निर्माण से जुड़ी उन कंपनियों का भविष्य उवल हो सकता है, जो कमोडिटी की बढ़ती कीमतें और ब्याज दरों में इजाफे के कारण दबाव में चलती आ रही हैं।
एक तरफ कमोडिटी की कीमतों में खासी कमी हुई है और दूसरी तरफ घरेलू वित्तीय प्रणाली में नकदी बढ़ाने के लिए कई उपाय किए गए हैं, इन कंपनियों को इसके फायदे मिलने चाहिए। इसके अलावा ब्याज दरों के और कम होने के आसार हैं।
इससे बढ़ती ब्याज दरों और परियोजनाओं की व्यवहार्यता से जुड़ी चिंताएं कम हुई हैं (ऊंची ब्याज दर के हालात )। बदलती परिस्थितियों में स्मार्ट इन्वेस्टर ने ऐसी गतिविधियों और निर्माण क्षेत्र के साथ-साथ लाभान्वित होने वाली महत्वपूर्ण कंपनियों पर उसके प्रभावों को जानने की कोशिश की।
लागत के दबाव में कमी
स्टील और सीमेंट की कुल परियोजना लागत में 30 से 50 प्रतिशत तक हिस्सेदारी होती है। इनकी कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण निर्माण कंपनियां भारी दबाव में आ गई थीं। परियोजना के अनुबंधों में लागत बढ़ोतरी की शर्त शामिल होने के कारण कीमतों में बढ़ोतरी का एक हिस्सा ग्राहकों से वसूला जाता था।
इन दो कमोडिटी की कीमतों में भारी वृध्दि हुई (थोक मूल्य सूचकांक में हुई बढ़ोतरी से भी ज्यादा ) जिसके परिणामस्वरूप मार्जिन में कमी आई। इस उद्योग का परिचालन लाभ मार्जिन वित्त वर्ष 2008 में 12 प्रतिशत था। पर वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही में यह घट कर 8.5 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 8 प्रतिशत रह गया।
हालांकि, स्टील की घरेलू कीमतों में आई 30 से 40 प्रतिशत की कमी के कारण आने वाले दिनों में कंपनियों के दिन फिरने चाहिए। सिंप्लेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के कार्यकारी निदेशक एन के काकाणी कहते हैं, ‘इससे उद्योग को दो तरीकों से लाभ होगा।
पहला, अतिरिक्त मांग उत्पन्न होगी और दूसरा अधिक मार्जिन उपलब्ध होगा। इसके प्रभाव विभिन्न कंपनियों और परियोजनाओं पर भिन्न-भिन्न होंगे। लागत बढ़ोतरी की शर्त वाली परियोजनाओं से भी कंपनियों को 30 से 40 आधार अंकों का फायदा मिल सकता है।’
विशेषज्ञ कहते हैं कि कच्चे तेल की कीमतों का कम होना भी सकारात्मक होगा क्योंकि परियोजना लागत में डीजल जैसे ईंधनों की हिस्सेदारी लगभग 7 से 8 प्रतिशत की होती है। अगर ईंधन की कीमतों में कमी आती है तो निर्माण उद्योग को निश्चित ही लाभ होना चाहिए।
ब्याज दरों में आ रही गिरावट
कार्यशील पूंजी पर ज्यादा निर्भर करने वाले इस उद्योग के लिए सबसे बड़ी समस्या ब्याज की लागत को लेकर है। जो कंपनियां साल 2007 में 6 से 8 प्रतिशत की दरों पर ऋण लिया करती थीं, उनकी औसत ब्याज दरें बढ़ कर 10 से 14 प्रतिशत तक हो गईं।
हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (एचसीसी) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अजीत गुलाबचंद कहते हैं, ‘अगर हम ब्याज दरें नहीं घटाते हैं तो पीपीपी (सार्वजनिक निजी साझेदारी) की एक अच्छी परियोजना को अंजाम देने के लिए अंदरुनी प्रतिफल की दरें काफी अधिक होंगी।’
