आर्थिक मंदी के बीच विशेषज्ञों ने कुछ समय पहले अनुमान लगाया था कि वैश्विक हालात में जून तक सुधार होने लगेगा और साल के अंत तक अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। लेकिन मौजूदा वैश्विक स्थिति, घरेलू मांग और कंपनियों की आय में कमी को देखते हुए इसकी संभावना कम ही है।
यही वजह है कि मौजूदा निवेश और मांग को देखते हुए बाजार के जानकार कहने लगे हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अभी और देर लगेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि वित्त वर्ष 2010 के मध्य तक मंदी का असर देखा जा सकता है।
जहां तक बाजार में सुधार की बात है, तो वर्ष 2010 की तीसरी और चौथी तिमाही में कुछ सकारात्मक रुख देखने को मिल सकते हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि सरकार की ओर से उठाए गए मौद्रिक कदमों का असर अभी पूरी तरह से बाजार में नहीं दिख रहा है और इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है।
डन ऐंड ब्रैडस्ट्रीट के इकोनॉमी एनालिसिस ग्रुप की प्रमुख याशिका सिंह का कहना है कि अभी ब्याज दरों में कटौती का असर दिखना बाकी है, साथ ही कॉरपोरेट क्षेत्रों में भी स्थिरता आनी है। इसके बाद ही अर्थव्यवस्था में सुधार की गुंजाइश है।
मौजूदा परिस्थितियों में, जब बाजार 9,000 के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा है, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि भविष्य में बाजार किस करवट बैठेगा और निवेशक कैसी रणनीति अपनाएं।
स्मार्ट इन्वेस्टर ने रिजर्व बैंक की ओर से उठाए गए कदम, मौजूदा विकास दर, बाजार का भविष्य और कैसी हो निवेश की रणनीति? इन सब सवालों के जवाब जानने की कोशिश की बाजार के कुछ जानकारों से। आइए विस्तार से जानते हैं, बाजार के दिग्गजों ने मौजूदा हालात और निवेश के बारे में क्या कहा :
मुनाफे का जोखिम
भारत में निवेश के लिए अच्छा विकल्प है। दरअसल, मौजूदा कारोबार को देखते हुए वित्त वर्ष 2009 के लिए बीएसई सेंसेक्स में पीई रेशियो 10 रहने का अनुमान किया गया है। हालांकि बाजार अगर मौजूदा स्तर पर ही रहा, तो पीई अनुपात 13 गुना बढ़ने की संभावना है।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि पहले ही पीई अनुमान में कटौती की जा चुकी है। मार्च 2008 में सेंसेक्स कंपनियों में निवेश पर वित्त वर्ष 2010 में 1,200 रुपये मुनाफे का अनुमान था। लेकिन मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए ऐसा संभव नहीं है।
क्योंकि बाजर में चरणबद्ध तरीके से करीब 30 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। ऐसे में अब 850 रुपये मुनाफे का अनुमान लगाया जा रहा है। वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में सेंसेक्स कंपनियों के मुनाफे में करीब 8.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
हालांकि विशेषज्ञ इससे चकित नहीं हैं, क्योंकि उनके मुताबिक, वित्त वर्ष 2010 में सेंसेक्स में 600 से 700 रुपये की गिरावट आ सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि मार्च 2008 में जितनी आय का अनुमान लगाया गया था, उससे वित्त वर्ष में यह 17-30 फीसदी कम है।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, रिसर्च ऐंड स्ट्रेटजी मनीष संथालिया का कहना है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए प्रति शेयर 850 रुपये की आय का अनुमान है।
फंडामेंटल्स में सुधार की संभावना
निवेशकों को वैल्यूएशन और विकास दर को लेकर सावधान रहना चाहिए, क्योंकि मांग पक्ष को देखते हुए कंपनियों के फंडामेंटल्स में किसी तरह का सुधार होता नहीं दिख रहा है। ऑटो, सीमेंट, धातु और रियल एस्टेट कंपनियों की आय और मुनाफे में आगे भी गिरावट देखी जा सकती है।
