भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से जारी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की चर्चा का विवरण दर्शाता है कि सदस्यों ने अति लघु अवधि की दरों, अधिक तरलता के जोखिमों और दरें घटाने का फायदा आगे बढ़ाने पर भी निवेश नहीं बढऩे मगर महंगाई लगातार ऊंचे स्तर पर बने रहने को लेकर मंथन किया।
इन मुद्दों पर इतनी व्यापक चर्चा नीतिगत घोषणा या नीतिगत घोषणा के बाद संवाददाता सम्मेलन में भी नहीं की गई थी, जबकि उस समय सदस्यों ने सर्वसम्मति से दरों को 4 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने और रुख नरम रखने के पक्ष में मत दिया था। यह विवरण दर्शाता है कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास नीतिगत रुख को जल्दबाजी में पलटने के पक्ष में नहीं थे।
इस विवरण से पता चलता है कि दास ने कहा, ‘महंगाई का ऊंचे स्तरों पर बने रहना मौद्रिक नीति को मौजूद स्तरों पर बनाए रखने में बाधक है। हालांकि साथ ही सुधार जारी है। इसलिए वृद्धि के पोषण और मदद की लगातार जरूरत है ताकि इसे ज्यादा व्यापक एवं टिकाऊ बनाया जा सके। आरबीआई की मौद्रिक और तरलता नीतियों को समय से पहले वापस लेने से शुरुआती सुधार एवं वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।’ इसके चलते आरबीआई गवर्नर ने वृद्धि और महंगाई दोनों पर लगातार नजर बनाए रखने को प्राथमिकता दी। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने कहा, ‘ऊंची महंगाई नियंत्रित हो गई है और यह इसी स्तर पर बनी रह सकती है। खुदरा विक्रेता खोयी आमदनी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए निकट अवधि में मार्जिन कम होने के आसार नहीं हैं।’
पात्रा ने कहा, ‘आर्थिक गतिविधियों में सुधार आ रहा है, मगर यह संदिग्ध एवं असमान है। इसलिए इसके पूरी मजबूती से पटरी पर आने तक नीतिगत समर्थन जारी रखना जरूरी है।’ दास के मुताबिक मल्टी-स्पीड सुधार अनुमानों से अधिक तेज है, लेकिन समग्र गतिविधियां अभी पिछले साल के स्तरों से नीचे हैं। उन्होंने यह बात स्वीकार की कि अर्थव्यवस्था में निवेश मांग का आकर्षण नहीं बढ़ा है, जबकि नीतिगत दर की पहलों का फायदा आगे पहुंचाने की रफ्तार तेज एवं त्वरित है।
गवर्नर ने उम्मीद जताई कि सरकार की तरफ से मुहैया कराए गए प्रोत्साहन से निजी उपभोग, स्थायी पूंजी निर्माण और आपूर्ति पक्ष को बढ़ावा मिलेगा। वहीं वर्ष की शेष अवधि में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से वृद्धि को सहारा मिलेगा। राज्यों के पूंजीगत व्यय में कटौती को वापस लिया जाना चाहिए।
आरबीआई गवर्नर के नरम दरों के रुख के खिलाफ बाहरी सदस्य जयंत आर वर्मा थे। वर्मा ने कहा कि दरों में कटौती के जोखिम अधिक और प्रतिफल कम हैं। वर्मा ने कहा, ‘प्रतिफल कम हैं क्योंकि लंबी अवधि की दरें वें हैं, जो निवेश को प्रोत्साहन देने और आर्थिक सुधार को सहारा देने के लिए प्रासंगिक हैं। अल्पावधि की दरों में कटौती के जरिये प्रतिफल वक्र को अधिक ढालू बनाने से यह मकसद पूरा नहीं होगा।’
उन्होंने कहा कि आरबीआई का मकसद लंबी अवधि की दरें कम करना होना चाहिए क्योंकि इससे अल्पावधि में मांग बढ़ती है और मध्यम अवधि में आपूर्ति बढ़ती है क्योंकि नई क्षमता परिचालित हो जाती है और यह नई आपूर्ति महंगाई के दबाव को कम करती है।
वर्मा ने कहा, ‘इसके विपरीत लघु अवधि की दरों को घटाकर बढ़ाई गई मांग से आपूर्ति में इजाफा नहीं होता है और इसलिए महंगाई का अधिक जोखिम होता है।’ वर्मा ने आगाह किया कि नरम दरों का लाभ कुछ अल्पाधिकारी कंपनियों को हो रहा है।
