गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) की दबावग्रस्त संपत्तियों के आकार में ऋणस्थगन की व्यवस्था समाप्त होने के बाद से वृद्घि हुई है। लेकिन आर्थिक सुधार जारी है जिससे उद्योग के जुड़े लोगों को लगता है कि अगले वित्त वर्ष यानी वित्त वर्ष 2022 में इस रुझान में बदलाव होगा। देश में आर्थिक गतिविधि में धीरे धीरे सुधार होने से इन वित्त कंपनियों की संग्रह क्षमता में इजाफा होगा लिहाजा इस क्षेत्र में दबाव निर्माण का स्तर बहुत कम रह जाएगा।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि भारत में वित्त कंपनियों की दबावग्रस्त संपत्ति प्रबंधन के तहत उनकी समग्र संपत्ति के 6 से 7.5 फीसदी पर पहुंच सकती है जो वित्त वर्ष 2021 के अंत तक 1.5 लाख करोड़ रुपये से 1.8 लाख करोड़ रुपये के बराबर हो जाएगी। इससे कोविड-19 महामारी के प्रभाव का पता चलता है।
दवाबग्रस्त संपत्तियां भारी भरकम सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों (जीएनपीए) का संग्रह है। इसमें ऐसे खाते भी शामिल हैं जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक एनपीए नहीं घोषित किया गया है तथा लोन बुक में संभावित दबाव (पुनर्गठन सहित) वाली संपत्ति भी इसमें शामिल है। नियामकीय हस्तक्षेप और संपत्तियों को एनपीए के तौर पर वर्गीकरण पर रोक के सर्वाेच्च अदालत के आदेश का मतलब है कि इस क्षेत्र में वास्तविक दबाव अभी पूरी तरह से नजर आना बाकी है।
कैनफिन हाउसिंग फाइनैंस के बोर्ड निदेशक शुभलक्ष्मी पानसे ने कहा, ‘आर्थिक और कारोबारी माहौल में बेहतरी के लिए बदलाव हो रहा है और आगामी महीनों (मार्च 2021 के बाद) में दबाव निर्माण का स्तर महामारी के दौरान दिखे स्तर से कम रहेगा।’
अश्विन पारेख एडवाइजरी सर्विसेज के प्रबंधन पार्टनर अश्विन पारेख ने कहा कि दबावग्रस्त पूंजी का संबंध आर्थिक प्रदर्शन से है। उन्होंने कहा कि लेकिन वाहन जैसे खंड में सुधार भी नजर आ रहा है। पारेख ने कहा, ‘जो अनुषंगी और मूल्य शृंखला में है वे ऋणदाताओं की वित्तीय सहायता से कारोबार बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। इसलिए नया फंड हासिल करने के लिए वे अपना बकाया चुकता कर रहे हैं और यह बात भविष्य में दबाव की संभावना को कम करती है।’
विशेषज्ञों ने कहा कि उन्हें लग रहा था कि भुगतानों पर स्थगन की अवधि समाप्त हो जाने पर इस क्षेत्र में दबावग्रस्त संपत्तियों में इजाफा होगा क्योंकि कठोर पात्रता मानदंड के कारण सभी ग्राहकों को पुनर्गठन का विकल्प नहीं मिला था। पानसे ने कहा कि दूसरा पहलू यह भी है कि खुदरा स्तर पर कम परिवारों ने पुनगर्ठन का विकल्प चुना या चूक करने से भी बचे क्योंकि इसका असर क्रेडिट स्कोर पर पड़ता है। एक आवास वित्त कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी ने कहा, ‘सितंबर के अंत में 30 दिनों से अधिक का बकाया वाले खाते अब एनपीए हो चुके हैं भले ही उन्हें एनपीए के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया है।’