भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरपर्सन एम दामोदरन का कहना है कि नियामक क्षमता, अति सक्रियता और अत्यधिक निर्देश वित्तीय क्षेत्र के सामने वे सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका सामना वित्तीय क्षेत्र को करना पड़ रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट में बुधवार को दामोदरन ने वित्तीय क्षेत्र में नियमों में सरलता, स्पष्टता और निरंतरता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उद्योग को बदलते नियमों के साथ रफ्तार बनाए रखना चुनौतीपूर्ण लगा है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 के बाद वित्तीय क्षेत्र का नियमन अत्यधिक गतिविधि झेल रहा है। किसी के वजूद को सही ठहराने के लिए नियामक अति सक्रिय रहा है। केवल नियामक ही नहीं, बल्कि इसमें रेटिंग एजेंसियां और निवेश बैंकर तथा वित्तीय क्षेत्र के अन्य लोग शामिल हैं, जो अचानक यह दिखाने के लिए मामला बना रहे हैं कि वे प्रासंगिक हैं, उन्हें समझा जाता है और वे समस्या का नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा कि आपको ऐसे नियमों की जरूरत है, जो सरल हों और बदले न जाएं, जिनमें निरंतरता और स्पष्टता हो। इसके अलावा दामोदरन ने सुझाव दिया कि समय के साथ प्रासंगिकता पर पुनर्विचार की सहायता के लिए प्रत्येक नियमन और कानून में ‘सनसेट क्लॉज’ (अपने आप समाप्त होने वाला प्रावधान) शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक यह बहुत जरूरी और सर्वोपरि न हो, इसमें एक सनसेट क्लॉज होना चाहिए क्योंकि फिर तीन साल या पांच साल बाद नियामक यह देखने के लिए विनियमन पर पुनर्विचार के लिए बाध्य होता है कि इसकी समकालीन प्रासंगिकता है या नहीं।
शिखर सम्मेलन में बोलते हुए पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने नियामक निकायों में विशेष प्रतिभा शामिल करने की जरूरत जताई, जिसमें वकीलों से लेकर अकाउंटेंट और ऑडिटरों तक शामिल हैं। दामोदरन ने कहा कि नियामक क्षमता निर्माण ऐसी चीज है, जिस पर बहुत कम क्षेत्राधिकारियों ने ध्यान दिया है। आप एक नियामक संगठन की स्थापना करते हैं और फिर यह सोचने लग जाते हैं कि आप इसे कैसे आबाद करेंगे, क्योंकि यह पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि बड़ी चुनौती यह है कि लोग जो विशेषज्ञता प्रस्तुत करते हैं, क्या वह मौजूदा वक्त के लिए प्रासंगिक है और क्या वह विशेषज्ञता उन मसलों और साधनों की जटिलता को समझने की क्षमता प्रदान करती है, जिनसे उन्हें जूझना पड़ता है। कंपनियों को केवल कानून के दस्तावेज पर नहीं, बल्कि कानून की भावना पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहने पर सेबी की मौजूदा चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के नजरिये की सराहना करते हुए दामोदरन ने कहा ‘आप हर नियम का पालन कर सकते हैं और फिर भी इस तरह से कारोबार चलाते हैं, जो अन्य हितधारकों के हित में न हो।’
20 दिसंबर को सेबी के निदेशक मंडल की बैठक से इतर बुच ने चेताया था कि अगर कानून की भावना का सम्मान नहीं किया जाता है, तो नियामक को नियमों को और कड़ा करना होगा। बीएफएसआई समिट में दामोदरन ने नियामकों से किसी निष्कर्ष पर पहुचने या आदेश से पहले सही भावना और किसी भी मामले में दोनों पक्षों को सुनने की क्षमता रखने के लिए कहा।
उन्होंने कहा कि भावना यह हो कि विनियमित जगत को धूर्तों के समूह के रूप में न देखा जाए। अगर आप उस धारणा के साथ शुरुआत करते हैं, तो आप कोई प्रगति नहीं करेंगे। मेरा पसंदीदा दृष्टिकोण विश्वास और सत्यापित करना है। अविश्वास और कष्ट के मार्ग पर मत जाओ। एक छोटी-सी दिक्कत को दुरुस्त करने की कोशिश में आप संस्था को ही मार सकते हैं।
उनकी राय में प्रशासन की सही परिभाषा है – सही समय पर, सही काम, सही कारणों से, सही तरीके से करना। उन्होंने कंपनियों को प्रशासन में ‘इनकार, अवहेलना, दोष’ वाले सूत्र का पालन नहीं करने के लिए भी चेताया क्योंकि यह उन्हें केवल पीछे की ओर ले जाएगा।