देश में नई सरकार बन गई है, लेकिन महंगाई, खासकर खाने की चीज़ों की बढ़ती हुई कीमतें, आने वाले हफ्तों में एक बड़ी चुनौती होंगी। सभी फसलों में, सब्जियों के दाम को नियंत्रित करना सबसे मुश्किल है।
आंकड़े बताते हैं कि प्याज, आलू और टमाटर (जो देश के कुल सब्जी उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा हैं) की महंगाई जनवरी 2024 से ही बहुत ज्यादा बढ़ी हुई है। दुकानदारों का कहना है कि आने वाले हफ्तों में गर्मी और बढ़ेगी, जिससे सब्जियों के दाम कम होने की संभावना नहीं है, हालांकि थोड़ी कमी जरूर आ सकती है।
इस साल प्याज-आलू का उत्पादन घटा
कृषि मंत्रालय द्वारा साझा किए गए हालिया आंकड़ों के अनुसार, दूसरे अनुमान में बताया गया है कि 2023-24 में प्याज का उत्पादन 23.21 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो कि पिछले साल से लगभग 6 मिलियन टन कम है।
वहीं, आलू का उत्पादन 56.76 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल से 3.4 मिलियन टन कम है। सिर्फ टमाटर के उत्पादन में, दूसरे अनुमान के अनुसार, पिछले साल के मुकाबले थोड़ी बढ़ोतरी होने की संभावना है, जो 2023-24 में 21.23 मिलियन टन रहने का अनुमान है।
कुल मिलाकर, 2023-24 में देश के बागवानी उत्पादन के 352.23 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 355.48 मिलियन टन से कम है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि बैंगन का उत्पादन भी पिछले साल के मुकाबले कम रहने का अनुमान है।
खाने की चीजों में, सब्जियों के दाम सबसे ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं, उसके बाद दालों और तिलहनों के दाम आए हैं। सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयास किए गए हैं, लेकिन अपर्याप्त भंडारण और वितरण व्यवस्था के कारण भारत में हर साल उत्पादित होने वाली बड़ी मात्रा में सब्जियां उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाती हैं।
नीति आयोग के एक विश्लेषण के अनुसार, 2047 तक भारत में 367 मिलियन टन सब्जियों के उत्पादन की उम्मीद है, जो कि 365 मिलियन टन की मांग से थोड़ा अधिक होगा। ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले अपनी मासिक आय का लगभग 5.38 प्रतिशत सब्जियों पर खर्च करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग 3.8 प्रतिशत खर्च करते हैं।
ऑपरेशन ग्रीन्स को नया स्वरूप देने की जरूरत
ऑपरेशन ग्रीन्स जैसी योजनाओं की भूमिका को नया रूप देने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने 2018-19 के बजट में 500 करोड़ रुपये के खर्च से ऑपरेशन ग्रीन्स योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य टमाटर, प्याज और आलू (टीओपी) की सप्लाई को स्थिर करना और उनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना था।
इस योजना के तहत सरकार सब्सिडी देती है, ताकि जब सब्जियों के दाम गिर जाएं तो उन्हें ज्यादा पैदावार वाले इलाकों से निकालकर दूसरी जगहों पर बेचा जा सके। साथ ही सब्जियों को स्टोर करने के लिए किराए पर जगह लेने में भी मदद मिलती है।
लेकिन, इस योजना को और मजबूत बनाने की जरूरत है। दरअसल, भारत में हर साल 12 से 16 फीसदी तक फल और सब्जियां खराब हो जाती हैं। सिर्फ सही भंडारण की व्यवस्था से ही इस बर्बादी को रोका जा सकता है। साथ ही किसानों को सीधे बाजार से जोड़ने की भी जरूरत है।
अभी तक करीब 46 परियोजनाएं चल रही हैं, जिन पर 2300 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन सब्जियों के दामों को नियंत्रित करने के लिए और भी कदम उठाने होंगे।