अच्छी खबर यह है कि भले ही परिस्थितियों में सुधार नहीं हो रहा हो पर कम से कम स्थिरता तो आ रही है। एन के काकाणी कहते हैं, ‘दो महीने पहले लगभग 13 से 14 प्रतिशत की ब्याज दरों पर कोष उपलब्ध थे। अब यह घट कर 12 प्रतिशत रह गई हैं। ‘
सीएआरई के शोध-प्रमुख रेवती कस्तुरे कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि निकट भविष्य में ब्याज दरों में स्थिरता बनी रहनी चाहिए क्योंकि महंगाई की दर में कमी आ रही है। दर का कम होना निर्माण कंपनियों के लिए बढ़िया इसलिए है क्योंकि परियोजनाओं और कार्यशील पूंजी जैसी जरूरतों के लिए उन्हें बड़ी राशि चाहिए होती है। व्यवहार्यता के मुद्दे को लेकर स्थगित की गई कुछ परियोजनाएं फिर से शुरू हो जाएंगी।’
नकदी बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम भी सकारात्मक हैं (इसमें बुनियादी ढांचा कंपनियों के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधारी के नियमों में दी गई रियायत भी शामिल है)।
जयप्रकाश एसोसिएट्स की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश पावर वेंचर्स के प्रबंध निदेशक सुरेश जैन कहते हैं, ‘ये उपाय निश्चित तौर पर सकारात्मक हैं। हालांकि, इसके वास्तविक प्रभाव सामने आने में चार से छह महीने लग सकते हैं।’
चुनाव की अवधि में निर्माण गतिविधियां कुछ कम हो सकती हैं। हालांकि, कंपनियों के पास ऑर्डर की कमी नहीं है इसलिए निकट भविष्य की ऐसी चिंताएं कम हो जाती हैं। कुल मिलाकर, अर्थव्यवस्था अनुकूल हो रही है और अधिकांश चिंताओं को शेयरों के मूल्यांकन (पीई) में समायोजित कर दिया गया है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि अच्छी निष्पादन क्षमताओं, ऋण स्तर का उचित प्रबंध और मजबूत ऑर्डर बुक वाली कंपनियों को दीर्घावधि में लाभ होना चाहिए। 12वीं पंचवर्षीय योजना में बुनियादी ढांचे पर 989 अरब डॉलर खर्च किए जाने का अनुमान है (वर्तमान योजना में 492 अरब डॉलर)। इससे संकेत मिलता है कि लंबी अवधि में इस सेक्टर तेजी आएगी। आइए, निर्माण क्षेत्र से जुड़ी कुछ कंपनियों के बारे में जानते हैं।
एचसीसी
निस्संदेह, एचसीसी का डेट-इक्विटी अनुपात 1.6 गुना अधिक है। यह भी एक वजह है कि वित्त वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में इसकी ब्याज लागत में 44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई (पहली छमाही में 33 प्रतिशत की वृध्दि) जबकि बिक्री में 18-19 प्रतिशत की वृध्दि हुई।
दूसरी तिमाही में ब्याज लागत कंपनी की कुल बिक्री का लगभग 7.6 प्रतिशत थी। हालांकि, अगर ब्याज दरें कम होती हैं, जिसकी शुरुआत हो चुकी है, तो कंपनी को लाभ होना चाहिए। कारोबार की बात करें तो कंपनी अपनी आय का 70 प्रतिशत सरकारी इकाइयों द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं से प्राप्त करती है।
इसे सकारात्मक तौर पर देखा जाना चाहिए क्योंकि सरकार से प्राप्त होने वाले ऑर्डर में बढ़ोतरी होने का अनुमान है जबकि चालू परियोजनाओं को तेज गति से संपन्न किया जा सकता है। एचसीसी की ऑर्डर बुक मजबूत है।
वास्तव में, पिछली कुछ तिमाहियों से इसकी ऑर्डर बुक जहां 9,000 करोड़ रुपये से 10,000 करोड़ रुपये के बीच थी, वह वर्तमान में 12,000 करोड़ रुपये को पार कर चुकी है और अनुमान है कि मार्च 2009 तक बढ़ कर यह 15,000 करोड़ रुपये हो जाएगी। इस प्रकार देखा जाए तो वर्तमान ऑर्डर बुक बेहतर आय का संकेत देती है।
