भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज कहा कि भारत की वित्तीय व्यवस्था परिपक्व हो रही है और आर्थिक वृद्धि सुधार की ओर है। हालांकि उन्होंने कहा कि महामारी ने जनसंख्या को विषम रूप से प्रभावित किया है और सतत एवं समावेशी वृद्धि की ओर बढऩेे के लिए यह अंतर पाटने की सख्त जरूरत है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार की विनिर्माण क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने भारत को ‘करीब सभी प्रमुख वैश्विक मोबाइल फोन कंपनियों का घर’ बना दिया है और इसकी वजह से देश अब मोबाइल के आयातक से इसका निर्यातक बनने की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह धारणा अन्य क्षेत्रों में भी आजमाई जा सकती है।’ उन्होंने कहा कि वैश्विक कारोबारी भारत की वैश्विक मूल्य शृंखला (जीवीसी) में हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद करेंगे और इससे लचीली आपूर्ति शृंखला नेटवर्क बनाने में मदद मिलेगी। गवर्नर ने कहा कि इस तरह की व्यापक जीवीसी में हिस्सेदारी से भारत के बड़े व सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में मदद मिलेगी। बहरहाल इसके लिए जरूरी है कि विभिन्न सेक्टर और कंपनियां इस योजना से लाभ उठाएं। दास ने कहा, ‘इसअवसर के इस्तेमाल से उनकी कुशलता और प्रतिस्पर्धात्मकता में आगे और सुधार होगा। दूसरे शब्दों में, इस योजना से लाभ स्थाई होगा, न कि सिर्फ एक समय के लिए।’
वह आल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआईएमए) की ओर से आयोजित नैशनल मैनेजमेंट कन्वेंशन को संबोधित कर रहे थे। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था की बढ़ती जरूरतों को समर्थन करने के लिए भारत की वित्तीय व्यवस्था में तेजी से बदलाव हो रहा है।’
बैंक परंपरागत रूप से अर्थव्यवस्था में कर्ज के प्राथमिक स्रोत रहे हैं, लेकिन गैर बैंकिंग फंडिंग चैनल भी खुले हैं। एनबीएफसी और म्युचुअल फंडों की संपत्तियां बढ़ रही हैं और कॉर्पोरेट बॉन्डों के माध्यम से वित्तपोषण बढ़ रहा है।
दास ने कहा, ‘यह वित्तीय व्यवस्था के तेजी से परिपक्व होने के संकेत हैं, जिसमें बैंक के प्रभुत्व वाली वित्तीय व्यवस्था हाइब्रिड व्यवस्था की ओर बढ़ रही है।’
बहरहाल गवर्नर ने देश में महामारी के कारण बढ़ती असमानता को एक चेतावनी बताया। उन्होंने कहा, ‘इतिहास बताता है कि महामारी का असर, वित्तीय व बैंकिंग संकट के असर के विपरीत, ज्यादा असमानता पैदा करने वाला होता है और इससे समाज का वंचित तबका ज्यादा प्रभावित होता है। कोविड-19 महामारी कोई अपवाद नहीं है।’
दास ने महामारी को मौजूदा दौर की बदलाव लाने वाली घटना करार दिया, जिसकी वजह से तमाम लोगों की जिंदगियों और रोजगार पर असर पड़ा है और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को अभी भी कई तरीके से डरा रही है। उन्होंने कहा, ‘वैश्विक इतिहास में कोविड-19 जैसे कुछ ही झटके लगे हैं, जिसने नीति निर्माताओं को संकट से निपटने के लिए कोई खाका नहीं छोड़ा है।’
महामारी से सेवा क्षेत्र बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है, जहां बड़ी संख्या में अनौपचारिक रोजगार मिलता है और कम कौशल वाले व कम वेतन वाले कामगार लगे होते हैं। कुछ उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी की वजह से गरीब परिवारों का बजट बिगड़ गया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, ‘महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा दी गई, लेकिन इसमें भी कम आमदनी वाले परिवार बाहर हो गए क्योंकि उनके पास उचित कौशल और संसाधन नहीं थे। कुल मिलाकर इससे समावेशन पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है।’
