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In Parliament: संसद में बोली सरकार, PSU Banks के NPA में ऐतिहासिक गिरावट, 9.11% से 2.58% पर

वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने खराब ऋणों की पहचान, समयबद्ध समाधान और वसूली को लेकर एक समग्र रणनीति अपनाई है, जिसमें कई संस्थागत और संरचनात्मक सुधार शामिल हैं

Last Updated- July 22, 2025 | 7:17 PM IST
Budget session of Parliament
प्रतीकात्मक तस्वीर

संसद के मॉनसून सत्र के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के खराब कर्ज (NPA) को लेकर कई बातों का खुलासा किया। दरअसल संसद में सांसदों द्वारा पूछे संसदीय सवाल के जवाब में सरकार को PSU Banks के NPA को लेकर सारी जानकारी सदन के पटल पर रखनी पड़ी। वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सकल एनपीए (Gross NPAs) में पिछले पाँच वर्षों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। मार्च 2021 में जहां एनपीए दर 9.11% थी, वहीं मार्च 2025 तक यह घटकर मात्र 2.58% पर आ गई है। 

वित्तीय वर्षवार NPA की स्थिति:

Date  सकल NPA (₹ करोड़ में) सकल NPA अनुपात (%)
31.03.2021 ₹6,16,616 9.11%
31.03.2022 ₹5,40,958 7.28%
31.03.2023 ₹4,28,197 4.97%
31.03.2024 ₹3,39,541 3.47%
31.03.2025 ₹2,83,650 2.58% (अनंतिम आंकड़े)

Source: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

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वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने खराब ऋणों की पहचान, समयबद्ध समाधान और वसूली को लेकर एक समग्र रणनीति अपनाई है, जिसमें कई संस्थागत और संरचनात्मक सुधार शामिल हैं:

आईबीसी (IBC) का सख्त कार्यान्वयन:

  • दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (IBC) ने कर्जदाता और कर्ज लेने वाले के संबंधों को पुनर्परिभाषित किया। 
  • डिफॉल्टर प्रमोटरों से कंपनियों का नियंत्रण छीना गया।
  • जानबूझकर डिफॉल्ट करने वालों को समाधान प्रक्रिया से बाहर रखा गया।
  • अब व्यक्तिगत गारंटर भी IBC के दायरे में हैं।

कानूनी बदलाव:

  • SARFAESI अधिनियम, 2002 और Debt Recovery and Bankruptcy Act में संशोधन कर उन्हें अधिक प्रभावी बनाया गया।
  • ऋण वसूली न्यायाधिकरणों (DRTs) की मौद्रिक सीमा ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख की गई, जिससे DRT उच्च-मूल्य के मामलों पर केंद्रित हो सके।

बैंकों में सुधार:

  • बैंकों ने विशेष स्ट्रेस्ड एसेट मैनेजमेंट शाखाएं शुरू कीं।
  • ‘फीट-ऑन-स्ट्रीट’ मॉडल और बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स की तैनाती से वसूली प्रक्रिया को मजबूती मिली।

RBI का प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क:

  • तनावग्रस्त ऋणों की शीघ्र पहचान, रिपोर्टिंग और समाधान के लिए प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क लागू किया गया।
  • समयबद्ध समाधान योजना को अपनाने पर बैंकों को प्रोत्साहन देने की नीति।

संपत्तियों का मूल्यांकन और पारदर्शिता के उपाय:

  • बैंक, ऋण मंजूरी से पहले संपत्तियों का मूल्यांकन पेशेवर मूल्यांककों द्वारा करवाते हैं।
  • ₹50 करोड़ या उससे अधिक मूल्य की संपत्तियों के लिए कम-से-कम दो स्वतंत्र मूल्यांकन रिपोर्ट अनिवार्य हैं।
  • एनपीए खातों में संपत्ति जब्त करने के बाद पुनः मूल्यांकन करवाया जाता है।
  • आरबीआई ने संपत्तियों की बिक्री में ई-नीलामी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की है।

अन्य महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश:

  • IRAC (इनकम रिकग्निशन, एसेट क्लासिफिकेशन एंड प्रोविजनिंग) मानकों के तहत, बैंकों को हर तीन साल में एक बार संपत्ति का मूल्यांकन करना अनिवार्य है।
  • यदि कोई मूल्यांकक संपत्ति का मूल्य अत्यधिक दर्शाता है, तो बैंक उसे नोटिस जारी कर सकता है और उसका नाम भारतीय बैंक संघ (IBA) को रिपोर्ट किया जाता है।
  • वित्त मंत्रालय और आरबीआई की संयुक्त पहल से भारत के सार्वजनिक बैंकों में फंसे हुए ऋणों की समस्या पर प्रभावी नियंत्रण हुआ है। नीतिगत बदलाव, संस्थागत सुदृढ़ता और पारदर्शिता ने एनपीए को ऐतिहासिक रूप से कम करने में मदद की है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट बैंकिंग क्षेत्र की सेहत के लिए शुभ संकेत है और आगे के लिए मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करती है।

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First Published - July 22, 2025 | 7:13 PM IST

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