भारतीयों ने इस वित्त वर्ष की शुरुआत से सितंबर 2024 तक एकीकृत भुगतान प्रणाली की जालसाजी में 485 करोड़ रुपये गंवाए हैं। इस अवधि में धोखाधड़ी के 6.32 लाख मामले दर्ज हुए। यह जानकारी वित्त मंत्रालय के आंकड़ों में दी गई। वित्त वर्ष 23 के बाद से लेकर अभी तक यूपीआई में जालसाजी से संबंधित कुल 27 लाख मामले दर्ज किए गए हैं और इसमें कुल 2,145 करोड़ रुपये गंवाए गए हैं।
अकेले वित्त वर्ष 24 में ही 1,087 करोड़ रुपये गंवाने के 13.42 लाख धोखाधड़ी के मामले दर्ज हुए। वास्तविक समय भुगतान प्रणाली के इस्तेमाल करने वालों की संख्या और लेनदेन बढ़ने के साथ-साथ यूपीआई संबंधित धोखाधड़ी बढ़ी है। हालांकि वास्तविक समय पर आधारित भुगतान की राशि और लेनदेन की संख्या के मुकाबले यूपीआई से संबंधित धोखाधड़ी की हिस्सेदारी बहुत कम है।
मौजूदा वित्त वर्ष में सितंबर तक यूपीआई से 122 लाख करोड़ रुपये के 85.6 अरब लेनदेन हुए थे। वित्त वर्ष 24 में 200 लाख करोड़ रुपये के 131.12 अरब लेनदेन हुए थे। फिलहाल भारत में वास्तविक समय के भुगतान के लिए यूपीआई का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 40 करोड़ से अधिक है।
बैंकों से धोखाधड़ी बढ़ने की तरह ही यूपीआई से संबंधित धोखाधड़ी का दायरा बढ़ता रहा। वित्त वर्ष 22 की तुलना में वित्त वर्ष 24 में बैंक धोखाधड़ी तीन गुना से अधिक हो गया। वित्त वर्ष 24 में बैंकों में 2,714.64 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई जबकि वित्त वर्ष 22 में 9,298.4 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 8,752 मामले दर्ज हुए थे।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मार्च 2020 से केंद्रीय भुगतान धोखाधड़ी सूचना रजिस्ट्री (सीपीएफआईआर) की शुरुआत की है। यह भुगतान में धोखाधड़ी की सूचना देने के लिए वेब आधारित टूल है।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने एक सवाल के जवाब में लोक सभा को बताया कि सभी विनियमित इकाइयों (आरई) को भुगतान से जुड़ी धोखाधड़ी की सूचना सीपीएफआईआर को देनी होगी। यूपीआई पर वित्तीय धोखाधड़ी सहित सभी साइबर धोखाधड़ी के पीड़ित, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल और नैशनल साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।