भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बिना रेहन वाले असुरक्षित ऋणों के आवंटन में अत्यधिक बढ़ोतरी और डेरिवेटिव योजनाओं के प्रति निवेशकों की बढ़ती ललक पर चेताया है। आरबीआई ने वित्तीय क्षेत्र की इकाइयों को वित्तीय योजनाओं को लेकर लापरवाही बरतने के जोखिमों से भी सतर्क रहने के लिए कहा है।
नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा, ‘असुरक्षित खंड में ऋण आवंटन में अत्यधिक तेजी देखी जा रही है। इसके साथ ही बाजार में डेरिवेटिव योजनाओं को लेकर निवेशकों में जरूरत से अधिक उत्साह देखा जा रहा है। मगर कम समय में अधिक मुनाफा कमाने की यह ललक निवेशकों की दीर्घ अवधि की वित्तीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकती है।‘ राव ने कहा कि वित्तीय इकाइयों की यह जिम्मेदारी है कि वह निवेशकों को डेरिवेटिव योजनाओं और ‘सट्टा आधारित निवेश’ से जुड़े जोखिमों को बारे में बताएं। उन्होंने कहा, ‘कम समय में अधिक मुनाफा कमाने की ललक लोगों के लिए भीषण वित्तीय नुकसान का कारण बन सकती है।‘ डिप्टी गवर्नर ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर अत्यधिक निर्भरता के खतरों के प्रति भी आगाह किया। इन दिनों वित्तीय क्षेत्र में एआई का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है जिससे सहूलियत बढ़ने के साथ ही जोखिम भी बढ़ गए हैं।
राव ने कहा, ‘इन दिनों एआई तकनीक आने के बाद लोग स्वचालित प्रणालियों के इस्तेमाल करते वक्त लापरवाही बरतने लगे हैं जो अच्छी बात नहीं है। यह स्थिति उस मोड़ तक पहुंच गई है जहां अधिक संवेदनशील एवं सावधानी की जरूरत वाली परिस्थितियों में भी लोग तकनीक पर जरूरत से अधिक निर्भर रहने लगे हैं।‘ उन्होंने कहा कि अल्गोरिद्म तकनीक महत्त्वपूर्ण जानकारियां देने के साथ क्षमता बढ़ाने में भी कारगर हो सकती है मगर इसे केवल सहायक के रूप में देखा जाना चाहिए और महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते वक्त दिमाग पर इसे हावी नहीं होने देना चाहिए। राव ने कहा, ‘जैसा कि एक पुरानी कहावत है, सभी प्रारूपों या मॉडलों के साथ कुछ न कुछ बात जरूर होती है मगर हमें यह देखना चाहिए कि उनसे जुड़ी किन खूबियों का लाभ उठाया जा सकता है।’
उन्होंने कहा कि ग्राहकों को जागरूक बनाने के लिए आरबीआई वित्तीय क्षेत्र के दूसरे नियामकों के साथ प्रगतिशील कदम उठा रहा है। राव ने कहा, ‘वित्तीय क्षेत्र की इकाइयों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। वित्तीय योजनाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होने से लोग झांसे में आ जाते है जिससे वित्तीय तंत्र पर लोगों का विश्वास कमजोर हो जाता है।’ डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जन धन योजना के माध्यम से भारत ने लोगों तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है मगर इन खातों (जन धन खातों) का इस्तेमाल अब भी एक चुनौती है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जन धन योजना की वजह से देश के 80 प्रतिशत वयस्कों के बैंकों में खाते खुल गए हैं।
आरबीआई के वित्तीय समावेशी सूचकांक के अनुसार मार्च 2024 तक देश में वित्तीय समावेशन 64.2 फीसदी हो गया,जो मार्च 2023 में 60.1 फीसदी और 2017 में 43.4 फीसदी स्तर पर था। यह सूचकांक तीन उप-सूचकांकों पहुंच, गुणवत्ता और इस्तेमाल पर आधारित है।