सार्वजनिक क्षेत्र के यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन द्वारा लिखित पुस्तक इंडिया@100 की खरीद में चूक होने की बात स्वीकार की है। बैंक ने यह भी कहा कि मामले की जांच की जा रही है। स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में बैंक ने कहा कि इस घटना का बैंक के संचालन या वित्त प्रबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिले दस्तावेजों के अनुसार यूनियन बैंक की ओर से पिछले साल 28 जून को सभी क्षेत्रीय प्रमुखों को जारी आंतरिक कार्यालय नोटिस में कहा गया, ‘भविष्य के व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठाने के प्रयास के रूप में शीर्ष प्रबंधन द्वारा देशभर के ग्राहकों/कॉर्पोरेट्स के बीच इंडिया@100 पुस्तक की प्रतियां वितरित करने की इच्छा व्यक्त की गई है।’ इस नोट के विषय के रूप में ‘ग्राहकों/स्थानीय स्कूलों/कॉलेजों/पुस्तकालयों आदि के बीच वितरण के लिए दर अनुबंध के तहत इंडिया@100 की खरीद’ लिखा गया था।
इसमें यह भी कहा गया है कि पुस्तक के प्रकाशक रूपा पब्लिकेशन्स इंडिया ने बैंक के लिए पुस्तक का छात्र संस्करण 350 रुपये प्रति पुस्तक की दर से देने की पेशकश की है। प्रकाशक की पेशकश के अनुसार 50 प्रतिशत भुगतान अग्रिम किया जाएगा और शेष राशि बिल जमा करने और प्रेषण विवरण पर किया जाएगा। ये पुस्तकें उन 18 केंद्रों पर वितरित करने की बात कही गई थी, जहां क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं।
बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा फोन पर संपर्क किए जाने पर रूपा के प्रबंध निदेशक कपिश मेहरा ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। मेहरा ने कहा, ‘हमारा आधिकारिक रुख यही है कि हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।’ यूनियन बैंक ने प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय के तहत 10,525 प्रतियां खरीदने का फैसला किया था। पिछले साल ही 29 जुलाई के एक अन्य नोट में लिखा है कि बैंक ने प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय के तहत पुस्तक की हार्ड कवर यानी जिल्द वाली कॉपी 597 रुपये की दर से खरीदने का फैसला किया। इस तरह 10,422 प्रतियों का ऑर्डर दिया गया। इनमें से प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा 579 प्रतियां खरीदी गईं।
ऑल इंडिया यूनियन बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी ए मणिमेखलाई को लिखे पत्र में कहा कि बैंक ने उक्त पुस्तक की बड़ी संख्या में प्रतियां खरीदने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। यूनियन ने इसे बड़ी अनियमितता करार दिया है।
एसोसिएशन ने कहा, ‘बैंक द्वारा विभिन्न वस्तुओं की खरीद पर बड़ी मेहनत से कमाए गए मुनाफे को फिजूल खर्च करने पर एसोसिएशन समय-समय पर चिंता जताता रहा है। हम बैंक से न केवल संयम बरतने का अनुरोध कर रहे हैं, बल्कि इस तरह के खर्चों की जरूरत और उनसे होने वाले लाभ की समीक्षा करने की भी मांग कर रहे हैं। बड़ी संख्या में खरीदी गईं पुस्तकों का मुद्दा भी हमने उठाया था।’
पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यन की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकारी निदेशक के रूप में उनकी तीन साल की अवधि से छह महीने पहले 30 अप्रैल से ही सेवाएं समाप्त कर दी थीं। आईएमएफ ने सोमवार को कहा कि कार्यकारी निदेशक केवी सुब्रमण्यन की सेवाएं समाप्त करने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया गया है। सूत्रों ने कहा कि पुस्तक इंडिया@100 के प्रचार और उसके लिए अपने पद का दुरुपयोग जैसी अनियमितता के कारण ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकारी निदेशक पद से सुब्रमण्यन की विदाई हुई है।