कोई भी वित्तीय सलाहकार आपको लंबी अवधि के लिए इक्विटी में निवेश की सलाह दे सकता है। लेकिन मूल सवाल यह है कि यह लंबी अवधि कितनी लंबी हो?
यह तीन साल है, पांच साल है, दस साल है या फिर जैसा कि निवेश गुरु वारेन बफेट कहते हैं, मेरी होल्डिंग की प्रिय अवधि है, हमेशा के लिए। लेकिन आम निवेशक के लिए यह हमेशा वाली अवधि संभव नहीं है क्योकि वो इक्विटी में इसलिए निवेश करते हैं ताकि अपने ध्येय को हासिल कर सकें।
मिसाल के लिए हो सकता है आप अगले पांच सालों में मकान खरीदने के लिए निवेश करें। लिहाजा यह जानना जरूरी है कि मुनाफावसूली किसी भी निवेश का अहम हिस्सा है। और इसके लिए वित्तीय सलाहकारों और शेयर बाजार के जानकारों की राय अलग अलग हो सकती है क्योंकि इन दोनों तरह के लोगों की भूमिका भी अलग है।
निवेश सलाहकारों का मानना है कि अपने सारे इक्विटी निवेश को होल्ड किए रहना घाटे का सौदा हो सकता है। बाजार विशेषज्ञ और सलाहकार गुल टेकचंदानी के मुताबिक लंबी अवधि के लिए इक्विटी में निवेश बनाए रखना संपत्ति बनाने की कुंजी हो सकती है लेकिन अगर आपने समय समय पर मुनाफावसूली नहीं की है तो हो सकता है ऐसा न हो।
लेकिन किसी भी स्टॉक को बेचने से पहले उसकी वैल्यू को देख लेना चाहिए। और इसका सीधा सा तरीका है उसकी प्राइस टु अर्निंग्स यानी पीई रेशियो को देखना। दूसरी ओर वित्तीय सलाहकार का काम ध्येय आधारित होता है। वो कोई भी निवेश करते हैं यह सोच करके कि उन्हे कब तक क्या हासिल करना है।
जो निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता का भी आकलन करते हैं और उसी के आधार पर एलोकेशन करते हैं। उनके मुताबिक मुनाफावसूली कई चरणों में की जा सकती है। एक प्रमाणित वित्तीय योजनाकार गौरव मशरूवाला के मुताबिक मिसाल के लिए माना जाए कि निवेशक का पोर्टफोलियो लार्ज कैप, मिडकैप और स्मालकैप में बंटा हुआ है।
मुनाफावसूली तक की जा सकती है जब यह अनुपात बदल रहा हो। और उसे वापस उसी एलोकेशन पर ला दिया जाए। मुनाफावसूली की कुंजी एलोकेशन है और यह म्युचुअल फंड के निवेश पर भी लागू होता है। यह बदलाव साल में एक बार तो करना ही चाहिए।
इसके अलावा मुनाफावसूली तब भी कर लेनी चाहिए जब निवेशक अपने ध्येय से एक या दो साल की दूरी पर हो। यह फैसला निवेश की वैल्यू पर भी निर्भर करता है। जब बात शेयर बाजार के निवेश सलाहकारों की आती है तो वो हर रैली पर मुनाफावसूली करने में विश्वास करते हैं, ये लोग इक्विटी निवेश को केवल संपत्ति बढ़ाने के एक जरिया के रूप में ही देखते हैं।
बाजार का सफर एक तरफा कभी नहीं होता, कभी रैली चलती है तो कभी करेक्शन आ जाता है। ये सलाहकार कहते हैं कि ऐसी गिरावट पर खरीदारी करनी चाहिए और रैली पर मुनाफावसूली कर लेनी चाहिए।
मिसाल के लिए किसी निवेशक ने अगर लंबी अवधि के लिए अच्छी वैल्यूएशन पर किसी ब्लू चिप कंपनी के सौ शेयर खरीदे हैं, ऐसे में सलाहकारों की राय होती है कि रैली पर उन शयरों के एक हिस्से की मुनाफावसूली कर लेनी चाहिए ।
