जरा आप सत्यम कंप्यूटर्स की बात अपने जेहन में उतारिए, आप विश्व के सबसे धनी व्यक्ति वॉरेन बफेट की सलाह को जरूर याद करेंगे।
वॉरेन बफेट ने कहा था कि अपनी एक खास पहचान बनाने में काफी समय लगता है, लेकिन इसे बर्बाद होने के लिए मात्र 5 मिनट काफी होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप इसका ध्यान रखते हो तो निश्चित तौर पर आप कुछ सतर्क होकर और दूसरे तरीकेसे काम करेंगे।
उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह भारत के चौथे सबसे बड़े सॉफ्टवेयर निर्यातक सत्यम को उस समय अपने निवेशकों के कोपभाजन बनना पडा जब इसने सत्यम के ही संस्थापक अध्यक्ष बी रामलिंग राजू के बेटे के नियंत्रण वाली 1.6 अरब डॉलर की रियल एस्टेट और विनिर्माण कंपनी को खरीदने की घोषणा कर डाली।
इस सौदे के पीछे बहुत खामियां थीं। मायटास प्रॉपर्टीज में 1.3 अरब डॉलर में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और मायटास इन्फ्रा में 30 करोड़ डॉलर में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव गले केनीचे नहीं उतरता है। अगर यह समझौता हो जाता तो इससे सत्यम के 1.1 अरब डॉलर के अनुमानित अतिरिक्त मुनाफे में जबरदस्त सेंध लग जाती।
अगर मायटास इंफ्रास्ट्रक्चर के मार्जिन पर नजर दौड़ाएं तो इस बात के संकेत मिलते हैं इस सौदे के बाद दोनों कंपनियों के संयुक्त मार्जिन में भारी गिरावट आती।
इस असफल सौदे की दिलचस्प बात यह लगती है कि सत्यम में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है और इस सौदे के लिए शेयरधारकों की सहमति नियम के तहत जरूरी नहीं थी।
एडलवाइस सिक्योरिटीज के विशेषज्ञ विजु जॉर्ज का कहना है, ‘इस बारे में थाह लेना मुश्किल है कि आखिर कंपनी ने दोनों कंपनियों के तीन तरफा शेयर आधारित विलय को तरजीह क्यों नहीं दी, जिससे यह बात सुनिश्चित हो जाती कि नकदी उनके पास ही रहेगी।’
चयन प्रक्रिया और दो लक्षित कंपनियों के लिए मूल्यांकन की घोषणा भर काफी नहीं है, जिससे ऐसा लगता है कि यह काफी महंगा सौदा है। इस सौदे के मुताबिक अधिक मूल्यांकन के साथ मायटास प्रॉपर्टीज (सूचीबध्द नहीं है) का मूल्यांकन 91.47 लाख रुपये प्रति एकड़ था
(6,220 करोड़ रुपये ,जमीन 6,800 एकड़), बावजूद इसके कंपनी की ज्यादातर जमीन मझोले शहरों जैसे विजाग, विजयवाड़ा, काकीनाड़ा और नागपुर में है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा समय में इसकी औसत कीमत 40 लाख से 45 लाख रुपये प्रति एकड़ होनी चाहिए थी।
दूसरी तरफ मायटास इन्फ्रा की मूल्यांकन वित्त वर्ष 2008 के राजस्व के लगभग 1.6 गुना किया गया, जबकि वित्त वर्ष 2008 के राजस्व पर मझोली निर्माण कंपनियों के शेयर औसत रूप में आधे से भी कम मूल्य पर कारोबार कर रहे थे।
हैरत की बात है कि विशेषज्ञ और शेयरधारक एक जैसा सोच रहे हैं : क्या यह सौदा मायटास की दो कंपनियों को दिया जाने वाला राहत पैकेज था, जो इस समय पैसा उगाहने की भरसक कोशिशें कर रही हैं? मायटास इन्फ्रा पर वित्त वर्ष 2008 में कुल कर्ज 934 करोड़ रुपये था, जो इससे पिछले साल 260 करोड़ रुपये था।
सत्यम में शामिल होने के बाद दोनों कंपनियां न सिर्फ अपनी चालू परियोजनाओं के लिए पैसा मुहैया कर पातीं बल्कि बड़ी परियोजनाओं के लिए बोली भी लगा पातीं। विशेषज्ञों को लगता है कि सौदा रद्द होने के एक दिन बाद शेयरों के बायबैक के प्रस्ताव से सत्यम में निवेशकों का विश्वास टूट गया है।
शेयरखान के प्रधान अनुसंधानकर्ता गौरव दुआ का कहना है, ‘हमें लगता है कि इस घटना के बाद प्रबंधन की साख पर बुरा असर पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप शेयरों की रेटिंग में कमी आएगी।’
पिछले तीन से चार महीनों में मायटास इन्फ्रा का प्रदर्शन सौदा हो जाने की उम्मीद और कंपनी को हासिल हुए ठेके के कारण काफी बढ़िया रहा।
लेकिन 16 दिसंबर से मायटास इन्फ्रा के शेयरों की कीमत तीन कारोबारी सत्र के दौरान 49 प्रतिशत गिर गई और हो सकता है कि अधिक मूल्यांकन की वजह से और गिर जाए (वित्त वर्ष 2010 के लिए दूसरी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों का पीई 5 से 7 रहेगा)।