अमृतसर से 10 किलोमीटर दूर गांव बालकला की ओर जाने वाली सड़क पर धुएं की चादर छायी हुई है। जैसे-जैसे गांव की तरफ बढ़ते जाते हैं, गेहूं की पराली के जले हुए अवशेष खेत-खेत में नजर आते हैं। क्षेत्र में हर तरफ धुएं के बादल होने के बावजूद किसानों के मन में किसी प्रकार की घुटन या दुविधा की धुंध दिखाई नहीं देती कि आखिर वे किसके खिलाफ हैं।
गांव के एक किसान चरण जीत सिंह कहते हैं, ‘हर साल पराली जलाने का मुद्दा जोर-शोर से उठता है और इस पर प्रतिबंध की बातें होती हैं। पराली जलाने की समस्या किसी सीजन की नहीं, बल्कि हर वर्ष की समस्या है, लेकिन सरकार ने इसे रोकने के लिए हमारी मदद के बारे में कभी कोई कदम नहीं उठाया।’
उन्होंने कहा, ‘पिछले साल एनजीटी में सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था कि 5 एकड़ तक जमीन वाले किसानों को पराली ठिकाने लगाने या खेतों में गलाने के लिए मशीनें दी जाए। जिन किसानों के पास 10 एकड़ जमीन है, उन्हें इन मशीनों को खरीदने के लिए 80 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जानी चाहिए। लेकिन, सरकार ने कुछ नहीं दिया। यदि किसानों को कुछ भी नहीं दिया जाएगा तो वे क्या करेंगे?’
कई राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, लेकिन पंजाब ऐसा प्रदेश है, जो भाजपा के लिए आज भी चुनौती बना हुआ है। खासकर किसानों में नाराजगी साफ झलकती है। लुधियाना से लगभग 30 किलोमीटर दूर जसपालोन गांव में किसान भाजपा के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करने में जरा भी नहीं हिचकते।
शंभू बॉर्डर पर 100 दिन से चल रहे धरना प्रदर्शन को 5000 की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने काफी समर्थन दिया है। जगजीत सिंह कहते हैं, ‘पंजाब में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में विरोध प्रदर्शन करने के लिए हमारे गांव से कई लोग गए थे।’
दिल्ली-सिंघु बॉर्डर पर 2020 में और हरियाणा-पंजाब के शंभू बॉर्डर पर अब चल रहे प्रदर्शन के कारण भाजपा प्रत्याशियों को पूरे राज्य में मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा है। उन्हें जवाब देना भारी पड़ रहा है। जालंधर और होशियारपुर के भाजपा उम्मीदवार सुशील रिंकू और अनिता प्रकाश को प्रचार के दौरान किसानों के व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार लुधियाना से भाजपा प्रत्याशी रवनीत सिंह बिट्टू को भी प्रचार के दौरान किसानों के इसी तरह का विरोध झेलना पड़ा। किसानों के एक समूह ने बिट्टू को मुकंदपुर गांव में प्रचार करने से रोक दिया।
लुधियाना के रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया, ‘भाजपा को पंजाब में भले शहरी हिंदू मतदाताओं का वोट मिल जाए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो भाजपा के खिलाफ किसानों में ऐसा गुस्सा है कि वे भाजपा को एक भी सीट जीतते देखना नहीं चाहते। इन लोगों में ऐसी धारणा बैठ गई कि भाजपा किसानों के हित के लिए कोई काम नहीं करती है।’
होशियारपुर के छब्बेवाल और मुकेरियां में जहां भाजपा प्रत्याशी प्रकाश को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा, वहीं रिंकू को पिछले सप्ताह फिल्लौर में इसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन से दो-चार होना पड़ा था। मुकेरियां और फिल्लौर में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान के एक दिन बाद भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे। मोर्चा ने ऐलान किया था कि वे क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशियों का कड़ा विरोध करेंगे।
मुकेरियां के गांव जांदवाल में किसानों ने एकत्र होकर भाजपा उम्मीदवार प्रकाश के खिलाफ आवाज बुलंद करने का ऐलान किया था। इस दौरान उन्होंने प्रकाश का घेराव भी किया। इस बीच, भाजपा नेता सुशील रिंकू को किसानों के प्रदर्शन के चलते मात्र 30 मिनट में ही प्रचार स्थल छोड़ना पड़ गया था। बड़ी संख्या में एकत्र हुए किसानों ने फिल्लौर में उनका घेराव किया था। पार्टी ने इन विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए 6 मई को निर्वाचन आयोग के समक्ष एक शिकायत भी दर्ज कराई थी।
जसपालोन के एक और किसान गुरिंदर पाल सिंह ने कहा, ‘केंद्र और राज्य सरकारों से हमारी मांग है कि वे किसानों की मदद करें और उन्हें सहयोग दें।’ गांव के अन्य कई किसानों ने कहा कि उनका सबसे बड़ा मुद्दा खाद की कमी है। उन्हें पर्याप्त खाद की आपूर्ति नहीं की जा रही है। फसल बोआई और उसके बाद उन्हें पर्याप्त यूरिया और डीएपी नहीं मिल पाता और मजबूरन उन्हें ब्लैक में इसे महंगे दामों पर खरीदना पड़ता है।
यही नहीं, खादी की आपूर्ति करने वाली सहकारी समितियां खाद के साथ-साथ उन्हें अन्य उत्पाद खरीदने के लिए भी मजबूर करती हैं। केंद्र सरकार यद्यपि उर्वरकों पर सब्सिडी मुहैया कराती है। राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा भी भाजपा के गले की फांस गया है। दिल्ली की सीमाओं पर 15 महीने तक चले किसानों के प्रदर्शन में भी कृषि कानूनों की वापसी के साथ मुख्य मुद्दा एमएसपी पर कानूनी गारंटी ही था।
इस साल एमएसपी को आधार बनाकर ही शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा से अपना लगभग 20 साल पुराना गठबंधन तोड़ अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसल किया, जबकि कांग्रेस ने वादा किया है कि यदि केंद्र में उसकी सरकार बनी तो वह एमएसपी पर कानून लेकर आएगी। एक किसान ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘एमएसपी पर खूब चर्चा हुई, सब हमारा रुख जानते हैं।
इस मुद्दे को हल करने के लिए कई दौर की वार्ताएं हुईं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। कुछ लोगों का मानना है कि 22 फसलों को एमएसपी के दायरे में लाना संभव नहीं है। यदि कल के दिन कोई डेरी किसान भी एमएसपी की मांग करने लगे तो सरकार क्या करेगी? उनके उत्पाद तो बहुत महंगे बिकते हैं, लेकिन हमें आम सहमति बनानी ही होगी।’
एमएसपी, पराली, खाद जैसे ज्वलंत मुद्दों के अलावा यहां के लोग रोजगार और प्रदूषण की समस्या को लेकर भी परेशान दिखते हैं और चाहते हैं कि आने वाली सरकार उनकी समस्या का तार्किक समाधान पेश करे।