त्योहारों के दौरान कई लोगों को उपहार में सोना भी मिलता है। ज्यादातर लोग फिजिकल सोना बतौर उपहार देते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ पेपर और डिजिटल रूप में भी सोना देने का चलन बढ़ा है। इस बार त्योहारी सीजन के दौरान सोने के भाव उच्चतम स्तर से तकरीबन 10 फीसदी घट गए हैं, जिससे इस कीमती धातु को लेकर लोगों में उत्साह बढ़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार लोगों के लिए सोना खरीद कर बतौर उपहार देने का यह सही समय हो सकता है।
हालांकि जिन्हें उपहार में सोना मिला है उन्हें यह जरूर जान लेना चाहिए कि सोने पर कर नियमों को लेकर क्या प्रावधान हैं ताकि अनजाने में उन्हें किसी तरह का नुकसान उठाना न पड़े।
नियमों के अनुसार करीबी रिश्तेदारों से उपहार में मिले सोने पर किसी तरह का कर नहीं लगाया जाता है। लेकिन गैर-रिश्तेदारों से मिला सोना कर के दायरे में आता है। यदि आपको बतौर उपहार 50,000 रुपये से अधिक मूल्य का फिजिकल गोल्ड (जेवरात, गिन्नी बिस्कुट), गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड म्युचुअल फंड मिलता है तो आपको इसकी राशि अपनी सालाना आय में अन्य स्रोतों से हुई आय के तौर पर दिखानी होगी और अपने कर स्लैब के हिसाब से इस पर कर चुकाना होगा।
अगर कोई व्यक्ति सोना (जेवरात) खरीदकर उपहार में देना चाहता है तो उसे सोने की कीमत पर 3 फीसदी जबकि गढ़ाई (मेकिंग) चार्ज पर 5 फीसदी जीएसटी चुकाना पड़ेगा। जब आप उपहार में मिले जेवरात, गिन्नी आदि को 36 महीने से पहले बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को अल्पावधि पूंजीगत लाभ माना जाएगा और आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा।
इस पर आपको अपने कर स्लैब के अनुसार आयकर चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने पूरे होने के बाद सोना बेचते हैं तो आपको लाभ यानी रिटर्न पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (उपकर मिलाकर 20.8 फीसदी) दीर्घावधि लाभ कर चुकाना होगा।
इंडेक्सेशन के तहत खरीद मूल्य को महंगाई के हिसाब से बढ़ा दिया जाता है, जिससे पूंजीगत लाभ में कमी आती है और कर देनदारी घटती है। पूंजीगत लाभ की गणना होल्डिंग अवधि यानी सोना खरीदने से लेकर बेचने के बीच की अवधि देखकर तय होता है। जिस दिन आपको उपहार मिला है उस दिन से होल्डिंग अवधि की गणना शुरू नहीं होगी बल्कि गिफ्ट देने वाले ने जिस दिन इसे खरीदा है उस दिन से गणना की जाएगी।
इसलिए बेहतर होगा कि अगर आप बतौर उपहार सोना किसी को दे रहे हैं तो खरीद से संबंधित कागजात या तो खुद संभाल कर रखें या जिसे आप गिफ्ट दे रहे हैं उसे दे दें। उपहार लेने वालों को भी खरीद से संबंधित कागजात संभालकर रखना चाहिए।
अगर बतौर उपहार दिए गए सोने की खरीद 1 अप्रैल, 2001 से पहले की गई है तो खरीद मूल्य की गणना को लेकर वास्तविक खरीद मूल्य के अतिरिक्त एक और विकल्प है जो 1 अप्रैल, 2001 का सोने का उचित बाजार मूल्य होगा। लेकिन दोनों में से जो ज्यादा होगा उसे खरीद मूल्य माना जाएगा। खरीद से संबंधित कागजात नहीं हैं तो आयकर विभाग से खरीद मूल्य की गणना को लेकर अलग प्रणाली की व्यवस्था की गई है।
पेपर गोल्ड
इसमें गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्युचुअल फंड आते हैं। मगर इन सभी को भुनाते समय फिजिकल सोने की तरह ही कर लगता है।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर कर के नियम अलग हैं। अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की परिपक्वता अवधि पूरी होने यानी 8 साल तक अपने पास रखते हैं तो कोई कर नहीं देना पड़ता। उससे पहले बेचने पर फिजिकल गोल्ड की ही तरह कर लगेगा। सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को पांच साल के बाद भुनाने का विकल्प होता है।
डीमैट रूप में बॉन्ड लेने पर किसी भी समय स्टॉक एक्सचेंज में बेच सकते हैं। सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर प्रत्येक वित्त वर्ष में 2.5 फीसदी ब्याज भी मिलता है। लेकिन इस पर कर वसूला जाता है। यह ब्याज अन्य स्रोतों से आय के तौर पर आपकी सकल आय में जुड़ जाएगा और कर स्लैब के हिसाब से ही आपको आयकर देना होगा। इस पर टीडीएस का प्रावधान नहीं है। इसी तरह डिजिटल गोल्ड पर भी फिजिकल गोल्ड की तरह कर लगता है।
