म्यूचुअल फंड (mutual fund या MF) में भी निवेश कर (अगर आप पुरानी टैक्स व्यवस्था का चुनाव करते हैं) आप टैक्स में छूट प्राप्त कर सकते हैं। इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ELSS या ईएलएसएस) MF की ऐसी ही एक खास कैटेगरी है जिसमें निवेश करने पर आपको 80C के तहत डिडक्शन (deduction)का फायदा मिलता है। 80C के तहत सालाना 1.5 लाख रुपए तक के deduction का फायदा उठाने के लिए लोग निवेश के कई अन्य विकल्पों का चयन करते हैं, जैसे लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी (life insurance policy), पीपीएफ (PPF), एनएससी (NSC), सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS), बैंक/पोस्ट ऑफिस फिक्स्ड डिपोजिट (bank/post office FD), एनपीएस (NPS), यूलिप (ULIP) वगैरह। लेकिन ELSS इन सब में अकेला ऐसा विकल्प है जिसमें करीब-करीब पूरा निवेश/एक्सपोजर इक्विटी में होता है। बाकी के दो विकल्पों — एनपीएस और यूलिप — में ELSS की अपेक्षा इक्विटी में कम एक्सपोजर है। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि टैक्स में छूट के साथ साथ लांग टर्म में इक्विटी में निवेश से बेहतर रिटर्न भी मिले तो ELSS एक अच्छा विकल्प हो सकता है। वैसे लोग जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है उनके लिए तो यह इक्विटी में निवेश शुरू करने का बेहतर जरिया है।
लेकिन ELSS में निवेश से पहले कुछ बातों को जानना आवश्यक है:
ELSS क्या है?
ELSS एक डाइवर्सिफाइड (diversified) मल्टीकैप इक्विटी MF स्कीम है जिसमें फंड मैनेजर आपकी रकम को अलग अलग साइज की कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है। किसी भी अन्य MF की तरह आप 500 रुपये से इसमें निवेश प्रारंभ कर सकते हैं। जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। लेकिन ख्याल रहे एक वित्त वर्ष में 80C के तहत deduction का फायदा अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक के निवेश (अन्य विकल्पों में निवेश की राशि को मिलाकर) पर ही मिलेगा।
लॉक-इन पीरियड (Lock-in period)
अन्य MF स्कीम की तरह इसे जब चाहें रिडीम यानी बंद नहीं कर सकते हैं। ELSS का अनिवार्य लॉक-इन पीरियड 3 वर्ष है। मतलब आप तीन वर्ष से पहले इस स्कीम से नहीं निकल सकते हैं। लेकिन निवेश के उन सारे विकल्पों जिन पर 80C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है की तुलना में ELSS का lock-in period सबसे कम है। उदाहरण के तौर पर पीपीएफ का lock-in period 15 वर्ष है जबकि NSC, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS), बैंक/पोस्ट ऑफिस FD, ulip का 5 वर्ष है। जबकि NPS तो खासकर रिटायरमेंट के लिए है। Lock-in period के बाद भी आप ELSS में निवेश जारी रख सकते हैं।
ELSS से कमाई पर टैक्स
ELSS एक इक्विटी MF स्कीम है क्योंकि इस स्कीम में कम से कम 65 फीसदी निवेश इक्विटी में होता है। अन्य MF स्कीम की तरह इस स्कीम में भी निवेश के दो प्लान — ग्रोथ (growth) और डिविडेंड (dividend) — में से एक चुनने का विकल्प है। ग्रोथ प्लान में रिटर्न स्कीम के बीच नहीं मिलता है। कहने का मतलब रिटर्न रिडेम्शन से पहले नहीं। लेकिन अनिवार्य lock-in period के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा के सालाना रिटर्न पर 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG/एलटीसीजी) का प्रावधान है। अगर आप dividend प्लान लेते हैं तो निवेश की अवधि के दौरान (lock-in period से पहले और बाद दोनों), जो रिटर्न dividend के रूप में मिलता है वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा।
कितना रिटर्न?
ELSS में वही जोखिम हैं जो इक्विटी MF में निवेश के हैं। इसमें फिक्स्ड रिटर्न जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन अगर आप लांग टर्म में यानी कम से कम 7 से 10 वर्ष के लिए निवेश करेंगे तो आपको फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (fixed income instruments) की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलेगा। इसलिए बेहतर होगा कि 3 वर्ष के अनिवार्य lock-in period के बाद भी ELSS में निवेश को बरकरार रखें। टैक्स में छूट पाने से कहीं ज्यादा यह लांग-टर्म इन्वेस्टमेंट का बेहतर विकल्प है।
एकमुश्त या SIP?
एकमुश्त (lump sum) के बजाए सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी या SIP) ——यानि एक निश्चित मासिक, तिमाही, छमाही, या सालाना अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश — के जरिए MF में निवेश करना हमेशा बेहतर माना जाता है। क्योंकि इसमें मार्केट को टाइम करने का जोखिम नहीं है। साथ ही मार्केट से संबंधित उतार-चढाव का एवरेजिंग (averaging) भी हो जाता है। लेकिन अगर आप SIP के माध्यम से निवेश करेंगे तो हर किस्त का lock-in period अलग अलग होगा।