विश्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि भारत को अगर साल 2030 तक 1 लाख करोड़ डॉलर के निर्यात का लक्ष्य हासिल करना है तो उसे क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल नहीं होने के अपने रुख सहित क्षेत्रीय एकीकरण रणनीति की नए सिरे से समीक्षा करनी चाहिए।
बहुपक्षीय ऋणदाता एजेंसी ने अपनी हालिया रिपोर्ट इंडिया डेवलपमेंट अपडेट में कहा, ‘भारत प्रमुख ट्रेड ब्लॉक जैसे आरसीईपी शामिल नहीं है जबकि दक्षिण एशिया के अन्य देश जैसे बांग्लादेश और श्रीलंका ने पूर्वी एशिया के इस क्षेत्रीय व्यापार और वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) का हिस्सा बनने में रुचि दिखाई है।’
छोटे देश भी दक्षिण एशिया से परे व्यापारिक समझौतों पर विचार कर रहे हैं। लिहाजा ऐसे में भारत अपनी क्षेत्रीय एकीकरण रणनीति की पुन: समीक्षा कर सकता है। इसमें आरसीईपी पर उसका रुख भी शामिल है। आदर्श स्थिति में बहुपक्षीय और बहुध्रुवीय सहयोग पर अधिक जोर देना फायदेमंद होगा।’
हालांकि विश्व बैंक के भारत के निदेशक अगस्त कुआमे ने संवाददाताओं से कहा कि इस बारे में अंतिम फैसला भारत को करना है। उन्होंने बताया, ‘व्यापार अच्छा है और कियी ट्रेड ब्लॉक का हिस्सा होना भी अच्छा है। हमारी किसी चुनिंदा ट्रेडिंग ब्लॉक के लिए कोई सिफारिश नहीं है। इसके बारे में फैसला देश को करना है। भारत को तय करना है कि वह आरसीईपी का हिस्सा होना चाहता है या नहीं। हम देशों के बीच व्यापार वार्ता में शामिल नहीं होते हैं।’
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत ने संरक्षणवादी उपायों को कहीं अधिक बढ़ा दिया है। इसके मुताबिक शुल्क, गैर-शुल्क बाधाओं तथा वस्तु एवं सेवाओं के कारोबार को प्रभावित करने वाली औद्योगिक नीतियों को कहीं अधिक बढ़ाया गया है, जबकि इनकी व्यापार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
इसमें कहा गया कि भारत के यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) से हुए व्यापारिक समझौते में डिजिटल ट्रेड, ई-कॉमर्स, औषधि और एमएसएमई जैसे अहम क्षेत्रों को बाहर रखा गया है। इससे समझौते का पूरा प्रभाव सीमित हो जाता है।