भारतीय रिजर्व बैंक ने नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के कार्यकाल में अधिक उदार रुख अपनाया है। विश्लेषकों के अनुसार यह उदार रुख वृद्धि में गिरावट के दौर में बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है।
मल्होत्रा के नेतृत्व में कई कदम इसका स्पष्ट संकेत देते हैं। इनमें पांच साल में पहली बार नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती, व्यवस्था में नकदी की कमी से निपटने के लिए बार-बार नकदी डालना, प्रस्तावित नियामकीय मानदंडों को टालना, कई संस्थाओं पर रोक लगाने के आदेश वापस लेना, और बैंकों के गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को दिए ऋण पर जोखिम भार में राहत देना शामिल हैं।
मैक्वेरी रिसर्च की एक रिपोर्ट में सुरेश गणपति और पुनीत बहलानी ने कहा, ‘हमने भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर के बीते दो महीने के कार्यकाल में नियमित रूप से नकदी डालने, कई वर्षों बाद ओपन मार्केट ऑपरेशंस, 25 आधार अंक की कटौती, अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल), परियोजना वित्त और नकदी कवरेज अनुपात (एलसीआर) जैसे विभिन्न विनियमों के कार्यान्वयन को स्थगित करना और जोखिम भार में राहत देना शामिल हैं।’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘हमारे विचार से यह वित्तीय क्षेत्र के भविष्य के लिए अच्छा है और खपत व वृद्धि पर अधिक जोर देता है। हमारा मानना है कि यह वित्तीय क्षेत्र की नए सिरे से रेटिंग के लिए अच्छा है और हम अपने तेजी के दृष्टिकोण को दोहराते हैं।’
मल्होत्रा ने देश के केंद्रीय बैंक की कमान तब संभाली जब घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 फीसदी पर पहुंच गई थी और विभिन्न तिमाहियों में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती की मांग जोर-शोर से उठ रही थी। शक्तिकांत दास के बाद कमान संभालने वाले मल्होत्रा के लिए बाहरी कारक जैसे भूराजनीतिक जोखिम, व्यापार नीति की अनिश्चितता और उसका घरेलू मुद्रा पर प्रभाव चिंता का कारण बन गए थे।
रुपये में तेजी से गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप से बैंकिंग प्रणाली की नकदी की स्थिति पर असर पड़ा। इससे जनवरी के अंत में नकदी की कमी तीन लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गई थी – यह अप्रैल 2010 के बाद का उच्चतम स्तर था।
इस स्थिति को आसान बनाने के लिए, आरबीआई ने दैनिक परिवर्तनीय दर रीपो नीलामी आयोजित करने का निर्णय लिया। इसके अलावा सरकारी प्रतिभूतियों के ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ) और अमेरिकी डॉलर/रुपये की खरीद बिक्री स्वैप नीलामी की घोषणा भी की गई। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर मल्होत्रा के दिसंबर 2024 में पदभार संभालने के बाद हुई पहली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में 25 आधार अंक की कटौती की गई। एमपीसी की फरवरी में हुई इस बैठक के बारे में मल्होत्रा ने कहा था कि इस समय पर ‘कम प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति’ की जरूरत महसूस की गई थी।
हालांकि विशेषज्ञों ने चेताया था कि भारतीय रिजर्व बैंक के ब्याज दर में 25 आधार अंक कटौती करने से नकदी की कमी के दौर ऋण वृद्धि महत्त्वपूर्ण रूप से नहीं बढ़ सकती है। हालांकि मल्होत्रा नीतिगत दर में 25 आधार अंक की कटौती की घोषणा के साथ बैंकिंग क्षेत्र के विभिन्न प्रस्तावित विनियमन मानदंडों को राहत दी थी – एससीआर मानदंडों, ईसीएल मानदंडों और प्रस्तावित वित्तीय मानदंडों – इनके 1 अप्रैल, 2025 से लागू होने की उम्मीद थी। रिजर्व बैंक हरेक विनियमन के लाभ और लागत में उचित संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। लिहाजा मल्होत्रा ने एलसीआर और परियोजना वित्त मानदंडों को लागू करने की समयसीमा कम से कम एक वर्ष के लिए बढ़ी दी है।
इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते सप्ताह बैंकों के गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जोखिम भारांश को 125 प्रतिशत से घटाकर 100 प्रतिशत करने की राहत दी थी। इससे बैंकिंग प्रणाली में समग्र स्तर पर 40,000 करोड़ की पूंजी मिल सकती है। इससे 4 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त ऋण कोष मिल सकते हैं। हालांकि नकदी की सख्त स्थिति के मद्देनजर नीतियों को लागू करने में समय लग सकता है।
नोमूरा रिपोर्ट में सोनल वर्मा और ऑरोदीप नंदी ने रिजर्व बैंक के बीते कुछ महीनों के फैसलों के संदर्भ में कहा था, ‘नीतियां सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं। भारत ने अंतत: अधिक समन्वयात्मक नीतिगत तरीके को अपनाना शुरू कर दिया है – इनमें राजकोषीय, मौद्रिक, नकदी, व्यापक विवेकपूर्ण शामिल हैं। इनसे वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा विशेषतौर पर उपभोक्ता मांग को बढ़ावा मिलेगा।’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘हमारे प्रमुख संकेतक सुझाव देते हैं कि अर्थव्यवस्था में चक्रीय मंदी बनी हुई है। लिहाजा ऐसे में स्थिर वृद्धि के लिए अधिक स्थिर मदद की जरूरत होगी।