भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ‘किसी भी कीमत पर तेजी से वृद्धि’ करने के तरीकों पर चिंता जताते हुए चेतावनी दी है।
उसने कहा है कि अगर ये कंपनियां खुद से अपनी नीतियों में सुधार नहीं करती हैं तो केंद्रीय बैंक उनके खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा। इसके साथ ही उसने एनबीएफसी को अपने मौजूदा क्षतिपूर्ति तौर-तरीकों, वेरिएबल पे और प्रोत्साहन ढांचे की समीक्षा करने का निर्देश दिया है क्योंकि कुछ एनबीएफसी में ये पूरी तरह से लक्ष्य-आधारित हैं।
दास ने कहा, ‘कुछ एनबीएफसी अपने पोर्टफोलियो के पैमाने और जटिलता के अनुरूप टिकाऊ व्यावसायिक प्रणालियों और जोखिम प्रबंधन व्यवस्था बनाए बिना आक्रामक रूप से वृद्धि पर जोर दे रही हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘किसी भी कीमत पर वृद्धि’ का अविवेकपूर्ण दृष्टिकोण उनकी स्वयं की सेहत के लिए नुकसानदायक साबित होगा।
दास ने इस बात पर प्रकाश डाला कि माइक्रोफाइनैंस संस्थानों (एमएफआई) और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों (एचएफसी) सहित कुछ एनबीएफसी निवेशकों के दबाव और पूंजी में भारी वृद्धि के कारण ज्यादा रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) की दौड़ में लगी हैं।
उन्होंने जोर दिया कि हालांकि वृद्धि लक्ष्य निर्धारित करना एनबीएफसी बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में है। लेकिन चिंता तब पैदा होती है जब वे ज्यादा ब्याज दरों के साथ-साथ अनुचित रूप से ऊंचे प्रोसेसिंग शुल्क और अनावश्यक पेनाल्टी वसूलते हैं।
उन्होंने कहा कि इन लक्ष्यों का नकारात्मक असर वास्तविक मांग के बजाय खुदरा ऋण वृद्धि को बढ़ा सकता है जिससे संभावित रूप से भारी ऋण बोझ को बढ़ावा मिल सकता है और अगर एनबीएफसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो वित्तीय स्थिरता को जोखिम पैदा हो सकता है। दास ने कहा, ‘यह जरूरी है कि एनबीएफसी टिकाऊ व्यावसायिक लक्ष्यों पर अमल करें, अनुपालन पहले की संस्कृति पर जोर दें, मजबूत जोखिम प्रबंधन व्यवस्था और ग्राहक शिकायतों के लिए एक गंभीर दृष्टिकोण के प्रति जवाबदेह बनें।’
एमके रिसर्च के वरिष्ठ शोध विश्लेषक अविनाश सिंह के अनुसार एनबीएफसी क्षेत्र पर आरबीआई का नजरिया पिछले साल के दौरान गवर्नर के मौजूदा प्रयासों के हिसाब से है, विशेष रूप से एनबीएफसी को असुरक्षित ऋण और बैंक से फंडिंग पर जोखिम भार में वृद्धि के बाद। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने एनबीएफसी से जोखिम प्रबंधन ढांचा मजबूत बनाने और सतर्कता बरतने को कहा है।
गवर्नर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि एनबीएफसी को अत्यधिक आरओई के पीछे भागने के बजाय ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देनी चाहिए। कुल मिलाकर जब नियामकीय हस्तक्षेप होता है तो वृद्धि में कुछ नरमी की आशंका रहती है।
एक उद्योग विश्लेषक ने बताया कि केवल पीई संचालित गैर-सूचीबद्ध एनबीएफसी या एचएफसी या एमएफआई ही नहीं बल्कि सूचीबद्ध कंपनियां भी एक निश्चित गति से आगे बढ़ने के दबाव में हैं जिससे सार्वजनिक बाजारों में ऊंचा मूल्यांकन जायज हो। प्रदर्शन में किसी भी तरह की गिरावट या कमजोरी की वजह से शेयरों और मूल्यांकन पर दबाव पड़ेगा।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में एनबीएफसी की प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) सालाना आधार पर 18 प्रतिशत तक बढ़कर 47 लाख करोड़ रुपये रहीं। हालांकि पिछले वर्ष नवंबर में आरबीआई के जोखिम भार बढ़ाने के बाद बैंकों द्वारा एनबीएफसी को दिए जाने वाले वित्त में कमी आने के कारण इस वर्ष यह वृद्धि धीमी रहेगी।
इक्रा में ग्रुप हेड (फाइनैंशियल सेक्टर रेटिंग्स) कार्तिक श्रीनिवासन के अनुसार पिछले वर्ष नवंबर में एनबीएफसी को बैंक वित्तपोषण के लिए जोखिम भार बढ़ाने के बावजूद आरबीआई को संभवतः ऐसा लगता है कि एनबीएफसी की वृद्धि दर में पर्याप्त कमी नहीं आई है। वित्त वर्ष 2024 में एनबीएफसी क्षेत्र का मजबूत विस्तार हुआ। इसमें भी खुदरा केंद्रित एनबीएफसी में सालाना आधार पर 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।
आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि जून 2024 तक एनबीएफसी क्षेत्र की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) और शुद्ध एनपीए अनुपात 2.6 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत थे जबकि पिछले वर्ष की इसी तिमाही में ये 3.2 प्रतिशत और 1.2 प्रतिशत थे।