रियल एस्टेट के कारोबार में कंपनी ने चालू परियोजनाओं के लिए कोष संबंधी जरूरतों की व्यवस्था लगभग कर ली है। कंपनी के अनुसार, लवासा टाउनशिप परियोजना के पहले चरण की बिक्री पहले ही हो चुकी है और दूसरे चरण के काम के लिए कोष जुटाने के लिए अभी दो-तीन साल का समय है।
ऐसा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2009 में लवासा परियोजना से कंपनी को लाभ होना शुरू हो जाएगा। इस परियोजना को अधिकांश विश्लेषकों ने आय संबंधी अपने अनुमानों में शामिल नहीं किया है। वे लाभ आंकड़ों में दिखने का इंतजार कर रहे हैं।
वर्तमान में कंपनी के शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आय के 10.4 गुना पर किया जा रहा है। ऐसे निवेशक जो थोड़ा जोखिम उठा सकते हैं (रियल एस्टेट में इसके निवेश को देखते हुए) वे दीर्घवधि के नजरिये से इसमें निवेश कर सकते हैं।
आईवीआरसीएल
आईवीआरसीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड प्रोजेक्ट्स बढ़ती कमोडिटी कीमतों और अधिक ब्याज दरों से तुलनात्मक रुप से सुरक्षित है। वित्त वर्ष 2008 में स्टील और सीमेंट की कीमतों में हुई संचयी बढ़ोतरी 28 से 30 प्रतिशत की थी।
हालांकि, आईवीआरसीएल के मार्जिन पर इसका प्रभाव लगभग 40 आधार अंक का पड़ा। इसकी 90 प्रतिशत परियोजनाओं में लागत की बढ़ोतरी की शर्त शामिल है। ऋण में लगभग दोगुनी बढ़ोतरी हुई और यह 1,068 करोड़ रुपये हो गया। इसके बावजूद कंपनी का डेट-इक्विटी अनुपात मार्च 2008 में 0.69 था।
हालांकि, ऋण में हुई बढ़ोतरी कंपनी के नतीजों में दिखनी शुरू हो गई है। वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में कंपनी की ब्याज लागत 432 प्रतिशत बढ़ कर 49.8 करोड़ रुपये हो गई जो कर पूर्व 165 करोड़ के लाभ की एक तिहाई से थोड़ी ही कम है।
ब्याज दरों में कमी आने और ईसीबी (बाह्य वाणिज्यिक उधारी) नियमों में नरमी का आने वाली तिमाहियों में लाभ दिखना शुरू हो जाना चाहिए। कंपनी जल सिंचाई श्रेणी की एक प्रमुख खिलाड़ी है और इसकी अधिकांश परियोजनाएं सरकारी क्षेत्र की हैं (वित्त वर्ष 2008 में 70 प्रतिशत से अधिक)।
कंपनी की वर्तमान ऑर्डर बुक 15,000 करोड़ रुपये है जो वित्त वर्ष 2008 की इसकी आय का चार गुना है। यह भविष्य में कंपनी के बेहतर विकास का संकेत देती है। आकलनों की माने तो अगले तीन सालों में कंपनी के लाभ में लगभग 33 से 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी चाहिए जबकि आय में 25 से 27 प्रतिशत की बढ़त होनी चाहिए। 115 रुपये पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आय के 6 गुना पर किया जा रहा है।
एल ऐंड टी
अन्य कंपनियों से अलग, विशेषज्ञ लार्सन ऐंड टुब्रो को तरजीह देते हैं। कंपनी की बैलेंस शीट मजबूत है जिसका लाभ कोष की कमी या परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था के तौर पर उठाया जा सकता है। कंपनी का स्टैंडएलोन डेट-इक्विटी अनुपात काफी कम, 0.38 प्रतिशत, है।
