रघुराम राजन कमिटी ने सिफारिश की है कि भविष्य निधि फंडों और बीमा कंपनियों को विदेशों में निवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इसके लिए नियमों में बदलाव करने की जरुरत होगी। यह कमिटी वित्तीय क्षेत्रों में सुधार के सुझाव देने के लिए गठित की गई है।कमिटी के मसौदा रिपोर्ट में प्रतिभूतियों की ‘वास्तविक नीलामी (ट्रू ऑक्शंस)’ को शुरू करने, नीलामी और कारोबारी अवधि में कमी करने, विभिन्न प्रतिभूतियों के प्रकटीकरण के एकसमान नियम, एक्सचेंजों में खुलने और बंद होने के मूल्यों के लिए कॉल ऑप्शन के इस्तेमाल और एल्गोरिथ्मिक कारोबारों से नियामक से जुड़े प्रतिबंधों को हटाने की भी चर्चा की गई है।
इस कमिटी ने निवेश के मार्ग तैयार करने का सुझाव, खास तौर से विदेशी सरकारी प्रतिभूतियों में, भी दिया है ताकि अंर्तप्रवाह के दबाव को कम किया जा सके।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक जब चाहे तब इस बर्हिप्रवाह को विदेशी मुद्रा अंर्तप्रवाह को देखते हुए नियमित कर सकता है।हाल के दिनों में नीति निर्माता भारतीय बाजार में बड़े परिमाण में डॉलर के अंर्तप्रवाह से रुपये में आई मजबूती को लेकर परेशान हो रहे हैं।
कमिटी ने कहा है कि केंद्रीय बैंक को विनिमय दरों को मॉडुलेट करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में दखल देने से अलग रहना चाहिए।इस 10 सदस्यों वाली कमिटी ने सुझाव दिया है कि पूंजी प्रवाह को रोकने का कोई तुक नहीं बनता है, इसके बजाए सरकार को वित्त बाजार को उदार बनाना चाहिए और उन्हें विदेशी निवेशकों के लिए और अधिक खुला बनाना चाहिए।
सरकारी बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेशकों की बड़ी संख्या के होने से तरलता बढ़ेगी और घरेलू बैंक और संस्थान अन्य क्षेत्रों पर अपना ध्यान दे सकेंगे।इस बात की विवेचना करते हुए कि आर्थिक अनुशासन वित्तीय क्षेत्र के उदारीकरण के लिए जरूरी है, कमिटी ने पूंजी खाते की परिवर्तनीयता और सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स को समाप्त कर पर बल दिया है।
कमिटी वित्त बाजार के सभी प्रतिभागियों के लिए प्रतिस्पध्र्दात्मक माहौल और पोजिशन-सीमा तथा परिणामात्मक प्रतिबंधों की समाप्ति चाहता है जैसा कि म्युचुअल फंडों द्वारा विदेशी निवेशों पर लगाया गया है। सरकार और नियामकों को कारोबार पर प्रतिबंध लगाने से बचना चाहिए। पिछले वर्ष बजट के मौके पर महंगाई को देखते हुए कमोडिटी जैसे गेहूं के वायदा कारोबार को रोक दिया गया था।
इस कमिटी ने पाया, ‘अपनी जगह पर भारत का इक्विटी बाजार मजबूत है। लेकिन इस माहौल को प्राइवेट इक्विटी, वेंचर कैपिटल और हेज फंडों के लिए और अधिक माकूल बनाने की जरुरत है। म्युचुअल फंड और पेन्शन फंडों (जब वे आते हैं) को शासन प्रणाली में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार मृतप्राय है और इसका पुनरुत्थान किया जाएगा।
भारतीय कंपनियों और निवेशकों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुंच की आवश्यकता है और भारतीय वित्त कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के उत्पादन को बेहतर बनाने की जरुरत है।’परिवर्तनीयता से विदेशी निवेशकों और कंपनियों की पहुंच भारतीय बाजार में सुगम बन जाएगी, पैनल चाहता है कि नियमों में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन किए जाएं कि गरीब भी इक्विटी और कमोडिटी बाजार में हिस्सा ले सकें इससे तरलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
उदाहरण के लिए यह सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान में स्वयंसेवी समूह को साथ लेकर 200 रुपये जितनी कम रकम के निवेश की अनुमति और कमोडिटी वायदा बाजार में स्मॉल टिकट साइज के लेन देन की बात करता है।लेकिन इसके लिए नियमों में बदलाव लाने की जरूरत होगी जिसमें स्थायी खाता संख्या (पैन)संबंधी नियम भी शामिल होंगे।
ऋण बाजार के बढ़ते महत्ता, खास तौर से बड़े बुनियादी वित्तपोषण संबंधी जरुरतों के कारण, को देखते हुए कमिटी ने इस बात पर बल दिया है कि बॉन्ड, करंसी और डेरिवेटिव बाजार को संबध्द करना चाहिए ताकि सक्षमता में वृध्दि हो और अंतत: उन्हें इक्विटी बाजार से जोड़ दिया जाए।
बाजार हित में उठाए जाने वाले कदम
सभी मुद्राओं में एक्सचेंज ट्रेडेड करंसी डेरिवेटिव जिनका निपटान रुपये में किया जाता है का कारोबार एनएसई और बीएसई में होना चाहिए।
एक्सचेंज ट्रेडेड ब्याज दर डेरिवेटिव जिनमें नकदी और वास्तविक निपटान का इस्तेमाल होता है, का कारोबार एनएसई और बीएसई पर किया जाए।
बाजार के डिजाइन में सुधार जिसमें प्राथमिक बाजार में प्रतिभूतियों की बिक्री के लिए ‘वास्तविक नीलामी’, नीलामी और कारोबार की शुरुआत के बीच की अवधि में कमी शामिल है।
बड़े न्यूनतम निवेश वाले घरेलू हेज फंड की पहचान और पंजीकरण होना चाहिए।
सेबी को एक अपेक्षाकृत तेज और नए उत्पादों के अनुमोदन की प्रक्रिया स्थापित करने की जरुरत है और उसे भाव खोज, क्लियरिंग और निपटान के नए तरीके अपनाने की आवश्यकता है।