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वैकल्पिक ऊर्जा संयंत्र, निवेश का नया मंत्र

Last Updated- December 05, 2022 | 7:12 PM IST

कच्चा तेल, कोयला और गैस जैसे पंरपरागत ऊर्जा स्रोतों के सीमित भंडार और उत्सर्जनों में कमी लाने के लिए पर्यावरणवादियों के बढ़ते दबावों के साथ विश्व स्वच्छ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की गंभीरतापूर्वक खोज कर रहा है।


हाल के वर्षों में परंपरागत ऊर्जा पदार्थों की कीमतों में आये उछाल ने इस प्रक्रिया को तेज करने का ही काम किया है। उदाहरण के लिए, कच्चा तेल प्रति बैरल 100 डालर के इर्दगिर्द घूम रहा है, जबकि कोयला, गैस और ऊर्जा आगतों यानी एनर्जी आउटपुट के अन्य रूपों की कीमतों पर उसका असर अपने चरम पर पहुंच गया है। 


भारत में पिछले कुछ दशकों में प्रमुख रूप से उच्च आर्थिक वृद्धि, बढ़ते शहरीकरण और त्वरित औद्योगीकरण के चलते ऊर्जा (बिजली) और परिवहन ईंधनों की मांग में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। दरअसल, इस मांग के  और भी आगे बढ़ने के आसार हैं।


एकीकृत ऊर्जा नीति पर योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए अगले 25 वर्षों (2032 तक) में 8 फीसदी सालाना की जीडीपी वृद्धि बरकरार रखने के लिए देश को अपनी ऊर्जा उत्पादन क्षमता में तकरीबन 800,000 मेगावाट या वर्तमान समय की 160,000 मेगावाट (कैप्टिव संयंत्रों समेत)की तुलना में पांच गुने से अधिक की वृद्धि करने की आवश्यकता पड़ेगी।


जहां यह न केवल अवसर मुहैया कराता है बल्कि इस बात को देखते हुए अपने साथ एक बड़ी चुनौती भी लाता है कि बढ़ती कीमतों और इस प्रकार की आगतों के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति को लेकर चिंता के अलावा ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयला और गैस जैसे ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत सीमित हैं।


चूंकि भारत की ऊर्जा उत्पादन क्षमता का तकरीबन 65 फीसदी कोयला, गैस या तेल पर आधारित है इसलिए भारत के ऊर्जा में आत्म-निर्भरता के स्वप्न को पूरा करने के सामने पार पाने के लिए निश्चित रूप से अधिक चुनौतियां हैं। इस बात को देखते हुए कि देश की कच्चे तेल की जरूरतों के लगभग तीन चौथाई हिस्से की पूर्ति आयात के जरिये होती है, परिवहन ईंधनों की भारत की बढ़ती मांग को पूरा करने का काम उतना ही मुश्किल है।


इस परिप्रेक्ष्य में और इस बात को समझते-बूझते हुए भी कि बड़े हिस्से के लिए पारंपरिक ऊर्जा ही काम में आती रहेगी, वैकल्पिक ऊर्जा के व्यावहारिक स्रोतों की खोज करना अक्लमंदी है, जो कि न केवल आर्थिक रूप से संभव हो और साथ में पर्यावरण के ऊपर उसका प्रभाव भी कम से कम पड़ता हो।


वैकल्पिक ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन के वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के रूप में समझा जाता है और यह अक्षय ऊर्जा के साथ परस्पर परिवर्तनीय होती है, जो कि प्रभावी तरीके से सूर्यप्रकाश, हवा, बारिश, ज्वार-भाटों और भूतापीय उष्मा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करती है। इस प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों की प्राकृतिक रूप से पुन:पूर्ति होती रहती है। अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का दायरा सौर ऊर्जा से लेकर वायुशक्ति, पनबिजली, बायोमास और परिवहन के लिए जैवईधन तक फैला हुआ है।


भारत में संभावनाएं


भारत में अक्षय ऊर्जा से संस्थापित उत्पादन क्षमता पिछले दशक के दौरान 10 गुना होकर 9,220 मेगावाट या कुल संस्थापित क्षमता का 7.3 फीसदी हो गयी है। अक्षय ऊर्जा मुख्य रूप से सौर, बॉयोमास और वायुशक्ति के उत्पादन के लिहाज से भारत के पास काफी संभावना होने का अनुमान है।


गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के मंत्रालय की भावी आकलनों के अनुसार 240,000 मेगावाट की 2012 तक नियोजित कुल संस्थापित ऊर्जा क्षमता में से तकरीबन 10 फीसदी (24,000 मेगावाट) ऊर्जा के अक्षय स्रोतों से प्राप्त होगी। इस तथ्य के मद्देजर यह यथार्थपरक जान पड़ता है कि वायुशक्ति की संभावना के लिहाज से विश्व में भारत को चौथा सबसे बड़ा देश समझा जाता है।


इसी प्रकार, सूर्य की रोशनी की प्रचुरता से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी जबर्दस्त संभावना है। संक्षेप में, यह न केवल भारत की ऊर्जा की बढ़ती मांग के लिए शुभ है वरन यह वैकल्पिक ऊर्जा से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ी कंपनियों में निवेश करने का अवसर भी प्रदान करता है।


लेकिन इसके पहले हमें इससे जुड़े जोखिमों को समझ लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, इनमें से बहुत से अवसर वित्तीय प्रोत्साहनों (टैक्स ब्रेक्स) और सब्सिडियों के रूप में सरकारी सहायता को मिलाकर ही आर्थिक रूप से संभव बनते हैं।


बहुत हद तक इन प्रोत्साहनों का उद्देश्य अधिकतर वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं से जुड़े भारी-भरकम पूंजीगत खर्च (उदाहरण के लिए, सौर-आधारित 1 मेगावाट का पूंजीगत लागत तकरीबन 12-15 करोड़ रुपये है), के असर को कम करना है, जो कि परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर आधारित ऊर्जा परियोजनाओं की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है (कोयला आधारित 1 मेगावाट की पूंजीगत लागत तकरीबन 4 करोड़ रुपये है)।


बाद में चलकर वैकल्पिक ऊर्जा का लाभ यह होता है कि उसकी परिचालन लागत वस्तुत: शून्य होती है। लिहाजा, इस प्रकार के प्रोत्साहनों की कोई वापसी कंपनियों पर नकारात्मक असर डालेगी। दूसरे, अगर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की कीमत तेजी से गिरती है तो ऊर्जा के इन वैकल्पिक स्रोतों में से हो सकता है कि कुछ स्रोत आर्थिक रूप से संभव विकल्प न बने रह पायें। ये वे कुछ कारक जिन्हें दिमाग में रखने की आवश्यकता होती है, हालांकि उनकी प्रकृति ऐसी नहीं है कि उनके बारे में भविष्यवाणी की जा सके।


वायु ऊर्जा


अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कुल बिजली उत्पादन में वायु शक्ति का हिस्सा 2002 के 0.2 फीसदी से बढ़कर 2030 तक 3 फीसदी हो जाएगा। भारतीय संदर्भ में वायु को पनबिजली के बाद बिजली पैदा करने के दूसरे सबसे बड़े अक्षय स्रोत के रूप में देखा जाता है।


आकलनों के मुताबिक वायु शक्ति का वर्तमान की 7,660 मेगावाट की संस्थापित क्षमता की तुलना में 45,000 मेगावाट तक बढ़ना तय है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों की काफी बड़ी संभावना के साथ इस संभावना को सुजलोन एनर्जी जैसी कंपनियों के लिए ज्यादा बड़े अवसरों में रूपांतरित होना चाहिए।  
 
सुजलोन एनर्जी


अच्छा-खासा आकार, अत्यधिक विविधीकृत और कायदे से एकीकृत परिचालन जैसी खूबियां सुजलोन एनर्जी को परिभाषित करती हैं, जो कि दुनिया के चोटी के पांच वायु टरबाइन निर्माताओं में से एक है। कंपनी इसके अलावा कंसल्टेंसी, डिजाइन, परिचालन और वायु शक्ति परियोजनाओं के लिए रखरखाव जैसी सेवाएं भी मुहैया कराती है।


सुजलोन अपनी आय का बड़ा हिस्सा यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और चीन जैसे विदेशी बाजारों से सृजित करती है और इन क्षेत्रों में उसके कार्यालय और विनिर्माण इकाइयां हैं। घरेलू के साथ-साथ विदेशी बाजारों में जोरदार मांग के मद्देनजर कंपनी चीन में एकीकृत विनिर्माण इकाई, अमेरिका में रोटोर ब्लेड विनिर्माण संयंत्र और भारत में फोर्जिंग एवं फाउंड्री संयंत्र स्थापित करने के लिए अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रही है।