दूसरी बात यह कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में भी गिरावट देखी जा रही है। जुलाई 2008 में औद्योगिक विकास की दर जहां 5-7 फीसदी थी, वहीं दिसंबर 2008 में यह नकारात्मक स्तर (-2 फीसदी) पर चली गई। वैसे, कुछ क्षेत्रों में थोड़ा सुधार होता दिख रहा है, जिसमें स्टील और सीमेंट कंपनियां शामिल हैं।
याशिका सिंह कहती हैं कि अगर अगले कुछ महीनों में औद्योगिक उत्पादन में सुधार भी आता है, तब भी मांग में बढ़ोतरी की संभावना कम ही होगी। फ्रेंकलिन टेंपलटन के सीआईओ (इक्विटी) सुकुमार रहेजा का कहना है कि इस बारे में राय देने से पहले कुछ और महीनों के आंकड़ों को देखना चाहिए।
एक महीने के आंकड़े को आधार बनाकर कोई निर्णय निकालना उचित नहीं होगा। हालांकि उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया कि विनिर्माण क्षेत्र पर अब भी दबाव बना हुआ है, क्योंकि मांग में कमी बनी हुई है, वहीं निर्यात में भी गिरावट का रुख है।
एम्बिट कैपिटल के सीईओ (इक्विटी) एंड्रयू हॉलैंड के मुताबिक, सीमेंट और स्टील क्षेत्रों की क्षमता बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि मांग में भी तेजी आई है। दरअसल, ऐसा स्टॉक बचा रहने की वजह से भी हो सकता है।
जहां तक जीडीपी की बात है, तो सरकार को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2009 में यह 7 फीसदी रहेगी। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में अर्थिक प्रदर्शन अच्छा रह सकता है।
इन परिस्थितियों में सबसे बड़ी चुनौती वित्त वर्ष 2010 में तेजी गिरावट को रोकना है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्त वर्ष 2009 में भारत की विकास दर 5.1 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जो वित्त वर्ष 2008 के 9-10 फीसदी से बहुत कम है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि उपभोक्ताओं और कारोबार में आत्मविश्वास फंडामेंटल्स में सुधार के बाद ही देखा जा सकता है।
मिल सकती है कुछ राहत
कमोडिटी (धातु, कच्चा तेल आदि) की कीमतों में गिरावट से कंपनियों को लागत कम करने में मदद मिलेगी। जिसका असर चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही से दिखने लगेगा।
इसके साथ ही रिजर्व बैंक की मौद्रिक कदमों, जिसके तहत सीआरआर, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट में कटौती की गई है, उससे कंपनियों को कम ब्याज दरों पर कर्ज जुटाने में आसानी होगी, जिसका लाभ मिल सकता है।
लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखना होगा कि कंपनियों को फायदा तभी हो सकता है, जब उपभोक्ता ज्यादा खर्च करेंगे, यानी मांग बढ़ेगी। उसके बाद ही कंपनियां नई योजनाओं में निवेश कर सकती है। यह भी सच है कि अभी केवल सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने ही ब्याज दरों में कटौती की है, निजी क्षेत्रों की ओर से कटौती की जानी अभी बाकी है।
उसके बाद ही वास्तविकता का पता चलेगा। निजी क्षेत्रों के बैंकों में अभी भी ब्याज दर अपेक्षाकृत काफी ऊंची है, जो 13 फीसदी के करीब है। जानकारों का कहना है कि निजी क्षेत्र के बैंक वित्त वर्ष 2010 की शुरुआत में ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं।
मैक्यूरी सिक्योरिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर शेषाद्री सेन का कहना है कि आक्रामक मौद्रिक नीति के चलते अगली दो तिमाहियों में ब्याज दर और जमा दर में 200-300 आधार अंकों की गिरावट आ सकती है।
इससे वित्त वर्ष 2010 की दूसरी छमाही में बाजार में सुधार आने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई दर भी 4 फीसदी से नीचे चली गई है और आगे भी इसमें गिरावट की संभावना है। ऐसे में रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में एकबार और कटौती की जा सकती है।
