भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति की सदस्य आशिमा गोयल का कहना है कि भारत में कर्ज और जमा का अनुपात (सीडी रेश्यो) दुनिया के कई देशों की तुलना में कम है। उन्होंने कहा कि सांकेतिक (नॉमिनल) वृद्धि के लिहाज से देखें तो बैंकों में ऋण वृद्धि समुचित रूप से सुरक्षित है।
गोयल ने गुरुवार को ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में कहा, ‘अगर हम 15 प्रतिशत की सांकेतिक वृद्धि दर से आगे बढ़ रहे हैं तो इसके इर्द-गिर्द ऋण में बढ़ोतरी सुरक्षित मानी जा सकती है। कुल मिलाकर, भारत में ऋण-जमा अनुपात दुनिया के कई देशों की तुलना में कम है। दूसरे देशों के मुकाबले पारिवारिक और फर्मों के स्तर पर उधारी काफी कम है जबकि हमारी सरकार अधिक उधारी लेती रहती है।‘
उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों जैसे व्यक्तिगत ऋण आदि में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में बढ़ोतरी का समझदारी भरे नियमों के साथ प्रबंधन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में अधिकता है, उनमें जोखिम भार में सख्ती की जा सकती है और पूरे तंत्र में ब्याज दरें बढ़ाने को टाला जा सकता है, जिससे दूसरे क्षेत्रों को आगे बढ़ने का सतत मौका मिलता रहेगा।
वर्ष 2010 के दशक के शुरू की तुलना में हाल में एनपीए में बढ़ोतरी चिंता का कम विषय है। इस समय, एनपीए छोटे आकार के ऋणों से जुड़े हैं। पहले प्रमुख कंपनियों को दिए गए मोटे बुनियादी ढांचा कर्ज अटक गए थे, जिससे एनपीए की अच्छी खासी समस्या हो गई थी।
गोयल ने कहा, ‘एनपीए बढ़ने का मसला हो सकता है कि व्यक्तिगत ऋण खंडों में हो। मगर समझदारी के साथ सटीक नियम-कायदों से इस स्थिति का समाधान खोजा जा सकता है। जिन क्षेत्रों में अंधाधुंध ऋण आवंटित हो रहे हैं, वहां जोखिम भार बढ़ाए जा सकते हैं। इसका मतलब हुआ कि आपको उन क्षेत्रों में दरें नहीं बढ़ानी पड़ेंगी जो तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।‘
उन्होंने कहा कि एनपीए के जो मामले हाल में दिखे हैं, वे उतनी अधिक चिंता का विषय नहीं हैं जो 2010 के दशक की शुरुआत में देखे गए थे। ये काफी अलग हैं। आज जो कर्ज बढ़ रहे हैं, वे बहुत थोड़े हैं।