इन सबके चलते 2,700 मेगावाट की उसकी वर्तमान उपकरण विनिर्माण क्षमता वित्तीय वर्ष 09 तक कुल मिलाकर 5,700 मेगावाट हो जाएगी। कुल आर्डर बुक में 13.1 फीसदी पर घरेलू आर्डर के हिस्से समेत 3,358 मेगावाट की उसकी आर्डर बुक, 17,110 करोड़ के समतुल्य, वित्तीय वर्ष 07 की उसकी आय के 2.1 गुना के बराबर है, और इस प्रकार अच्छी आय की दृश्यता मुहैया कराती है।


हालांकि अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से वायु शक्ति में बढ़ते निवेशों के द्वारा संचालित दृष्टिकोण दमदार है, पर कम समयावधि को लेकर कुछ चिंताएं हैं। बहुत संभव है कि कंपनी का पड़ता और आय डॉलर के मूल्य-ह्रास (वर्तमान आर्डर बुक का 55 फीसदी अमेरिकी बाजार के आर्डरों पर आधारित है), अमेरिका में कतिपय आगतों पर आयात शुल्क में वृद्धि और फर्म कमोडिटी कीमतों के चलते प्रभावित हो।


आखिर में, मार्च 2008 में समाप्त तिमाही के लिए विदेशी मुद्रा के संपर्क के प्रभाव के कारण कुछ असर का पूर्वानुमान भी है। फिर भी, विश्लेषक सुजलोन के हिस्से को अंशों के योग के आधार पर 272 रुपये की उसकी वर्तमान कीमत की तुलना में लगभग 320 रुपये पर आंकते हैं (वित्तीय वर्ष 09 की आय के अनुमान पर आधारित)। दूरगामी परिप्रेक्ष्य के साथ खरीदिये।


जल ऊर्जा


देश में इतनी सारी नदियों के होने से पनबिजली ऊर्जा के उत्पादन के संदर्भ में भारत की जबर्दस्त संभावना को लेकर कोई संदेश नहीं है। 33,941 मेगावाट की वर्तमान क्षमता की तुलना में इसका अनुमान तकरीबन 150,000 मेगावाट है।


संभावना और वास्तविक के बीच के अंतराल को कम करने के क्रम में सरकार ने अनेक योजनाएं शुरू की हैं जिन्हें कि अगले दस वर्षों में तकरीबन 45,000 मेगावाट पनबिजली क्षमता का योग देने में सहायता करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, यह जयप्रकाश हाइड्रो पावर, एल्सटॉम प्रोजेक्ट्स जैसी पनबिजली सेगमेंट में कार्यरत कंपनियों और कुछ हद तक भेल के लिए अवसर उपलब्ध कराएगा, जो कि अपनी आय का अच्छा-खासा हिस्सा पनबिजली उपकरण की बिक्री से प्राप्त करती है।


जयप्रकाश हाइड्रो पावर


पनबिजली उत्पादन से जुड़ी जयप्रकाश हाइड्रो वर्तमान समय में 700 मेगावाट की कुल क्षमता परिचालित करती है। गौरतलब है कि उसके पास मेगा योजनाएं हैं जिनके जरिये उसका उद्देश्य 2012 तक अपनी वर्तमान क्षमता में और 7,000 मेगावाट (5,000 मेगावाट पनबिजली और 2,000 मेगावाट तापीय ऊर्जा क्षमता) का इजाफा करना है, जिसमें कि हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी पर करचम में 1,000 मेगावाट की जारी परियोजना शामिल है।


व्यवसाय में उसकी विशेषज्ञता, विशेषकर हाइड्रो परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिहाज से (अपनी मूल कंपनी के समर्थन के जरिये), उसे लाभदायक स्थिति में रखती है। इसके अलावा, कंपनी को पारेषण व्यवसाय में अपने हालिया विविधीकरण से लाभ प्राप्त होना चाहिए। शुरुआत में कंपनी ने अपनी 1,000 मेगावाट की करचम-वांगटू पनबिजली परियोजना से ऊर्जा के बचाव के लिए पारेषण लाइन की स्थापना हेतु पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन आफ इंडिया के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है।


इसके बाद, हो सकता है कि दूसरी नयी पारेषण परियोजनाओं पर भी विचार किया जाए। मूल्यांकनों के लिहाज से 53.25 रुपये की वर्तमान कीमत पर स्टॉक वित्तीय वर्ष 08 की अपनी अनुमानित आय  के 18 गुने और वित्तीय वर्ष 08 में अपने बुक-वैल्यू के 2.7 गुने तथा मेरिट अटेंशन पर व्यापार कर रहा है।


