योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष और सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति केंद्र (सीएसईपी) से जुड़े मोंटेक सिंह आहलुवालिया का कहना है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत पर शुल्क कम रहने से अमेरिका के परिधान बाजार में उसे तत्काल कोई फायदा नहीं मिलेगा। इंदिवजल धस्माना को दिए साक्षात्कार में उन्होंने क्षेत्रीय समूहों, मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और विनिमय दरों के प्रभावों पर भी बात की। बातचीत के संपादित अंशः
अमेरिकी शुल्कों से क्या दुनिया वैश्वीकरण से पूर्व की स्थिति में नहीं पहुंच जाएगी?
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के शुल्क प्रस्तावों के बाद अमेरिका वहीं वापस पहुंच जाएगा जहां वह 1930 के स्मूट-हॉले अधिनियम के बाद था। उस समय दुनिया में व्यापार के मोर्चे पर उथल-पुथल मच गई थी, मंदी गहराने लगी थी और दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की आग में झोंक दी गई। ट्रंप के कदमों के बाद वैश्विक वित्तीय बाजार पहले ही हतप्रभ हैं मगर दूसरे देशों के जवाबी कदमों के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी। चीन ने अमेरिका पर 34 फीसदी शुल्क लगा दिया है और यूरोपीय संघ (ईयू) ने भी जवाबी कदम उठाने की बात कही है। शुल्क बढ़ने से दुनिया की बड़ी
अर्थव्यवस्थाओं में कीमतें बढ़ जाएंगी और आर्थिक सुस्ती दिखनी शुरू हो जाएगी जिससे मंदी भी आ सकती है।
अमेरिकी शुल्कों के जवाब में दूसरे देश क्या कदम उठा सकते हैं?
चीन की तरह दूसरे बड़े देश भी जवाबी शुल्क लगाएंगे। ईयू भी ऐसा ही कदम उठाने पर विचार कर रहा है। यह स्थिति वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को बरबादी की राह पर ले जाएगी मगर इससे अमेरिका को भी यह सीख जरूर मिलेगी कि एकतरफा कदम उठाने की कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। शुल्कों से अमेरिकी निर्यात एवं उसके अन्य हित भी प्रभावित होंगे। मुझे लगता है कि बड़े देश अमेरिका की रुखसती के बावजूद व्यापार के बहुपक्षीय नियमों के महत्त्व को समझेंगे।
अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कई देशों में चीन को लेकर चिंता है। इस चिंता से वे कैसे निपटेंगे?
राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर सामान्य व्यापार नियमों से बाहर निकला जा सकता है और डब्ल्यूटीओ भी इसकी इजाजत देता है। अमेरिका में पिछली सरकार ने कुछ खास उच्च तकनीक खंडों में सुरक्षात्मक उपाय कर इस चिंता का समाधान करने की कोशिश की थी। जिन देशों को चीन से डर लग रहा है वे भी ऐसे उपाय कर सकते हैं। मगर अमेरिकी शुल्कों के साथ समस्या यह है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क को भी पार कर गए हैं। अमेरिका को लगता है कि उसके साथ दूसरे देश उचित व्यवहार नहीं कर रहे हैं मगर पड़ताल करने पर यह तर्क खोखला लगता है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के व्यापार के मामले में अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष के लिए ईयू पर शुल्क लगाए गए हैं मगर इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया है कि सेवाओं के व्यापार में वे (ईयू) उतने ही व्यापार घाटे का सामना कर रहे हैं।
भारत को क्या कदम उठाना चाहिए? हमें भी अमेरिकी की तरह संरक्षणवादी रुख अपनाना चाहिए? क्या हमें भी जवाबी शुल्क लगाना चाहिए?
मुझे नहीं लगता कि अमेरिकी शुल्कों का जवाब शुल्कों से देने से कोई फायदा होगा। व्यापार में अमेरिका हमारा सबसे बड़ा साझेदार देश है मगर उनके लिए हम बहुत मायने नहीं रखते हैं। भारत अगर जवाबी शुल्क लगाएगा तो इससे अमेरिका को नुकसान नहीं होगा और न ही उसे रोका जा सकेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप द्विपक्षीय व्यापार वार्ता शुरू करने पर सहमत हुए थे। ट्रंप ने यह भी कहा था कि उन्होंने मोदी को अमेरिका की इस चिंता से वाकिफ करा दिया है कि भारत काफी अधिक शुल्क लगाता है। ट्रंप ने उम्मीद जताई थी कि भारत शुल्कों में कमी करेगा। मुझे लगता है कि बातचीत को मौका जरूर मिलना चाहिए। मैंने काफी पहले कहा था भारत काफी अधिक शुल्क लगा रहा है और हमें अपने हितों के लिए उनमें कमी करनी चाहिए। कई दूसरे लोग भी इस सोच से सहमत हैं। वर्ष 2016 में प्रकाशित नीति आयोग के पहले तीन-वर्षीय सुधार कार्यक्रम में भी कहा गया था कि भारत को शुल्कों में कमी करनी चाहिए। अगर वैश्विक व्यापार विभिन्न व्यापारिक समूहों में बंट रहा है तो हमें उनमें अधिक से अधिक समूहों के साथ काम करना चाहिए। हमें ब्रिटेन और ईयू के साथ जितनी जल्दी हो एफटीए पर बातचीत पूरी कर लेनी चाहिए। मुझे लगता है कि भारत को जापान की अगुआई वाले सीपीटीपीपी का हिस्सा बनने पर भी विचार करना चाहिए।
भारत को अमेरिका के परिधान बाजार में बांग्लादेश, चीन और वियतनाम के मुकाबले कितना फायदा मिल सकता है?
यह सही है कि इन देशों की तुलना में भारत पर शुल्क कम लगाए गए हैं जिससे वह थोड़े फायदे की स्थिति में है। मगर हमें इसका कोई तत्काल लाभ मिलता नहीं दिखाई दे रहा है क्योंकि अमेरिकी शुल्कों और उनके खिलाफ दूसरे देशों के जवाबी शुल्कों से अमेरिका में शुद्ध आयात मांग पर नकारात्मक असर होगा। यानी बेहतर स्थिति में होने के बाद भी हमें अधिक फायदा नहीं मिल सकता है।
अमेरिका के साथ द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) को लेकर भारत को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए?
यह बात केवल अमेरिका के लिए ही बल्कि ब्रिटेन और ईयू के साथ एफटीए के मामले में भी महत्त्वपूर्ण है जहां हमें बीआईटी पर कुछ आश्वासनों की जरूरत होगी। विवाद निपटान के मामले में हमें दुनिया अच्छी नजरों से नहीं देखता है। हमारा यह तर्क कमजोर है कि भारत में समाधान पाने के सभी विकल्प गंवा देने के बाद ही कोई इकाई अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का विकल्प चुन सकती है।
शुल्क घटाने पर क्या विनिमय दर व्यापार नीति में अहम भूमिका निभाती हैं?
घरेलू उत्पादक शुल्कों में किसी तरह की कटौती पसंद नहीं करते हैं मगर सुरक्षात्मक शुल्कों में कमी से होने वाले किसी नुकसान की भरपाई विनिमय दर में कमी से पूरी की जा सकती है। इतना ही नहीं, विनिमय दर में कमी से भी निर्यातकों को सीधा लाभ मिलता है। अफसोस की बात है कि विनिमय दर नीति को पूरी दुनिया में संवेदनशील विषय माना जाता है और कोई भी सरकार अपनी इस नीति पर खुलकर बात नहीं करती है।