ऋणदाताओं की सपंत्ति गुणवत्ता में तेज सुधार नजर नहीं आ रहा है जबकि 2020 और 2021 में कोविड-19 के कारण पैदा हुई भीषण आर्थिक बाधाओं में समय पर पुनर्गठन और तरलता समर्थन जैसे नियामकीय उपाय किए गए थे।
बैंकरों का कहना है कि अब मौजूदा आर्थिक सुधार के कारण परिवारों और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की ओर से चूक में इजाफा नजर आ रहा है जिसकी वजह भुगतान मोहलत को समाप्त किया जाना और कारोबारी भुगतान में विलंब है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अनुमान लगाया है कि बैंकों के पोर्टफोलियो में फंसी हुई संपत्ति – गैर निष्पादित संपत्ति और पुनर्गठित ऋण मार्च 2022 तक 11 फीसदी तक पहुंच सकता है जो मार्च 2011 के 9 फीसदी से अधिक है।
एनपीए के मौजूदा स्तर से नियामकीय पैकेजों के तहत किए गए पुनर्गठन के कारण 2020 और इस वर्ष हुई वास्तविक पीड़ा छिप जाती है। महामारी की पहली लहर के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सभी प्रकार के भुगतानों पर मोहलत देने की अनुमति दी थी। इस बार कोई रियायत नहीं दी गई थी नतीजतन विर्ष 2022 की पहली तिमाही में चूकों में इजाफा देखा गया। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों का खुदरा और एमएसएमई खंड में एनपीए बढ़ गया।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही को लेकर केयर रेटिंग्स की समीक्षा से पता चलता है कि सार्वजनिक बैंको का खुदरा और एमएसएमई लोन बुक में सकल एनपीए जून 2021 में बढ़कर 7.28 फीसदी हो गया जो जून 2020 में छह फीसदी रहा था।
निजी बैंकों के लिए खराब ऋणों का मामला अपेक्षाकृत कम रहा। इस साल जून में उनका सकल एनपीए 3.32 फीसदी रहा जो एक वर्ष पहले के 2.01 फीसदी के मुकाबले अधिक है।