एल्सटॉम प्रोजेक्ट्स इंडिया


एल्सटम एसए फ्रांस (पनबिजली संयंत्रों और जन त्वरित परिवहन प्रणालियों के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी) की सहायक कंपनी एल्सटम प्रोजेक्ट्स भारत में पनबिजली उपकरण व्यवसाय में अग्रणी है और बाजार के तकरीबन 27 फीसदी के ऊपर उसका कब्जा है। कंपनी अपनी आय का 50 फीसदी से अधिक भाग पनबिजली सेगमेंट से सृजित करती है जबकि शेष परिवहन और अन्य उद्योगों से आता है।


बढ़ती हुई मांग को देखते हुए कंपनी ने पिछले वर्ष अपनी पनबिजली उपकरण विनिर्माण क्षमता को दुगना कर दिया। उसकी संभावनाओं का एक संकेत 3,200 करोड़ रुपये की कंपनी की वर्तमान आर्डर बुक से मिलता है, जो वित्तीय वर्ष 07 की उसकी आय का ढाई गुने से अधिक ठहरता है। इस बात को दिमाग में लाने पर कि अगले कुछ वर्षों के दौरान पनबिजली क्षेत्र में जोड़े जाने के लिए अच्छी-खासी क्षमता है, एल्सटॉम प्रोजेक्ट्स को प्रमुख लाभार्थी होना चाहिए।


यहां तक कि 30,000 मेगावाट की अतिरिक्त पनबिजली क्षमता के मोटे अनुमान पर भी आवश्यक कुल निवेश (प्रति मेगावाट 5 करोड़ रुपये पर)150,000 करोड़ रुपये होगा। इसमें से तकरीबन 40 फीसदी उपकरण पर खर्च होता है, जो कि बदले में यह संकेत देता है कि उपकरण के मद में कुल खर्च 60,000 करोड़ के आसपास बैठेगा। कहना न होगा कि एल्सटम इस योग्य कि उसमें निवेश किया जाए।


सौर ऊर्जा


संभावनाओं से भरा एक दूसरा क्षेत्र सौर ऊर्जा है। भारत में न केवल सौर ऊर्जा की संभावना बहुत अधिक है बल्कि सौर ऊर्जा को सुदूर इलाकों में मुहैया कराया जा सकता है और वह भी पावर ग्रिड की सहायता के बिना।


उद्योग जगत के आकलनों के मुताबिक 50,000 मेगावाट की संभावना के बरअक्स सौर ऊर्जा आधारित कुल घरेलू संस्थापित क्षमता 100 मेगावाट से बेशी है। इन तथ्यों और सरकार से मिलने वाले सहयोग (प्रोत्साहनों) को ध्यान में रखकर बहुत सी कंपनियां इस सेगमेंट में प्रवेश करने पर विचार कर रही हैं। लाभ की स्थिति में रहने वाली मौजूदा कंपनियों में वेबेल एसएल एनर्जी सिस्टम्स और मोजर बेयर शामिल हैं।


वेबेल एसएल एनर्जी सिस्टम्स


भारत में सोलर फोटोवोल्टैक सेल्स और मॉडयूल्स की अग्रणी निर्माता वेबेल एसएल ने वर्तमान समय में तकरीबन 10 मेगावाट के समतुल्य सौर आधारित उपकरण बनाने के लिए क्षमता संस्थापित की है। उसका इरादा वित्तीय वर्ष 08 तक इसे बढ़ाकर 42 मेगावाट और वित्तीय वर्ष 10 तक 102 मेगावाट करना है। क्षमता के इस विस्तार के साथ प्रबंधन वित्तीय वर्ष 07 की 107 करोड़ रुपये की आय के बरअक्स 1,300 करोड़ रुपये की आय को लक्ष्य बना रहा है।


लेकिन, विश्लेषक मोटे तौर पर अनुमान लगाते हैं कि कंपनी वित्तीय वर्ष 2010 तक 625-650 करोड़ रुपये की कुल बिक्री हासिल करेगी। मौजूदा समय में, कंपनी अपनी आय का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे बाजारों को निर्यात करके प्राप्त करती है, लिहाजा, कमजोर डालर के चलते हो सकता है कि उसके ऊपर थोड़ा-बहुत असर पड़े।


वैश्विक सौर उद्योग के सामने तेल की ऊंची कीमतों, सरकारी सब्सिडियों और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों से सशक्त मांग आ रही है। ऊंची वैश्विक मांग से समर्थन पाकर वेबेल जैसी कंपनियों के अगले पांच वर्षों के दौरान 30 फीसदी की वृद्धि बनाये रखने की आशा है।


