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स्टालिन, सनातन और विकास का द्रविड़ मॉडल

उत्तर प्रदेश के एक ‘स्वयंभू’ संत ने स्टालिन जूनियर की ‘सनातन की बीमारी मिटाने’ वाली टिप्पणी के बाद उनके सिर पर इनाम घोषित किया है।

Last Updated- September 13, 2023 | 10:46 PM IST
Stalin, Sanatan and Dravidian model of development

पिछले हफ्ते, तमिलनाडु के युवा कल्याण एवं खेल विकास मंत्री और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) नेता उदयनिधि स्टालिन की ‘सनातन धर्म’ पर की गई उनकी टिप्पणी के कारण मचे बवाल के बीच द्रमुक खेमा आश्चर्यजनक रूप से एकजुट रहा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उदयनिधि पर हिंदुओं के ‘नरसंहार’ का आह्वान करने का आरोप लगाया, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पलटवार करते हुए मांग की कि वह अपनी टिप्पणी पर ‘उचित प्रतिक्रिया’ दें।

दिलचस्प बात यह है कि उदयनिधि के पिता मुख्यमंत्री मुतुवेल करुणानिधि स्टालिन ने इन आरोपों का तुरंत खंडन करते हुए इसे ‘झूठा कथ्य’ बताकर खारिज कर दिया। स्टालिन ने बयान देकर यह स्पष्ट किया, ‘उदयनिधि ने सनातन धर्म पर अपने जो विचार व्यक्त किए वह अनुसूचित जातियों (एससी), आदिवासियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव से जुड़ा है और उनका इरादा किसी भी धर्म या धार्मिक मान्यताओं को आहत करने का नहीं था। भाजपा समर्थक ताकतें, दमनकारी सिद्धांतों के खिलाफ उनके रुख को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं और उन्होंने एक झूठी कहानी फैलाई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उदयनिधि ने सनातन विचारधारा के लोगों के नरसंहार का आह्वान किया है।’

कथित तौर पर, उदयनिधि ने कहा कि कोंजीवरम नटराजन अन्नादुरई (अन्ना या अरिगनार अन्ना के नाम से लोकप्रिय) के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में वह किसी भी धर्म के दुश्मन नहीं थे और कहा कि ‘सनातन मलेरिया और डेंगू की तरह है और इसलिए, इसका विरोध करने के बजाय इसे खत्म किया जाना चाहिए।’

कथित तौर पर, उदयनिधि ने कहा कि कोंजीवरम नटराजन अन्नादुरई (अन्ना या अरिगनर अन्ना के नाम से लोकप्रिय) के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में, वह किसी भी धर्म के दुश्मन नहीं हैं और कहा कि ‘सनातन धर्म मलेरिया और डेंगू की तरह है और इसलिए इसका विरोध करने के बजाय इसे पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए।’

यह बयान राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया लेकिन इसके बीच यह सवाल उठता है कि आखिर द्रमुक खेमे ने इस विवाद को लेकर इतनी चुप्पी क्यों साध रखी है? राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, उनका यह कथ्य वास्तव में विकास और सामाजिक न्याय वाले समावेशी द्रविड मॉडल से मेल खाती है जिस पर द्रमुक का जोर है। सवाल यह है कि द्रविड मॉडल क्या है? दरअसल विकास का द्रविड़ मॉडल आर्थिक विकास को सामाजिक उत्थान से जोड़ता है।

राज्य विकास नीति परिषद के उपाध्यक्ष जे जयरंजन कहते हैं, ‘जब आप आर्थिक और सामाजिक दोनों संकेतकों का आकलन करते हैं, तब आप पाएंगे कि वे राज्य में बेहद मजबूत हैं। जब आप पूरी तरह से आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, तब आपको गुजरात और महाराष्ट्र जैसे मॉडल मिलते हैं और जब आप केवल सामाजिक विकास पर ध्यान देते हैं तब यह मॉडल केरल के जैसा हो जाता है। तमिलनाडु का द्रविड़ मॉडल तब उभर कर सामने आता है जब आप दोनों को प्राथमिकता देते हैं।’

इस मॉडल ने सामाजिक न्याय के लिए विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों को एकजुट किया है। उदाहरण के तौर पर राज्य का स्नातक नामांकन अनुपात 52 प्रतिशत है, जो 27 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत को भी पीछे छोड़ते हुए अमेरिका (38 प्रतिशत) जैसे विकसित देशों से भी अव्वल है।

