कोविड-19 महामारी के बीच कई लोग अपनी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के नफा-नुकसान का आकलन करने में जुट गए हैं। किसी तरह की खामी होने या बदलते परिवेश के अनुकूल नहीं होने पर पॉलिसीधारक पॉलिसी किसी दूसरी बीमा कंपनी में स्थानांतरित (पोर्ट) कराने से नहीं चूक रहे हैं। ऑनलाइन माध्यम से बीमा पॉलिसियां खरीदने का विकल्प देने वाली पॉलिसीबाजार के अनुसार पहले औसतन 7 से 8 प्रतिशत ग्राहक अपनी पॉलिसियां पोर्ट कराना चाह रहे थे लेकिन मार्च से मई के बीच ऐसे लोगों की तादाद बढ़कर 15 प्रतिशत तक पहुंच गई।
बदलती जरूरतों पर ध्यान
जिन लोगों ने कई वर्षों पहले 1 से 2 लाख रुपये की पॉलिसियां खरीदी थीं उन्हें महामारी के दौरान महसूस हुआ कि इतनी बीमा सुरक्षा पर्याप्त नहीं है। पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में स्वास्थ्य कारोबार प्रमुख अमित छाबड़ा कहते हैं, ‘जो लोग अपनी पॉलिसियां पोर्ट कराना चाहते हैं उनमें 80 प्रतिशत का कहना है कि वे पॉलिसी बीमित राशि की सीमा बढ़ाना चाहते हैं।’ कमरे के किराये एवं आईसीयू में इलाज पर आने वाले खर्च की सीमा तय होने और सह-भुगतान (को-पेमेंट) जैसी शर्तों के कारण भी लोग बिना पाबंदी वाली पॉलिसियां खरीदना चाह रहे हैं। दावों के निपटान में आने वाली दिक्कत भी एक प्रमुख वजह रही है। स्टार हेल्थ ऐंड अलायड इंश्योरेंस में प्रबंध निदेशक एस प्रकाश कहते हैं, ‘ग्राहक अपनी जीवन बीमा कंपनी से कई तरह की सहूलियत चाह रहे हैं।’ प्रीमियम की ऊंची दर भी पॉलिसी पोर्ट कराने की एक प्रमुख वजह है। साना इंश्योरेंस ब्रोकर्स में प्रमुख-सामान्य बीमा-नयन गोस्वामी कहते हैं, ‘जब लोग 40-45 या 45-50 की उम्र पार कर जाते हैं तो उनका प्रीमियम अचानक बढ़ जाता है। अधिक प्रमियम का भुगतान करने से बचने के लिए वे कम खर्च में ही अधिक खूबियों वाली पॉलिसी चाहते हैं।’
कुछ बीमा कंपनियां पीपीई किट्स पर आने वाले खर्च भी बीमा कवर में शामिल करने लगी हैं। छाबड़ा कहते हैं, ‘कोविड महामारी के दौरान पीपीई किट पर आने वाले खर्च की हिस्सेदारी कुल बिल में 15-20 प्रतिशत तक हो गई है। इसे देखते हुए ग्राहक ऐसी पॉलिसी देख रहे हैं जिनमें ये खर्च भी शामिल होते हैं।’ लोग घर में इलाज पर आने वाले खर्च के भुगतान, बीमित राशि पुन: बहाल होने, रोबोटिक सर्जरी एवं मोटापे के इलाज के लिए शल्य चिकित्सा आदि की सुविधाएं वाली पॉलिसियां भी देख रहे हैं। रीन्यूबाई डॉट कॉम के सह-संस्थापक इंद्रनील चटर्जी कहते हैं, ‘जब लोगों को लगता है कि उनकी मौजूदा पॉलिसियों में बदलती जरूरतों के साथ पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं तो वे उन्हें पोर्ट कराने का विकल्प आजमाने लगते हैं।’
इन बातों की करें पड़ताल
केवल कम प्रीमियम देखकर ही पॉलिसी पोर्ट नहीं कराएं, बल्कि पॉलिसी की खूबियों पर भी विचार करें। पहले से मौजूदा बीमारियों (पीईडी) के लिए प्रतीक्षा अवधि जान लें और यह भी देख लें कि किसी खास बीमारी के लिए संबंधित बीमा कंपनी ने कितने समय तक इंतजार करने की शर्त रखी है। सब-लिमिट और को-पेमेंंट वाली पॉलिसियों से परहेज करें। चटर्जी पॉलिसी खरीदने से पहले बीमा कंपनी के दावा निपटाने के अनुपात पर भी गौर करने की सलाह देते हैं। आपका पसंदीदा अस्पताल संबंधित बीमा कंपनी के ‘नेटवर्क हॉस्पिटल’ की सूची में होना चाहिए। पर्याप्त बीमित रकम लेने से नहीं चूकें। 35 वर्ष की उम्र के पति-पत्नी के लिए 1 करोड़ रुपये की फैमिली फ्लोटर पॉलिसी 1,228-2,622 रुपये के मासिक प्रीमियम पर मिल जाती है।
