नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा नामित चार नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (आरईआईए) द्वारा प्रस्तावित करीब 40 गीगावाट अक्षय ऊर्जा (आरई) परियोजनाएं अपनी ग्रीन एनर्जी के लिए खरीदार तलाशने में विफल रही हैं।
अक्षय ऊर्जा की निविदा के लिए नोडल एजेंसी सेकी, सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी, एनएचपीसी और एसजेवीएन द्वारा आवंटित परियोजनाएं लंबित हैं क्योंकि कोई भी राज्य बिजली बिक्री या आपूर्ति करार (पीएसए) पर हस्ताक्षर करने के लिए आगे नहीं आया है। मंत्रालय की समीक्षा बैठक में दी गई प्रस्तुति से इसका पता चला है।
देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं को दूर करने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी की अध्यक्षता में यह बैठक की गई थी। बैठक में मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में चार आरईआईए द्वारा 94 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बोलियां मंगाई गई थीं, जिनमें से केवल 45 गीगावाट के लिए ही आवंटन पत्र जारी किए गए। राज्यों के साथ बिजली बिक्री का करार और फिर संबंधित आरईआईए से बिजली खरीद समझौता करने के बाद परियोजनाओं को आवंटन पत्र जारी किया जाता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लंबित बिजली बिक्री/खरीद करार पर हस्ताक्षर होने तक और निविदाएं रोकने पर गंभीरता से विचार किया गया मगर इस बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया।
बैठक के ब्योरे की प्रति बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी देखी है। बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को ईमेल भेजा गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की निविदा के लिए मंत्रालय ने 2011 में सेकी को पहला नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसी नियुक्त किया था। अक्षय ऊर्जा में सौर, पवन, हाइब्रिड, बैटरी भंडारण ऊर्जा आदि शामिल हैं। हाल के वर्षों में एनटीपीसी, एचएचपीसी और एसजेएनवी को भी अक्षय ऊर्जा निविदा एजेंसी नियुक्त किया गया। इन एजेंसियों के पास अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए निविदा, परियोजना के लिए खरीदार तलाशने और ट्रेडिंग मार्जिन के साथ बिजली की बिक्री-खरीद की सुविधा प्रदान करने का जिम्मा है।
चार एजेंसियों में से सेकी और एनटीपीसी को सबसे ज्यादा 12-12 गीगावाट क्षमता हैं, जिनके लिए बिजली खरीद-बिक्री या करार तो हो चुका है या लंबित है। एनएचपीसी और एसजेवीएन के पास 8-8 गीगावाट क्षमता की अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं लंबित हैं।
बिजली खरीद-बिक्री करार के बारे में जानकारी के लिए इन तीनों कंपनियों के प्रवक्ता को भी ईमेल किया गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
समीक्षा बैठक में हितधारकों और अधिकारियों ने राज्यों से मांग की कमी को देरी का प्रमुख कारण बताया। एक अधिकारी ने कहा, ‘अधिकांश राज्य तेजी नहीं दिखाते हैं क्योंकि जब तक वे बिजली बिक्री करार पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत होते हैं तब तक दूसरी निविदा में अक्षय ऊर्जा का शुल्क कम हो जाता है। इसलिए राज्य ऊंचे शुल्क वाले करार पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर देते हैं। इसके अलावा राज्यों में नियामक मंजूरी मिलने में भी देर होती है।’ निविदा निकालने में देर अक्षय ऊर्जा सेक्टर में निवेश पर भारी पड़ रही है। हाल ही में केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग ने 2022 में सेकी द्वारा पेश की गई पहली ग्रिड-स्तर की बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली के शुल्क को खारिज कर दिया।