तमिलनाडु में शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत सीटें, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए आरक्षित हैं। यह समावेशी दृष्टिकोण स्थिर कीमतों के लिहाज से 98,374 रुपये के राष्ट्रीय औसत की तुलना में राज्य की वर्ष 2022-23 में 1.66 लाख रुपये की प्रति व्यक्ति आमदनी में भी परिलक्षित होता है।

इसके अलावा, द्रविड़ मॉडल में महिलाओं को बढ़ावा देने की बात भी शामिल है। राज्य अपने श्रम बल में 32 प्रतिशत महिला भागीदारी दर का दावा करता है, जो 19.2 प्रतिशत (अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन) के राष्ट्रीय आंकड़े से काफी अधिक है। राज्य में कॉलेज में प्रवेश करने वाली महिलाओं का सकल नामांकन अनुपात 49 प्रतिशत है, जबकि बाकी भारत के लिए यह 25 प्रतिशत है।

जयरंजन ने मौजूदा द्रमुक सरकार द्वारा शुरू की गई प्रमुख योजनाओं का जिक्र किया जिनमें स्कूली बच्चों के लिए मुफ्त नाश्ता, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, 1 करोड़ परिवारों की महिलाओं के लिए 1,000 रुपये का मासिक भत्ता और उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों के लिए 1,000 रुपये का अनुदान (220,000 लाभार्थी) शामिल है। ये पहल आर्थिक विकास के द्रविड़ मॉडल के उदाहरण हैं।

इससे यह बात समझी जा सकती है कि उदयनिधि ने अपने बयान से पीछे हटने या माफी मांगने का विकल्प क्यों नहीं चुना, बल्कि उन्होंने सनातन धर्म की कठोरता की तुलना द्रविड़ विचारधारा की समावेशी प्रकृति से की। उन्होंने कहा कि द्रमुक ने सभी जातियों के व्यक्तियों को मंदिर का पुजारी बनने की अनुमति देने के लिए एक कानून बनाया और मौजूदा सरकार ने मंदिरों में पुजारी के रूप में प्रशिक्षित अर्चकों को नियुक्त करना शुरू कर दिया है। उदयनिधि ने जोर देकर कहा, ‘यह द्रविड़ मॉडल है।’

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुमंत रमन ने कहा कि विकास से जुड़े द्रविड़ मॉडल के विकास का श्रेय केवल एक पार्टी को नहीं बल्कि द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों को दिया जाना चाहिए। उन्होंने 1957 में मध्याह्न भोजन योजना की पहल के लिए कुमारस्वामी कामराज की महत्त्वपूर्ण भूमिका स्वीकार की जिसे उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सभी राज्यों में वर्ष 2002 तक एक राष्ट्रीय योजना के तौर पर लागू करने में कई दशक लग गए।’

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले राज्य के रूप में, तमिलनाडु इन सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का खर्च उठाने में सक्षम है। राज्य औद्योगिक क्षेत्र में सबको शामिल कर समावेशी विचारधारा का प्रदर्शन करता है और यहां ओबीसी उद्यमियों की सबसे अधिक संख्या है और भारत के चार दलित उद्यमियों में से एक इस राज्य से जुड़े हैं। स्टालिन सरकार ने विशेष रूप से एससी और एसटी उद्यमियों के स्वामित्व वाले स्टार्टअप के लिए 50 करोड़ रुपये के विशेष अनुदान की भी घोषणा की है। समानता की यह रणनीति द्रविड़ मॉडल को ज्यादा फायदा दे सकता है।

उदयनिधि पहले नहीं हैं जिन्होंने सनातन विचारधारा के खिलाफ बोला है। भीमराव आंबेडकर का भी मानना था कि अछूतों के खिलाफ सनातन विचारधारा का रुख और यहूदियों के खिलाफ नाजियों के यहूदी-विरोधी रुख के बीच काफी समानताएं हैं। आंबेडकर के हिसाब से सनातनवाद ‘उग्र रूढ़िवादी हिंदू धर्म का प्राचीन नाम’ था। वर्ष 1943 में, उन्होंने लिखा, ‘यहूदियों के खिलाफ नाजियों का यहूदी-विरोध विचारधारा किसी भी तरह से सनातनवाद से अलग नहीं है जो वास्तव में हिंदुओं को अछूतों के खिलाफ करने के रूप में प्रभावी है।’

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 1920 के दशक में जस्टिस पार्टी के दौर से लेकर अब तक द्रविड़ मॉडल के खिलाफ कोई भी कथ्य तमिलनाडु में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। इससे यह समझा जा सकता है कि तमिलनाडु में भाजपा द्रमुक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर अधिक जोर क्यों दे रही है जबकि यही पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर सनातन विवाद पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही है।

First Published - September 13, 2023 | 10:46 PM IST

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