बिरला सन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के सीआईओ विक्रम कोटक का कहना है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती कर सकता है। उनके मुताबिक, आगामी वित्त वर्ष की शुरुआत में ब्याज दरों में 100-150 आधार अंकों की कटौती की संभावना है।
वित्तीय राहत की उम्मीद
मौद्रिक नीति के साथ ही सरकार की ओर से वित्तीय राहत पैकेज की भी उद्योग जगत को जरूरत है। तमाम कवायद के बावजूद बाजार में मांग नहीं है, जिससे उद्योग जगत को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में सरकार की ओर सबकी उम्मीदें टिकी हैं कि वह वित्तीय राहत पैकेज की घोषणा करे। पहले भी सरकार दो बार वित्तीय पैकेज की घोषणा कर चुकी है।पहले पैकेज में 20,000 करोड़ रुपये और सेनवैट में 4 फीसदी की कटौती की गई।
इसका मकसद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कटौती भी की गई है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इन कदमों से मौजूदा हालात में खास सुधार होता नहीं दिख रहा है। वहीं सरकार की इस पहल से राजस्व घाटा बढ़ने की भी आशंका है।
विदेशी संस्थागत निवेशक
रेटिंग एजेंसियों की ओर से भारत की रेटिंग घटाने की वजह से घरेलू निवेशकों से ही बाजार को उम्मीद है। इसके साथ ही मौजूदा हालात में मुनाफे की जोखिम को देखते हुए विदेशी निवेश पर असर पड़ना लाजिमी है।
ऐसे में विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से बाजार में धन आने की संभावना कम ही है। जनवरी 2009 में विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से 4,254 करोड़ रुपये का निवेश किया गया, जबकि फरवरी 2009 में 860 करोड़ रुपये निवेश की संभावना है।
यही नहीं, एफआईआई की ओर से 16 से 19 फरवरी के बीच करीब 1,100 करोड़ रुपये की बिकवाली भी की गई। सच तो यह है कि विदेशी संस्थागत निवेशक बिकवाली में लगे हुए हैं या फिर वे नया निवेश करने के मूड में नहीं हैं।
ईपीएफआर के वरिष्ठ बाजार विश्लेषक कैमरून ब्रान्ड डीटी कहते हैं कि सत्यम फर्जीवाड़ा और आगामी चुनाव को देखते हुए विदेशी संस्थागत निवेशक फिलहाल निवेश नहीं करना चाह रहे हैं। इसके साथ ही कई निवेशक वैश्विक मंदी की वजह से पैसा नहीं लगा पा रहे हैं।
क्या कहते हैं वैश्विक हालात
वैश्विक हालात का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा है। ऐसे में रिजर्व बैंक और सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का असर कुछ समय में देखा जा सकता है। सच तो यह है कि रोजाना वैश्विक हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
हॉलैंड का कहना है कि वैश्विक आर्थव्यवस्था में स्थिरता का अभाव है। यही वजह है कि हर सरकार, एजेंसियां पहले के अनुमानित विकास दर को संशोधित कर घटा रही हैं। उनका कहना है कि जल्द ही ये हालात खत्म होने वाले नहीं हैं।
ऐसे में बाजार में तरलता लंबे समय तक नहीं रह सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार को पटरी पर लाने के लिए और राहत पैकेज की जरूरत है।
आगामी चुनाव
मई 2009 में होने वाले आम चुनावों की वजह से भी बाजार में तेजी नहीं दिख रही है। वहीं विदेशी संस्थागत निवेशक भी फिलहाल निवेश के मूड में नहीं हैं।
दरअसल, भविष्य की सरकार की कैसी नीति रहती है, उसके बाद ही निवेशक बाजार में पैसा लगाने को तैयार हो सकते हैं। ऐसे में विश्लेषकों का कहना है कि निकट भविष्य में बाजार के हालात सुधरने के कम आसार हैं।
रणनीति और भविष्य
मौजूदा हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह बाजार के लिए ठीक नहीं है। कम से कम निकट भविष्य, यानी 8 से 9 महीनों तक तो बाजार में सुधार होने की कम ही संभावना है।
ऐसे में ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में निवेश से पहले स्थितियों का अध्ययन करें और कुछ नकद खुद के पास जमा रखें। निवेश करना हो, तो बड़ी और सुरक्षित कंपनियों में पैसा लगाएं और हमेशा बेहतर अवसर पर नजर रखकर खरीदारी करें।
(साथ में विशाल छाबड़िया और राम प्रसाद साहू)