facebookmetapixel
ITR फाइल तो कर दिया, लेकिन अभी तक रिफंड नहीं मिला? जानें किन-किन वजहों से अटकता है पैसाFMCG, कपड़ा से लेकर ऑटो तक… GST कटौती से क्या कंजम्पशन फंड्स बनेंगे निवेश का नया हॉटस्पॉट?Income Tax: क्या आपको विरासत में मिले सोने पर भी टैक्स देना होगा? जानें इसको लेकर क्या हैं नियमTop-5 Mid Cap Fund: 5 साल में ₹1 लाख के बनाए ₹4 लाख; हर साल मिला 34% तक रिटर्नभारत-इजरायल ने साइन की बाइलेट्रल इन्वेस्टमेंट ट्रीटी, आर्थिक और निवेश संबंधों को मिलेगी नई मजबूतीभारत में जल्द बनेंगी सुपर एडवांस चिप्स! सरकार तैयार, Tata भी आगे₹100 से नीचे ट्रेड कर रहा ये दिग्गज स्टॉक दौड़ने को तैयार? Motilal Oswal ने दी BUY रेटिंग; चेक करें अगला टारगेटअमेरिका टैरिफ से FY26 में भारत की GDP 0.5% तक घटने की संभावना, CEA नागेश्वरन ने जताई चिंताPaytm, PhonePe से UPI करने वाले दें ध्यान! 15 सितंबर से डिजिटल पेमेंट लिमिट में होने जा रहा बड़ा बदलावVedanta Share पर ब्रोकरेज बुलिश, शेयर में 35% उछाल का अनुमान; BUY रेटिंग को रखा बरकरार

Rajasthan Elections 2023 Analysis: परंपरागत वोटिंग पैटर्न और सरकार विरोधी लहर से विजयी हुई भाजपा

जीत दर्ज करने वाले दिग्गजों में मुख्यमंत्री गहलोत ने सरदारपुरा में 26,396 से अधिक मतों से विजयी रहे। पायलट ने भी मामूली अंतर से टोंक सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा।

Last Updated- December 04, 2023 | 8:19 AM IST

राजस्थान ने चुनावों में सत्तारूढ़ सरकार को उखाड़ फेंकने का पुराना रिकॉर्ड फिर से दोहराया है। कांग्रेस के मौजूदा विधायकों, ‘पेपर लीक’ की घटनाओं के खिलाफ जन भावना और रोजगार के मुद्दों पर बढ़ती नाराजगी की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में 114 सीटों के बहुमत से जीत हासिल की, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा घटकर 68 रह गया।

पूरे राज्य में जो एक नाम गूंज रहा था, वह था मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी कल्याणकारी नीतियां, लेकिन विशेषज्ञों ने पार्टी की हार के लिए विधायकों के अति आत्मविश्वास और मतदाताओं के प्रति उदासीन रुख को एक प्रमुख कारण बताया है। सीएसडीएस-लोकनीति के राजस्थान समन्वयक संजय लोढा का कहना है, ‘आपको (कांग्रेस) सिर्फ चुनाव नजदीक आने पर सक्रिय नहीं बढ़ानी चाहिए बल्कि पूरे कार्यकाल के दौरान जनता के बीच उपलब्ध रहना चाहिए और भाजपा यह अच्छी तरह से जानती है।’

पेपर लीक घोटाले, दलितों के खिलाफ भेदभाव, अत्याचार, ऊंची कीमतों और बेरोजगारी जैसे मुद्दे राजस्थान में सुर्खियों में छाए रहे और विपक्ष ने कांग्रेस के कार्यकाल में हुए सभी विरोध प्रदर्शनों पर अपना ध्यान तेजी से केंद्रित किया। गहलोत ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई और रोजगार सृजन के क्षेत्रों में अपनी कल्याणारी योजनाओं के जरिये जनता के गुस्से को दबाने का प्रयास किया था।

मगर पार्टी की अंदरूनी कलह ने भी गहलोत को परेशान किया है। टोंक से विधायक सचिन पायलट के नेतृत्व में 2020 में हुए विद्रोह ने अशोक गहलोत सरकार को लगभग गिरा दिया था। उसके बाद पायलट को राज्य कांग्रेस के प्रमुख पद से हटा दिया गया था। हालांकि कांग्रेस ने अपने अभियान के दौरान एकजुटता दिखाने की पूरी कोशिश की और पायलट ने लोगों से पार्टी का समर्थन करने की अपील भी की, मगर नतीजे बताते हैं कि पार्टी लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने में विफल रही। राज्य में गहलोत के पतन से पायलट का उदय हो सकता है।

अंदरूनी कलह और यहां तक कि दरकिनार किए जाने की टीस जीतने वाले खेमे में वसुंधरा राजे के मामले में भी दिखी थी। वह दो बार राज्य की मुख्य मंत्री रह चुकी हैं। राज्य में मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने और सिंधिया अथवा किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश न किए जाने के कारण उनके समर्थकों का मानना है कि पार्टी के प्रति उनकी वफादारी को ईनाम मिलना चाहिए। मगर मुख्यमंत्री पद के कई अन्य दावेदार भी हैं जिनमें लोकसभा सांसद दीया कुमारी भी शामिल हैं।

भाजपा ने जिन सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा था उनमें दीया कुमारी भी शामिल हैं। भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख सीपी जोशी ने चुनाव अभियान के दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा था, ‘जीतने के बाद ही आलाकमान द्वारा मुख्यमंत्री का चेहरा तय किया जाएगा।’

जीत दर्ज करने वाले दिग्गजों में मुख्यमंत्री गहलोत ने सरदारपुरा में 26,396 से अधिक मतों से विजयी रहे। पायलट ने भी मामूली अंतर से टोंक सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। इस बीच, राजे ने लगातार छठी बार झालरापाटन सीट पर विजयी रहीं। हारने वालों में कांग्रेस नेता एवं विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और भाजपा की राज्य इकाई के पूर्व प्रमुख सतीश पुनिया शामिल हैं।

First Published - December 4, 2023 | 8:19 AM IST

संबंधित पोस्ट