भारतीय रिजर्व बैंक के खुदरा और छोटे कारोबारी ऋण पर समय से पहले भुगतान करने पर दंड खत्म करने के प्रावधान से ऋणदाताओं की आय और लाभप्रदता पर असर पड़ेगा। रिजर्व बैंक के प्रारूप परिपत्र में यह प्रस्ताव रखा गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इससे एक नुकसान यह भी है कि ज्यादा ग्राहक ऋणदाता में बदलाव करेंगे। इससे बैंकों की तुलना में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अधिक प्रभावित हो सकती हैं।
रिजर्व बैंक ने कारोबार को छोड़कर अन्य सभी उद्देश्यों के लिए मंजूर फ्लोटिंग दरों के ऋण का समय से पहले भुगतान करने पर कोई शुल्क या चार्ज नहीं लेने के परिपत्र का प्रारूप शुक्रवार को जारी किया था। इसके अलावा बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां सूक्ष्म एवं मध्यम उद्यमों (एमएसई) से 7.5 करोड़ रुपये तक के फ्लोटिंग ऋण का समय से पहले भुगतान करने पर फोरक्लोजर शुल्क नहीं वसूल कर सकती हैं।
मैक्वेरी की एक रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर बड़े बैंक फ्लोटिंग दर पर उपलब्ध ऋणों को समय से पहले बंद करने पर शुल्क या दंड नहीं वसूलते हैं। ऐसे में प्रस्तावित नियम से एनबीएफसी के अधिक प्रभावित होने की आशंका है। बैंकों का एमएसएमई पोर्टफोलियो 7.5 करोड़ रुपये की स्वीकृत सीमा से कहीं अधिक होने का अनुमान है।
आवास ऋण की फ्लोटिंग दर पर समय से पूर्व भुगतान करने पर कोई शुल्क लेने की अनुमति नहीं है। लिहाजा इससे हाउसिंग वित्तीय कंपनियों, एनबीएफसी या फ्लोटिंग दर पर आवास के लिए कर्ज देने वाले बैंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
हालांकि ब्रोकरेज हाउस का मानना है कि इसका दो स्तरीय प्रभाव हो सकता है – इससे एनबीएफसी और कुछ बैंक की शुल्क आय पर कुछ असर पड़ सकता है और ऋण को अन्यत्र स्थानांतरित करने की लागत कम होने के कारण इन ऋणों के पोर्टफोलियो में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है। ऐसे में शेष बचे हुए ऋण को दूसरे बैंकों या एनबीएफसी में स्थानांतरित करने की घटनाएं भी कहीं अधिक बढ़ेंगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिपत्र के असर से ऋणदाताओं के लिए संपत्ति के बदले ऋण (एलएपी), एसएमई और कारोबार ऋण पोर्टफोलियो की उत्पाद लाभप्रदता कम होगी और इससे प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस प्रारूप पर 21 मार्च, 2025 तक सभी हितधारकों और आम लोगों से टिप्पणी और फीडबैक आमंत्रित किया है।