भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को संपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (एआरसी) और उधारी लेने वालों के बीच बकाये के निपटान से जुड़े मानक सरल कर दिए हैं। इससे जुड़े नियमों को करीब करीब बैंकों और एनबीएफसी के लिए बने मानकों की तर्ज पर कर दिया गया है।
अब 1 करोड़ रुपये से ऊपर के बकाये का निपटान बोर्ड द्वारा मंजूर नीति के आधार पर किया जा सकता है और बोर्ड की समिति फैसला कर सकती है। इसके पहले इस तरह के निपटान के लिए बोर्ड की मंजूरी की जरूरत होती थी। संशोधित मानकों में यह अनिवार्य किया गया है कि समिति की अध्यक्षता एक स्वतंत्र निदेशक करेगा और इसमें अध्यक्ष सहित न्यूनतम 2 स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए या समिति की कुल संख्या के एक तिहाई या 3 स्वतंत्र निदेशक (जो भी अधिक हो) होने चाहिए।
तकनीकी/वित्तीय/कानून से जुड़े लोगों से बनी एक स्वतंत्र सलाहकार समिति (आईएसी) प्रस्ताव की जांच करेगी और अपने सुझाव एआरसी को देगी। बोर्ड की समिति आईएसी की सिफारिशों पर विचार करेगी और निपटान के बारे में निर्णय लेने से पहले वसूली के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर विचार करेगी कि क्या मौजूदा परिस्थितियों में उधारकर्ता के साथ बकाया राशि का निपटान करना ही सर्वोत्तम विकल्प है।
संशोधित मानकों में कहा गया है, ‘बकाया की वसूली के सभी संभावित विकल्पों की ‘जांच’ करने के बाद ही कर्जदारों के साथ समझौते का विकल्प चुनें, जब यह माना जाए कि यही सर्वोत्तम उपलब्ध विकल्प है।’ इसके पहले मानकों में कहा गया था कि वसूली के सभी कदम ‘उठाए’ जाने के बाद ही कर्जदार के साथ समझौता किया जाना चाहिए जब कर्ज वसूली की कोई संभावना नहीं हो।
एक करोड़ रुपये से कम बकाया राशि के निपटान की मंजूरी ऐसे अधिकारी दे सकते हैं, जो किसी भी क्षमता में संबंधित वित्तीय परिसंपत्तियों के अधिग्रहण (व्यक्तिगत रूप से या समिति के भाग के रूप में) का हिस्सा नहीं थे। इससे पहले एक करोड़ रुपये तक के मूल बकाया के निपटान प्रस्तावों की जांच एआरसी की स्वतंत्र सलाहकार समिति (आईएसी) द्वारा की जाती थी।
एसोसिएशन आफ एआरसीज इन इंडिया के सीईओ हरिहर मिश्र ने कहा कि संशोधित दिशानिर्देश से समाधान प्रक्रिया सरल होगी। मिश्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘पहले के समाधान दिशानिर्देशों में एक ही नियम सब पर लागू होता था। कम राशि वाले कर्ज लाखों की संख्या में हैं और उनके लिए नियम लागू करना दुस्वप्न साबित हो रहा था।’
मिश्र ने कहा कि अब दिशानिर्देशों को तार्किक बनाया गया है और छोटे ऋण के निपटान के लिए अलग व्यवस्था है, जब बकाया 1 करोड़ रुपये से कम होगा। इस तरह के खातों के निपटान के लिए कंपनी, बोर्ड या बोर्ड की समिति के सामने तिमाही रिपोर्ट पेश कर सकती है।
इसके अलावा यह अनिवार्य किया गया है कि निपटान राशि का शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) सामान्यतः प्रतिभूतियों के वसूली योग्य मूल्य से कम नहीं होना चाहिए। रिजर्व बैंक ने कहा है, ‘अगर वित्तीय संपत्तियों के अधिग्रहण के समय दर्ज की गई प्रतिभूतियों के मूल्यांकन और निपटान में प्रवेश के वक्त निर्धारित प्रतिभूतियों के वसूली योग्य मूल्य के बीच ज्यादा अंतर है, इसकी वजह लिखना होगा।’
रिजर्व बैंक ने कहा है कि हर एआरसी को बोर्ड से मंजूर बकाया निपटान नीति बनानी चाहिए, जिसका भुगतान कर्जदारों को करना होता है। इसके अलावा, निपटान राशि का भुगतान एकमुश्त किया जाना चाहिए। समझौते में अगर एक किस्त में सहमत पूरी राशि के भुगतान की बात नहीं की गई है, वहां प्रस्ताव स्वीकार्य व्यवसाय योजना (जहां लागू हो), उधारकर्ता की अनुमानित आय और नकदी प्रवाह के अनुरूप होना चाहिए। दिशानिर्देश में उन मामलों में पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं का जिक्र है जहां एक करोड़ रुपये से अधिक या उससे कम के कुल मूल्य वाले उधारकर्ता से संबंधित खातों का निपटान किया जाता है। संशोधित मानक तत्काल प्रभाव से लागू किए गए हैं।