भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक कुल गैर खाद्य बैंक ऋण में उद्योगों की हिस्सेदारी जनवरी 2023 के अंत तक घटकर 26.6 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। मार्च 2022 में यह हिस्सेदारी 28.6 प्रतिशत और एक दशक पहले मार्च 2013 के अंत में 45.8 प्रतिशत थी।
वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही के दौरान ज्यादातर महीनों में उद्योगों के कर्ज में वृद्धि दर 10 से 14 प्रतिशत के मजबूत स्तर पर थी।
नवंबर के बाद के ज्यादातर महीनों में मंदी देखी गई। इस साल जनवरी में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में 8.7 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। वहीं अक्टूबर 2022 में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 13.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।
वित्त वर्ष 23 के पहले 8 महीने (अप्रैल-नवंबर 2022) के दौरान उद्योग को बैंक ऋण में वृद्धि पिछले साल की तुलना में करीब 11 प्रतिशत थी, जबकि वित्त वर्ष 22 में इत दौरान 9.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।
इसकी तुलना में कुल मिलाकर गैर खाद्य ऋण इस साल जनवरी में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 16.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।
गैर खाद्य ऋण में उन सभी ऋणों को शामिल किया गया है, जो बैंकों द्वारा फर्मों को और व्यक्तिगत रूप से दिए जाते हैं, जिसमें भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को दिया गया ऋण शामिल नहीं होता है।
अनाज खरीदने के लिए एफसीआई को दिए गए बैंक ऋण को खाद्य ऋण कहा जाता है। उद्योग को दिए जाने वाले ऋण में विनिर्माण, बिजली, खनन, तेल और गैस, कंस्ट्रक्शन टेलीकॉम व अन्य बुनियादी ढांचे के उद्योगों को दिया जाने वाला ऋण शामिल होता है।
जनवरी 2023 के आखिर तक उद्योगों को दिए गए बैंक ऋण का बकाया 32.9 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो मार्च 2022 को 31.6 लाख करोड़ रुपये और पांच साल पहले 27 लाख करोड़ रुपये था। इस अवधि के दौरान बैंक का गैर खाद्य क्षेत्र को दिया जाने वाला कर्ज जनवरी 2023 के अंत तक 123.6 लाख करोड़ रुपये था, जो मार्च 2022 केअंत तक 110.2 लाख करोड़ रुपये और मार्च 2018 के अंत तक 76.9 लाख करोड़ रुपये था।
उद्योगों को दिए जाने वाले बैंक ऋण में सुस्ती नई नहीं है। यह पिछले 7-8 से चल रहे ट्रेंड के मुताबिक ही है, जब बैंकों का लोन बुक खुदरा या व्यक्तिगत ऋण से बढ़ा है।
पिछले 5 साल के दौरान बैंकों के नए ऋण का सिर्फ 13.2 प्रतिशत उद्योग को गया है, जबकि 41.7 प्रतिशत ऋण खुदरा क्षेत्र (व्यक्तिगत ऋण) को गया है, जिसमें आवास ऋण शामिल है। उसके बाद सेवा क्षेत्र को दिए गए कर्ज की हिस्सेदारी 32.8 प्रतिशत है।
बैंक आफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘औद्योगिक ऋण में वृद्धि व्यापक रूप से कैपेक्स और कंपनियों द्वारा नई परियोजनाओं में निवेश से जुड़ी है। हमने कंपनियों के पूंजीगत व्यय में कोई व्यापक तेजी नहीं देखी, जिससे बैंक ऋण में मांग सीमित रही।’
इंडिया रेटिंग्स के अर्थशास्त्री इसके लिए हाल में ब्याज दर में आई तेजी को मान रहे हैं। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के प्रधान अर्थशास्त्री और सीनियर डायरेक्टर (पब्लिक फाइनैंस) सुनील कुमार सिन्हा ने कहा, ‘बढ़ी मांग से यह उम्मीद बढ़ी कि वृद्धि सामान्य हो रही है, वहीं तेज रहे निर्यात में वैश्विक मंदी की वजह से सुस्ती की उम्मीद है। और ऋण में वृद्धि को दबाव वाली वित्तीय स्थितियों से जूझना पड़ रहा है।’