भारत में 2020 से अब तक 380 बाघों (Tiger’s) की मौत हुई है। सरकार की संरक्षण परियोजनाएं मौत के कारणों का इंतजार कर रही है। इस दशक में सबसे अधिक 2021 में 127 बाघों की मौत हुई थी।
फरवरी के दूसरे सप्ताह तक के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अब तक 26 बाघों ने अपनी जान गंवाई है। पिछले वर्षों की इसी अवधि की तुलना में इस साल मौतें अधिक हैं। पिछले साल इसी अवधि के दौरान 18 मौतें हुई थीं और 2021 में 21 मौतें हुई थीं।
मध्य प्रदेश में 2012 से 2022 के बीच की अवधि में 270 बाघों की मौत दर्ज की गई है। यह देश में सर्वाधिक है। इसके बाद महाराष्ट्र (184 मौत) और कर्नाटक (150 मौत) का स्थान है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में अवैध शिकार के कारण कम मौतें हुईं। 2020 में अवैध शिकार के कारण सिर्फ सात बाघों की मौत हुई, जो 2018 की 34 की तुलना में काफी कम है। मौत के कारण पर आंकड़े केवल 2020 तक उपलब्ध हैं।
भारत में दुनिया के बाघों की आबादी का 70 फीसदी से अधिक है। देश में 2018 तक अनुमानित 2,967 बाघ थे। तब एक जनसंख्या हुई थी और यह 2010 के 1,706 से उल्लेखनीय वृद्धि थी। हालांकि, 2022 की जनसंख्या के आंकड़े अभी जारी नहीं किए हैं, लेकिन कुछ अनुमानों में उम्मीद जताई जा रही है कि बाघों की आबादी 3,000 के आंकड़े को पार कर लेगी।
बाघों की आबादी मध्य भारत, पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट में केंद्रित, इन क्षेत्रों में लगभग 2,014 बाघ
1973 में बाघों को विलुप्त होने से बचाने और उनके प्राकृतिक आवासों में एक व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की गई थी।
हाल के वर्षों में इस कार्यक्रम पर होने वाले व्यय में कमी आई है क्योंकि बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2018-19 में 323.44 करोड़ रुपये की तुलना में चालू वित्त वर्ष में केंद्र द्वारा परियोजना पर 188 करोड़ रुपये खर्च करने की उम्मीद है।