेवा समझौता एक ऐसा ही नीतिगत बदलाव है जिस पर सरकार भी गंभीरता से विचार कर रही है, क्योंकि हवाई सेवा समझौता भी ऐसा होना चाहिए जो भारतीय विमानन कंपनियों का समर्थन करे।’

एमिरेट्स और कतर एयरवेज जैसी खाड़ी देशों विमानन कंपनियां भारत से द्विपक्षीय उड़ान अधिकार बढ़ाने का अनुरोध कर रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भारत से 2014 के द्विपक्षीय समझौते को संशोधित करने के लिए कह रहा है, जिसमें दोनों देशों के हर हफ्ते 66,504 सीटों की सीमा तय की गई है।

मगर भारत इन अधिकारों का विस्तार करने की इच्छा नहीं जता रहा है क्योंकि दुबई और दोहा मुख्य तौर पर भारतीय यात्रियों को उत्तरी अमेरिका और यूरोप ले जाते हैं। साथ ही भारतीय विमानन कंपनियां लगातार बड़े आकार के विमानों को अपने बेड़े में शामिल कर रही हैं और लंबी दूरी के गंतव्यों के लिए सीधी उड़ानों की संख्या भी बढ़ा रही है, जिससे वे बाहर जाने वाले यात्रियों के बड़े हिस्से को आकर्षित करने की स्थिति में आ गई हैं।

First Published - August 21, 2025 | 10:53 PM IST

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