वेबेल के लिए जनवरी 2008 में 846 रुपये की 52 हफ्ते की ऊंचाई को छूने के बाद उसकी शेयर कीमत 250 रुपये पर आ पहुंची है। वर्तमान कीमत पर स्टॉक वित्तीय वर्ष 08 और वित्तीय वर्ष 09 की अनुमानित आय के क्रमश: 17 और 11 गुने पर व्यापार करता है और अच्छा लाभ प्रदान कर सकता है।  
 
मोजर बेयर


सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख उदीयमान कंपनियों के मध्य आप्टिकल स्टोरेज डिस्क निर्माता मोजर बेयर आती है। कंपनी ने 100 फीसदी की अपनी सब्सिडियरी (मोजर बेयर फोटो वोल्टैक-एमबीपीवी) के जरिये भव्य तरीके से सोलर फोटोवोल्टैक (पीवी) सेल्स का विनिर्माण शुरू किया है। एमबीपीवी 40 मेगावाट की अपनी वर्तमान क्षमता के बरअक्स 2010 तक अपनी फोटोवोल्टैक सेल विनिर्माण क्षमता को बढ़ाकर 600 मेगावाट करने के लिए तकरीबन 1.5 अरब डालर का निवेश कर रही है।


3 अप्रैल को इस सब्सिडियरी ने 640 मेगावाट सौर ऊर्जा पैदा करने में सक्षम उच्च-स्तरीय, मल्टी-क्रिस्टलाइन सिलिकॉन वेफर्स (पीवी सेल्स बनाने के लिए प्रयुक्त) की खरीद के लिए चीन स्थित एलडीके सोलर के साथ 10 वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया।


यह समझौता मोजर की सब्सिडियरी के लिए कच्चे माल की विश्वसनीय आपूर्ति को सुनिश्चित करेगा। व्यवसाय में अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिए सब्सिडियरी अनुसंधान एवं विकास में भी निवेश कर रही है, जिसमें कि क्वांटम डॉट्स जैसे नैनो टेक्नोलॉजी आधारित उत्पादों को विकसित करने के लिए परियोजना शामिल है। इमारतों को ऊर्जा देने के लिए इसका प्रयोग बाहरी पेंट में किया जा सकता है और यह सौर ऊर्जा में महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभर सकता है।


आखिर में, नवंबर 2007 में कंपनी ने राजस्थान में हरित क्षेत्र सौर आधारित ऊर्जा उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए राज्य सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसकी 100 करोड़ रुपये की लागत पर अनुमानित कुल क्षमता 5 मेगावाट है।


निचोड़ के तौर पर जहां सौर ऊर्जा व्यवसाय स्वयं मोजर बेयर की तुलना में आकार में अपेक्षाकृत छोटा है पर इसके अपनी मूल कंपनी के मुकाबले उभर कर बड़ा होने की संभावना है।


विश्लेषकों के मुताबिक कंपनी के विभिन्न व्यवसायों (होम एंटरटेनमेंट समेत आप्टिकल मीडिया, फोटोवोल्टैक) का सम्मिलित मूल्य प्रति शेयर 350 रुपये के करीब बैठता है। उसके विभिन्न व्यवसायों में संभावना को देखते हुए वित्तीय वर्ष 08 की उसकी अनुमानित आय के 16 गुने और वित्तीय वर्ष 09 की आय के 7 गुने पर उपलब्ध 150 रुपये पर स्टॉक दूरगामी तौर पर अच्छा लाभ प्रदान कर सकता है।


एथनॉल


कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा का अगला उदीयमान रूप जैव-ईंधन है। उद्योग जगत के आकलनों के मुताबिक कच्चे तेल की कीमतों के 90-100 प्रति बैरल से नीचे गिरने की की कोई संभावना नहीं है।


वैश्विक रूप से कच्चे तेल से जुड़ी चिंताओं से निजात पाने के लिए चीनी के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक ब्राजील जैसे अनेक देश एथनॉल को ऑटो ईंधनों के साथ मिलाने के लिए अपनी चाय के बड़े हिस्से को उसमें बदल रहे हैं। भारतीय संदर्भ में, देर से ही सही, सरकार ने पांच फीसदी के मिश्रण (ऑटो ईंधनों के साथ इथानॉल के) को अनिवार्य बना दिया है। गौरतलब है कि अक्टूबर 2008 से अनिवार्य मिश्रण का स्तर बढ़कर 10 फीसदी कर दिया गया है। 


