जियो फाइनैंस लिमिटेड 3,000 करोड़ रुपये का अपना पहला बॉन्ड जारी करने की योजना में देरी कर सकती है, जो मूल रूप से इस महीने के अंत में आने वाला था। यह मुकेश अंबानी की जियो फाइनैंशियल सर्विसेज की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
सूत्रों ने कहा कि अप्रैल में यील्ड कम होने की उम्मीद को देखते हुए यह फैसला आया है क्योंकि यह व्यापक तौर पर उम्मीद की जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) नीतिगत रीपो रेट में 25 आधार अंक की और कटौती कर सकती है। कंपनी का इरादा 5 साल के बॉन्ड बेचकर धन जुटाने का था।
सूत्रों ने कहा, ‘वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2025) में अब बहुत कम दिन ही बचे हैं। दर में कटौती के बाद नकदी की स्थिति सुधरेगी और इससे यील्ड कमजोर होगा, जो हाल में बढ़ गई है।’ उन्होंने कहा, ‘उन्होंने हाल में सीपी जारी किए हैं और वे अपने बॉन्ड जारी करने के लिए अप्रैल तक का इंतजार कर सकते हैं।’एक और सूत्र ने कहा, ‘बाजार में उतरने के पहले कंपनी बाजार की स्थिति देख सकती है।’
क्रिसिल और केयर ने फर्म के बॉन्डों की एएए और सीपी की ए प्लस रेटिंग की है। इस सिलसिले में बिजनेस स्डैंडर्ड द्वारा भेजे गए ई-मेल का जियो फाइनैंशियल सर्विसेज ने कोई जवाब नहीं दिया।
कंपनी ने पिछले सप्ताह कमर्शियल पेपर (सीपी) जारी कर डेट मार्केट में संभावना तलाशी थी और 7.80 प्रतिशत यील्ड पर 1,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। एएए रेटिंग वाले कॉर्पोरेट बॉन्ड की यील्ड फरवरी से अब तक 15 आधार अंक बढ़ी है। इसकी वजह से तमाम जारीकर्ताओं ने सिर्फ आंशिक सबस्क्रिप्शन स्वीकार किए हैं और अपना फंडिंग लक्ष्य पूरा करने के लिए उन्हें फॉलो-ऑन इश्युएंस के साथ बाजार में वापस आने के लिए बाध्य होना पड़ा है।
लंबी अवधि के बॉन्डों की यील्ड बढ़ने के कारण ज्यादातर सरकारी जारीकर्ता मध्मय और कम अवधि के बॉन्डों के माध्यम से बाजार से धन जुटा रहे हैं, जिससे ज्यादा यील्ड के बाववजूद उनके धन की जरूरत पूरी हो सके। यह लंबी अवधि के ऋण के प्रति उनकी सामान्य प्राथमिकता से एक बदलाव है, क्योंकि ऐसे बॉन्ड अधिक जारी होने के कारण उनके यील्ड में बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व बैंक द्वारा अप्रैल और जून में लगातार नीतिगत दर में कटौती की उम्मीद के कारण जारीकर्ता कम अवधि के बॉन्ड जारी करने को प्रेरित हुए।
बाजार से जुड़े हिस्सेदारों ने कहा कि नीतिगत दर में कटौती के बाद लंबी अवधि के बॉन्डों का यील्ड कम होने पर दीर्घावधि के हिसाब से उधारी सस्ती पड़ेगी। फरवरी में नीतिगत दर घटाए जाने के बावजूद अधिक बॉन्ड आने की वजह से कॉर्पोरेट बॉन्डों की यील्ड बढ़ी है, जिनमें राज्य सरकार की सिक्योरिटीज भी शामिल हैं। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मंगलवार को बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की शुद्ध कमी 2.26 लाख करोड़ रुपये थी।