श्रम ब्यूरो (labour bureau) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक फैक्टरियों में पंजीकृत महिलाओं ने 2019 में बहुत ज्यादा ओवरटाइम किया है और यह बढ़कर 11 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। कानूनी रूप से श्रमिक से एक सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम कराया जा सकता है। 2019 में 33.6 प्रतिशत महिलाओं ने वैधानिक रूप से अनिवार्य काम के घंटों से अधिक काम किया है जबकि 27.9 प्रतिशत पुरुष श्रमिकों ने तय काम के घंटों से ज्यादा काम किया है।
इसके पहले 2008 में 39.2 प्रतिशत महिला श्रमिकों ने काम के तय घंटों से अधिक काम किया था।
श्रम ब्यूरो द्वारा फैक्टरीज ऐक्ट, 1948 को लागू करने को लेकर जारी सालाना आंकड़ों से यह सामने आया है, जिसका संकलन राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम विभागों के आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
इस अधिनियम के तहत सभी पंजीकृत फैक्टरियों को सालाना वैधानिक रिटर्न दाखिल करना होता है, जिसमें श्रमिकों के काम के घंटे, छुट्टियों, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों, संबंधित राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम आयुक्त द्वारा जांच के ब्योरे होते हैं।
अधिनियम की धारा 51 में कहा गया है कि किसी भी वयस्क श्रमिक से फैक्टरी में एक सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं कराया जाएगा।
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कर्नाटक और तमिलनाडु में हाल में हुए फैक्टरी अधिनियम में बदलाव को देखते हुए यह अहम है, जिसमें अब 12 घंटे की शिफ्ट को अनुमति दी गई है। साथ ही महिलाओं को रात को काम करने को लेकर नियम आसान किए गए हैं, जिससे रात के समय काम करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ सके। सरकार के मुताबिक निवेश आकर्षित करने के लिए ये बदलाव किए गए हैं। हालांकि सप्ताह में काम के 48 घंटे ही रखे गए हैं।