हालांकि, समेकित आधार पर (बुनियादी ढांचा विकास सहयोगियों सहित) डेट-इक्विटी अनुपात 1.1 गुना है। स्टैंडएलोन आधार पर वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में कंपनी की ब्याज लागत में 270 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 107 करोड़ रुपये हो गई जो इसकी कर पूर्व आय का लगभग 7.4 प्रतिशत है।
देश की सबसे बड़ी अभियांत्रिकी और निर्माण कंपनी होने के कारण बुनियादी ढांचा और औद्योगिक पूंजी खर्च में भारत के बढ़ते निवेशों का सबसे अधिक लाभ इसे मिल सकता है। हाल में कंपनी को मुंबई मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी से मुंबई में पहली मोनोरेल प्रणाली के लिए 2,460 करोड़ रुपये का ठेका मिला है। इसे 30 महीनों में पूरा किया जाना है।
यह सितंबर 2008 के अनुसार कंपनी की 63,000 (सितंबर 2007 की तुलना में 46 प्रतिशत अधिक) करोड़ रुपये के ऑर्डर बुक में शामिल नहीं है। कंपनी की ऑर्डर बुक वित्त वर्ष 2008 की आय का दोगुनी है।
हालांकि अभी तक ऐसा नहीं देखा गया है लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी से तेल एवं गैस क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाले ऑर्डर में कमी आ सकती है, जिसकी ऑर्डर बुक में हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में 13 प्रतिशत और सितंबर 2008 तक 20 प्रतिशत थी।
विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले दो वर्षों में एल ऐंड टी के राजस्व में 32 से 35 प्रतिशत तथा आय में 25 से 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। 791.50 रुपये पर कंपनी के शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009 की समेकित आय के 14.4 गुना पर किया जा रहा है।
सिंप्लेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर
सिंप्लेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर की निष्पादन क्षमता काफी मजबूत है। पर यह कंपनी इसका कम ही लाभ उठा पाई है। दिसंबर 2007 में संस्थानों को इक्विटी बेच कर लगभग 400 करोड़ जुटाने के कारण कंपनी का डेट-इक्विटी अनुपात वित्त वर्ष 2008 में एक था।
साल दर साल आधार पर दूसरी तिमाही में कंपनी ने ब्याज लागत में 29.4 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की जबकि आय में 76.5 प्रतिशत की दर से वृध्दि हुई। कंपनी के 80 प्रतिशत करार (मूल्य के नजरिये से) लागत में बढ़ोतरी की शर्तो वाले हैं। इनमें से 20 प्रतिशत करार थोक मूल्य सूचकांक से संबध्द हैं।
शेष 20 प्रतिशत करार निश्चित मूल्य शर्तों वाले हैं। इसलिए कमोडिटी की कीमतों में हो रही गिरावट कंपनी के लिए अच्छी है। कंपनी की ऑर्डर बुक 10,600 करोड़ रुपये की है जो वित्त वर्ष 2008 की आय का 3.8 गुना है। वित्त वर्ष 2009 में कंपनी के राजस्व में 55 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2010 में 35 प्रतिशत की वृध्दि होनी चाहिए। कंपनी के शेयरों का कारोबार वर्ष 2009 की अनुमानित आय के 7.2 गुना पर किया जा रहा है।
छोटी कंपनियों के चमत्कार
मौजूदा बाजार हालात में कई छोटी एवं मझौले आकार की निर्माण कंपनियां भी धराशायी हो गई हैं। ऑर्डरों की बार-बार घोषणाएं करने से भी इनके शेयर की कीमतें बढ़ने में ज्यादा मदद नहीं मिली।
लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से ज्यादातर कंपनियां अपनी पिछली 12 महीने की कमाई का अब 2-4 गुना के पीई मल्टीपल पर कारोबार कर रही हैं। जहां तक विकास की संभावनाओं का सवाल है, इनमें से कई कंपनियां अच्छे ऑर्डर ले रही हैं जो बड़ी कंपनियों की तुलना में काफी अधिक है।
हालांकि विश्लेषक इन कंपनियों में निवेश को लेकर सतर्क हैं। एंजेल ब्रोकिंग के विश्लेषक शैलेश कनानी कहते हैं, ‘मैं यह नहीं मानता कि निवेशकों को इस समय मध्यम और छोटे आकार वाली कंपनियों की तरफ ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बड़ी कंपनियां, जिनके पास निष्पादन क्षमता है और धन का कुशलतापूर्वक प्रबंधन कर सकती हैं, निवेश के लिहाज से ज्यादा उपयुक्त हैं।’
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रमुख (रिसर्च) अजय परमार कहते हैं, ‘छोटी कंपनियों के साथ भी एक बड़ा जोखिम यह है कि इनके ऑर्डर में विलंब हो सकता है या इसे रद्द किया जा सकता है जिससे कंपनियां अपने पूंजीगत खर्च में कमी लाने पर विचार कर सकती हैं।’
हालांकि ये सभी कंपनियां उनके लिए निवेश का विकल्प नहीं बन सकतीं जिनके पास जोखिम के लिए अधिक भूख है। कुछ कंपनियां पूरी तरह से विविधीकृत हैं और उनकी मजबूत ऑर्डर बुक है और निष्पादन क्षमता भी अच्छी है। उनके शेयर ठीक-ठाक भाव पर उपलब्ध हैं। ऐसे में उन पर विचार किया जा सकता है।
छोटी कंपनियों में जे कुमार इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी कंपनियां शामिल हैं जो सड़क निर्माण, सिंचाई परियोजनाओं, फ्लाईओवर एवं पुल, हवाई अड्डा सब-कॉन्ट्रेक्ट और भंडारण आदि से जुड़ी हुई हैं। चूंकि इस कंपनी के राजस्व का लगभग 79 फीसदी हिस्सा सरकार-प्रायोजित परियोजनाओं से आता है, इसलिए निजी क्षेत्र में मंदी का इस पर बेहद कम असर पड़ने की संभावना है।
कंपनी 110 से 120 रुपये प्रति शेयर कीमत पर आईपीओ के साथ जनवरी, 2008 में सामने आई थी। इसका शेयर 469 रुपये की ऊंचाई पर पहुंच गया था और फिलहाल यह 74 रुपये या फिर वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आमदनी के 4.2 गुना पीई पर और वित्त वर्ष 2010 की आमदनी के 3.2 गुना पर कारोबार कर रहा है।
कंपनी का अपेक्षित उच्च ऑपरेटिंग मार्जिन 18.2 फीसदी है। यह इसके बढ़ते बिजनेस का एक प्रमुख कारण है। कंपनी की मौजूदा ऑर्डर बुक 750 करोड़ रुपये है जो इसके वित्त वर्ष 2008 के राजस्व से लगभग 3.5 गुना है।
अन्य शेयरों में विश्लेषक प्रतिभा इंडस्ट्रीज को पसंद कर रहे हैं। यह कंपनी मुख्यत: जल एवं शहरी बुनियादी ढांचा विकास से संबद्ध है। तेजी से गिर रही इस्पात कीमतों से इस कंपनी को बड़ा फायदा होगा, क्योंकि इससे न सिर्फ इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर कारोबार में बल्कि इस्पात पाइपों के निर्माण के लिए इसके हालिया व्यवसाय उपक्रम को भी राहत मिलेगी।
कंपनी की 0.71 गुना की डेट-इक्विटी भी पर्याप्त है और इसकी ऑर्डर बुक 2,050 करोड़ रुपये या वित्त वर्ष 2008 के राजस्व का 3.6 गुना है। इसके अलावा इसके शेयर का भाव बी ठीक ही है और इस दाम पर यह सस्ता लगता है।