निरंतरता लाभ जरूरी
नई पॉलिसी लेते समय निरंतरता लाभ से कतई समझौता नहीं करें। मान लें किसी ने व्यक्ति ने 2015 में स्वास्थ्य पॉलिसी ली है लेकिन 2018 में उसे हृदय की बीमारी लग जाती है और अगले ही वर्ष यानी 2019 में वह पॉलिसी पोर्ट कराना चाहता है। इस मामले में नई बीमा कंपनी को उसकी हृदय की बीमारी को पीईडी की श्रेणी में नहीं रखनी चाहिए। प्रकाश कहते हैं, ‘अगर कोई बीमारी बीमा पॉलिसी खरीदने के बाद लगती है तो नई जीवन बीमा कंपनी को इसे पीईडी के तौर पर नहीं देखना चाहिए।’
जितनी प्रतीक्षा अवधि पूरी हुई है उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। गोस्वामी कहते हैं, ‘मान लें जब आपने पॉलिसी खरीदी थी तब पहले से आपको कोई बीमारी थी लेकिन आपने इसके लिए पूरे चार वर्ष की प्रतीक्षा अवधि पूरी कर ली है तो नई बीमा कंपनी इससे पॉलिसी के दायरे में शामिल करेगी। अगर आने तीन वर्ष पूरे किए हैं तो नई बीमा कंपनी में आने के बाद आपको संबंधित बीमारी के इलाज पर आने वाले खर्च का दावा करने के लिए एक वर्ष तक ही इंतजार करना होगा।’ जिन लोगों ने पॉलिसी ले रखी हैं उन्हें कोई नई बीमारी होने की जानकारी अपनी बीमा कंपनी को देनी चाहिए। छाबड़ा कहते हैं,’कोई नई बीमारी होती है तो अपनी पॉलिसी में इसे जरूर दर्ज कराएं। इससे पोर्ट करते समय नई बीमा कंपनी इसे पीईडी के तौर पर नहीं लेगी।’
पॉलिसी स्थानांतरित करें?
आपकी मौजूदा पॉलिसी आपको कुछ लाभ भी देती है। इसमें एक है पॉलिसी के नवीकरण का अधिकार। गोस्वामी कहते हैं, ‘अगर आपने कोई बड़ा दावा किया है तब भी मौजूदा बीमा कंपनी अगले वर्ष आपकी पॉलिसी का नवीकरण करेगी। लेकिन जब आप पोर्ट कराते हैं और नई बीमा कंपनी को लगता है कि आपको पॉलिसी देकर उन्हें वित्तीय जोखिम हो सकता है तो आपका आवेदन अस्वीकार हो सकता है।’ किसी एक बीमा कंपनी के साथ लंबे समय तक बने रहने का एक और लाभ है। अगर आप किसी बीमा कंपनी के साथ आठ वर्षों से हैं तो आपका दावा खारिज नहीं किया जा सकता। अगर बीमा कंपनी को पता चलता है कि पॉलिसी खरीदते समय आपने पीईडी का जिक्र नहीं किया तो भी वह आपका दावा खारिज नहीं कर सकती। पॉलिसी तभी पोर्ट कराएं जब मौजूदा बीमा कंपनी की सेवा गुणवत्ता ठीक नहीं है या बदलती जरूरतों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जिस व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा है उनके लिए पॉलिसी पोर्ट कराना आसान है लेकिन जिन लोगों को कोई न कोई बीमारी लग चुकी है उनके लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाता है।
समय रहते पोर्ट कराएं
अपनी मौजूदा पॉलिसी के नवीकरण से 60 दिन पहले पोर्ट के लिए आवेदन करें ताकि नई बीमा कंपनी को आपके आवेदन पर विचार करने का पर्याप्त समय मिल जाए। गोस्वामी कहते हैं,’अगर आप देर से आवदेन करते हैं और प्रस्ताव अस्वीकार हो जाता है तो आपको दूसरी बीमा कंपनी के पास आवेदन करने का समय नहीं मिलेगा।’ समय रहते आवेदन करने से आपको एक फायदा यह भी होगा कि आप नई पॉलिसी की शर्तें समझ लेंगे और तय कर पाएंगे कि ये आपके अनुकूल हैं या नहीं।