उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में हलाल अभिप्रमाणित (सर्टिफाइड) खाद्य उत्पादों की बिक्री एवं वितरण पर प्रतिबंध लगाने का जो आदेश दिया है, उसके बारे में कारोबारी सूत्रों का कहना है कि इससे मांस के निर्यात पर की असर नहीं होगा क्योंकि यह राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध की जद में नहीं आता है।
मांस विक्रेताओं को कहना है कि हलाल और गैर-हलाल मांस के बीच अंतर करना काफी मुश्किल है। उनका कहना है कि गैर-आधिकारिक सूत्रों के अनुमान बताते हैं कि भारत में बिकने वाले 90 प्रतिशत मांस हलाल (कसाईखाने से) के जरिये ही बाजारों में आते हैं। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि राज्य सरकार का आदेश मांस से इतर उन्हीं उत्पादों पर लागू होता है जो हलाल अभिप्रमाणित कह कर बेचे जा रहे हैं।
निर्यात की बात करें भारत सालाना 26,000 करोड़ रुपये मूल्य के मांस एवं मांस उत्पादों का निर्यात करता है। केंद्र सरकार ने हाल में इस कारोबार में और तेजी लाने के लिए निर्यातकों के लिए हलाल प्रमाणपत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के उपाय किए हैं। सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि किस तरह ऐसे प्रमाणपत्र प्राप्त किए जा सकते हैं।
इस संबंध में जारी मसौदा दिशानिर्देश में कहा गया है कि वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले कृषि एवं प्रसंस्कृत निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) प्रमाणपत्र देने की पूरी प्रक्रिया पर नजर रखने वाली अधिकृत सरकारी एजेंसी होगी।
दिशानिर्देश में कहा गया है कि निर्यात होने वाले मांस एवं मांस उत्पाद तभी हलाल प्रमाणपत्र पा सकेंगे जब ये भारतीय गुणवत्ता परिषद के तहत काम करने वाली इकाई राष्ट्रीय अभिप्रमाणन बोर्ड (एनएबीसीबी) द्वारा अधिकृत किसी इकाई द्वारा जारी वैध प्रमाणपत्र के साथ उत्पादित, प्रसंस्कृत और डिब्बाबंद (पैक) किए जाते हैं।
मांस का आयात करने वाले कुछ देशों में निजी अभिप्रमाण एजेंसियां होती हैं जो हलाल प्रमाणपत्र जारी करती हैं। इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने सप्ताहांत पर जारी आदेश में राज्य में हलाल प्रमाणपत्र प्राप्त उत्पादों की बिक्री, वितरण एवं प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार राज्य सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि उसे हाल में ऐसी जानकारी मिली है कि दुग्ध उत्पाद, चीनी, बेकरी उत्पाद, पुदीने का तेल, नमकीन, खाद्य तेल आदि हलाल प्रमाणपत्र के साथ बेचे जा रहे हैं। बयान में कहा गया है कि खाद्य उत्पादों पर लागू होने वाले नियमों के अनुसार भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण को खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता तय करने का अधिकार दिया गया है।
बयान में कहा गया है, ‘हलाल अभिप्रमाणन एक समानांतर प्रणाली की तरह काम कर रही है। इससे खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। इससे इस संबंध में तय सरकारी नियमों का उल्लंघन होता है। 2019-20 की मवेशी गणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में मवेशी की आबादी देश में सबसे अधिक है। राज्य में मवेशी की आबादी लगभग 1.9 करोड़ है जो देश में किसी भी राज्य की तुलना में सर्वाधिक है।’
राज्य सरकार ने यह भी आरोप लगाया है कि कुछ लोग देश में अनुचित आर्थिक लाभ और समाज में समुदायों के बीच घृणा पैदा करने के लिए जानबूझकर हलाल अभिप्रमाणित उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा दे रहे हैं।
बयान में कहा गया है कि हलाल अभिप्रमाणित दवाओं, स्वास्थ्य उपकरणों और कॉस्मेटिक की राज्य में भंडारण, वितरण, इनकी खरीदारी और बिक्री करने वाले लोगों एवं कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। शुक्रवार को लखनऊ कमिश्नरेट में प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कराई गई है।
सरकारी सूत्रों ने एफआईआर का हवाला देने हुए कहा है कि हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा-ए- हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाला काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र और कुछ अन्य संस्थाओं ने एक खास धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोगों को हलाल अभिप्रमाणित देकर कुछ उत्पादों की बिक्री के जरिये धार्मिक भावनाओं को उकसा रही हैं। जमीयत उलेमा-ई-हिंद हलाल ट्रस्ट ने इन आरोपों को आधारहीन बताया और कहा कि ऐसी भ्रामक जानकारियों का प्रसार रोकने के लिए वह आवश्यक कदम उठाएगी।