प्राज इंडस्ट्रीज


एथनॉल क्षेत्र में वृद्धि की दमदार संभावना की एक लाभार्थी इंजीनियरिंग क्षेत्र की प्रमुख कंपनी प्राज इंडस्ट्रीज है जो कि एथनॉल  उपकरण विनिर्माण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बाजार में अग्रणी है। कंपनी जैव-एथनॉल  और जैव-डीजल बनाने, ब्रुअरी संयंत्रों और संबंधित वेस्ट-वाटर ट्रीटमेंट सिस्टमों के लिए इंजीनियरिंग उत्पाद और समाधान मुहैया कराती है।


कंपनी ने इसके अलावा ब्राजीलियन इंजीनियरिंग के साथ संयुक्त उपक्रम के जरिये इथानॉल के एक सबसे तेजी से बढ़ते बाजार ब्राजील में प्रवेश किया है। बड़े पैमाने पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कंपनी नयी-नयी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए अनुसंधान एवं विकास के मद में निवेश करने के अलावा गुजरात के कांडला में अपनी विनिर्माण क्षमताओं को विस्तारित कर रही है।


प्राज की कुल आर्डर बुक 30 दिसंबर 2007 को 900 करोड़ रुपये थी जो कि वित्तीय वर्ष 07 की उसकी आय का डेढ़ गुना है जो कि भरोसा पैदा करती है। पर, प्राज कोई अपवाद नहीं है क्योंकि उसका स्टॉक पूंजी बाजारों में मंदी के फलस्वरूप एकदम से दुरुस्त हुआ है। 135 रुपये की वर्तमान कीमत पर स्टॉक वित्तीय वर्ष 08 की उसकी अनुमानित आय के 17 गुने पर उपलब्ध है और आकर्षक रूप से उसका मूल्य आंका गया है।
 
उभरते क्षेत्र


हालांकि बहुत अधिक उल्लेखनीय नहीं हैं और अपने जन्म के प्रारंभिक चरण में हैं पर वैकल्पिक ऊर्जा के बॉयोमास, प्लास्टिक के कचरे को ऊर्जा में रूपांतरित करने की प्रौद्योगिकी, जैवगैस, भूतापीय ऊर्जा आदि की तरह के अन्य रूप हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत कंपनियां हैं, उनमें से कुछ मंडियों में सूचीबद्ध हैं, जो कि इन बाजारों में अवसरों की तलाश कर रही हैं और आने वाले वर्षों में आय में योगदान के लिहाज से हो सकता है कि लाभ की स्थिति में रहें।


इस प्रकार की एक कंपनी एशियन इलेक्ट्रॉनिक्स है, जो कि मुख्य रूप से लाइटिंग सेगमेंट में है और अब एक ऐसी अनूठी प्रौद्योगिकी विकसित की है जो कि प्लास्टिक के कचरे को ऊर्जा में रूपांतरित करने में सहायता करेगी। इस बात पर विचार करने पर एशियन इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए नयी योजना बेहद आकर्षक साबित हो सकती है कि रिफाइनरी बॉटम्स को ईंधन में प्रसंस्कृत करने के लिए कपनी का एचपीसीएल के साथ समझौता है।


इसी प्रकार, सूर्यचक्र पावर जैसी कंपनियां हैं, जो कि बॉयोमास ऊर्जा के क्षेत्र में हैं, जहां पर चावल के कने, चने के डंढल और कपास के डंढल का आगतों के रूप में प्रयोग करके बिजली पैदा की जाती है। भारत में, बॉयोमास ऊर्जा के क्षेत्र में अवसरों का अभी दोहन किया जाना है और अनुमान है कि इस सेगमेंट के पास 950 मेगावाट की वर्तमान संस्थापित क्षमता के बरअक्स 19,500 मेगावाट ऊर्जा पैदा करने की संभावना है।


आखिर में, छोटे पैमाने पर, एनटीपीसी जैसी कंपनियां भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र में दाखिल हुई हैं जो कि और कुछ नहीं बल्कि धरती की सतह के नीचे संग्रहीत गर्मी द्वारा पैदा की गयी ऊर्जा है। निचोड़ के तौर पर ये वे कुछ सेगमेंट हैं, जो कि हालांकि संभावनासम्पन्न लगते हैं पर चीजों के बेहतर लगना शुरू होने में कुछ समय लग सकता है।

First Published - April 7, 2008 | 12:04 AM IST

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